बंगाणा में छलका अमृत

बंगाणा —  रामचरितमानस में सात कांड, प्रथम कांड में गोस्वामी तुलसीदास जी ने सबमें परमात्मा को देखने को सुशिक्षा प्रदान की। द्वितीय कांड में वचन को निभाने की शिक्षा दी, प्राणों के निकल जाने के भय से भी दिए हुए वचन को ठुकराना नहीं चाहिए। तृतीय कांड में जाति-पाति के बंधन में न पड़ते हुए जीव को संकल्प विश्व में आराध्य भगवान श्रीराम का दर्शन करते हुए अपने जीवन को व्यतीत करना चाहिए, यह पावन शिक्षा दी। चौथे कांड में मनुष्य को हमेशा अपना लक्ष्य याद रखते हुए अपने समय का सुदप्रयोग करने की शिक्षा दी गई। पांचवें सुंदरकांड में कह हनुमंत विपत्ति प्रभु सोई, जब-जब भजन न सुमरिन होई लक्ष्य करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज जनमानस को बताना चाहते हैं कि वास्तव में जीव से हरि भजन न होना ही जीव के लिए सबसे बड़ी संपत्ति है। छठे लंका कांड में गोस्वामी तुलसीदास जी मन को भगवान की शरण में ले जाते हुए जीव को प्रभु शारणागति में जाने का आदेश देते हैं। सातवें कांड में गोस्वामी तुलसीदास जी मन मंदिर में राम राज्य अभिषेक करते हुए समस्त जगत को भी ह्दयरूपी आयोध्या राम राज्य की स्थापना हेतु आमंत्रित करते हैं। श्री संकट मोचन सेवा ट्रस्ट थानाकलां द्वारा आयोजित श्रीराम कथा के विश्राम दिवस की कथा में कथा व्यास आचार्य शिव शास्त्री ने प्रवचनों की वर्षा करते हुए यह बात कही।  रामचरितमानस की एक-एक चौपाई, एक-एक दोहा, छंद और सोरठा जीवन के लिए सुख प्रेरक है।