जीपीएस से नपेगी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई

हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की सही ऊंचाई मापने और पिछले साठ साल में इसकी ऊंचाई में संभावित परिवर्तन से जुड़ी आशंकाओं को समाप्त करने के लिए भारतीय वैज्ञानिक पहली बार जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) की मदद से इसकी ऊंचाई मापेंगे। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डा. हर्षवर्द्धन ने राष्ट्रीय सर्वेक्षण दिवस के मौके पर बताया कि नेपाल के साथ मिलकर इस वैज्ञानिक अभियान को अंजाम दिया जाएगा। इसमें जीपीएस की मदद से प्राप्त ऊंचाई और औसत समुद्र तल से ऊंचाई मापने के पुराने तरीकों को मिलाकर एक खास मॉडल के जरिए सटीक ऊंचाई मापी जाएगी, जो 30 सेंटीमीटर के दायरे तक सही होगी। सरकार ने माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई जानने के लिए पिछला सर्वेक्षण वर्ष 1955 में कराया था। उस समय इसकी ऊंचाई 8848 मीटर या 29029 फुट मापी गई थी। भारत के महासर्वेक्षक डा. स्वर्ण सुब्बाराव ने बताया कि दो साल पहले नेपाल में आए भूकंप के बाद इसकी ऊंचाई में परिवर्तन की कुछ आशंकाएं जताई जा रही हैं। कुछ लोगों का कहना है कि भूकंप में इस पर्वत शिखर की ऊंचाई कुछ कम हो गई है। इसके अलावा कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनका कहना है कि भारतीय और चीनी प्लेटों के लगातार एक-दूसरे की ओर खिसकने के कारण इसकी ऊंचाई बढ़ी है। डा. सुब्बाराव ने कहा कि नेपाल सरकार को इस अभियान में शामिल होने तथा इसकी अनुमति देने के लिए पत्र लिखा गया है। यह दोनों देशों का संयुक्त अभियान होगा। उन्होंने कहा कि इस बार वैज्ञानिक एवरेस्ट शिखर पर जाकर जीपीएस उपकरण की मदद से भी आंकड़े लेना चाहते हैं, जिसके लिए नेपाल के क्षेत्र में जाना जरूरी होगा। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों का एक दल एवरेस्ट की चोटी पर जाकर जीपीएस के आंकड़े लेगा, जबकि सात दल विभिन्न कोणों से त्रिकोणमितीय आंकड़े एकत्र करेंगे। साथ ही समुद्र तल से औसत ऊंचाई मापने की पारंपरिक तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाएगा। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डा. आशुतोष शर्मा ने बताया कि सर्वे ऑफ इंडिया ने एक ऐसा मॉडल तैयार किया है, जिसमें जीपीएस से प्राप्त आंकड़ों और औसत समुद्र तल से मापी गई ऊंचाई को मिलाकर सटीक ऊंचाई बताई जा सकेगी। उन्होंने कहा कि आम तौर पर समुद्र तल से मापी गई ऊंचाई और जीपीएस से प्राप्त ऊंचाई में अंतर होता है।