सशक्‍तिकरण को तलाक

ऐसा कम ही होता है, जब निहायत निजी संबंध राजनीतिक मुद्दा बन जाएं। राजनीति को संबंधों में हस्तक्षेप करने का मौका तभी मिलता है, जब वहां गिरावट सड़ांधता के स्तर तक पहुंच जाए। यदि ऐसी स्थिति नहीं है, तो राजनीतिक हस्तक्षेप को कोई भी गंभीरता से न लेता, क्योंकि सामान्यतः यह माना जाता है कि राजनीति में संबंधों की संजीदगी को समझने की योग्यता नहीं होती। राजनीति तो सत्ता प्राप्ति के विशुद्ध गुणा-गणित पर चलती है।  तीन तलाक का मुद्दा यदि राजनीतिक मुद्दा बन गया है, तो इसका मुख्य कारण यह है कि इसमें मानवीयता गायब दिखती है…

तीन तलाक का मुद्दा यकायक राजनीतिक विमर्श के केंद्र में आ गया है। इस मुद्दे को लेकर सभी के अपने-अपने पक्ष हैं। मुस्लिम धर्मगुरु इसे धर्म से जुड़ा निजी मामला बता रहे हैं, वहीं सरकार ने तीन तलाक में मानवाधिकार और महिलाओं के अधिकार से जुड़ा मुद्दा माना है। कट्टर मुसलमान इसमें कोर्ट और सरकार के दखल के खिलाफ हैं तो कई मुस्लिम महिलाओं ने इसके विरोध पर सड़क और कोर्ट का रुख भी किया है। कई मुस्लिम महिलाओं ने विरोध का अपना तरीका अपनाया है। इस मुद्दे के समर्थन में सरकार के खड़े होने के कारण पहली बार मुस्लिम महिलाएं भी मुखर होती हुई दिख रही हैं। लंबे अरसे से दबा हुआ गुस्सा विविध रूपों में बाहर आ रहा है। सरकार द्वारा तीन तलाक को मानवाधिकार से जोड़ने और इसके विरोध में खड़े होने के कारण मीडिया भी इससे जुड़ी छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसके कारण इस प्रथा के दबे-छिपे पहलू सामने तो आ ही रहे हैं, इनके साथ अजीबोगरीब उदाहरण भी सामने आ रहे हैं। कहीं कोर्ट में ही तलाक देने की बात आ रही है, तो कहीं मोबाइल पर मैसेज देकर। तीन तलाक से भी ज्यादा आपत्ति हलाला की प्रथा को लेकर उठाई जा रही है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार कुछ जगहों पर हलाला करने के लिए महिलाओं को पैसे देने पड़ रहे हैं। कहीं पर हलाला के लिए गई महिला को तलाक देने से इनकार कर दिया जाता है और इस कारण वह अपने पहले पति के पास नहीं लौट सकती। शाहबानो प्रकरण के समय भी तीन तलाक और मानवाधिकार के मुद्दे को लेकर काफी चर्चा हुई थी, लेकिन तब उच्चतम न्यायालय के एक महत्त्वपूर्ण निर्णय को संसद में उलट दिया गया था और इसके कारण महिलाओं की आवाज भी मंद पड़ गई थी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई और सरकार की सक्रियता के कारण मुस्लिम महिलाएं फिर से सक्रिय हुई हैं। पूरे देश में इसके विरोध को लेकर नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। ऐसा ही एक रोचक उदाहरण राजस्थान के जोधपुर में देखने को मिला।  जोधपुर से थोड़ी दूरी पर स्थित फलोदी कस्बे की एक मुस्लिम लड़की ने हिम्मत कर तीन तलाक के विरोध का ऐसा तरीका अपनाया, जिससे कई कट्टर मुस्लिमों को दिक्कत होगी। इस लड़की ने हिंदू लड़के से शादी की है। तस्लीमा नाम की इस लड़की ने हिंदू रीति-रिवाज के साथ मंदिर में एक हिंदू लड़के से शादी की है। मुस्लिम लड़की बोली कि हिंदू धर्म में जीवनभर अपनी पत्नी के अलावा दूसरी महिलाओं को बहन- बेटी की नजर से देखा जाता है। विवाहित लड़की ने कहा कि मुस्लिम समाज में लड़की की मर्जी पूछे बगैर ही उसकी शादी कर दी जाती है, तस्लीमा के इस कदम से राजस्थान के अलावा पूरे देश में यह शादी चर्चा का विषय बन गई है। इस विषय को लेकर राजनीति भी चरम पर पहुंच गई है। कोलकाता में कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने ममता बनर्जी की तीन तलाक के जरिए घेरेबंदी करने की कोशिश की।  उन्होंने कहा कि मैं उस राज्य में हूं, जहां एक महिला मुख्यमंत्री हैं। जब हम न्याय की बात कर रहे हैं तो मैं जानना चाहूंगी कि ममता दीदी का ट्रिपल तलाक पर क्या कहना है। हालांकि बनर्जी ने इस मुद्दे पर अपनी राय सामने नहीं रखी है, ईरानी का यह सवाल बीजेपी के ममता बनर्जी पर लगाए जाने वाले अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की तरफ इशारा करता है। उत्तर प्रदेश के चुनावों में मायावती ने तीन तलाक के मुद्दे को सांप्रदायिक बताया था जबकि अन्य पार्टियां मुस्लिम महिलाओं का रुख देखते हुए अभी तक संयमित रवैया अपनाए हुए हैं।  अन्य भारतीय पंथों में भी महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण सीमित रहा है, लेकिन सभी पंथों ने समय के साथ बदलाव को स्वीकार किया। इसके कारण सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के लिए स्पेस बढ़ा और वह हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधा से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो तीन-तलाक का मुस्लिम महिलाओं की मुख्यधारा में प्रवेश और सशक्तिकरण से जुड़ा एक अहम मुद्दा है। इस मुद्दे को सशक्तिकरण से जोड़कर देखने पर सांप्रदायिक वैमनस्य भी नहीं फैलेगा और एक बड़े तबके को मूलभूत अधिकार भी प्राप्त हो सकेंगे।