‘ इरावती ’ नाम से जानी जाती है वेदों में ‘ रावी ’ नदी

By: May 10th, 2017 12:05 am

इस नदी का प्राचीन नाम ‘इरावती’ है, जिसे स्थानीय बोली में ‘रौती’ भी कहते हैं। रावी नदी की मूल धारा बड़ा भंगाल से निकल कर अपनी ही कई छोटी बड़ी जल धाराओं को समेटती हुई लोअर चुराह के चौहड़ा नामक स्थान पर विशाल नदी का रूप धारण करती है…

हिमाचल की नदियां

रावी नदी – वेदों में ‘परूशिनी’ और संस्कृत वाड्मय (1000 ई. पूर्व) में ‘इरावती’ के नाम वे विख्यात यह नदी धौलाधार पर्वत शृंखला के बड़ा भंगाल क्षेत्र में भादल और तांतगुरी नामक दो हिमखंडों के संयुक्त होने से गहरी खड्ड के रूप में निकलती है। इसकी सहायक नदियां/खड्डें चिड़चंड, छतराड़ी, बोढिल, टुण्हैहण, बलजेड़ी, साल और स्यूल आदि हैं। चंबा और रावी नदी एक-दूसरे के पूरक बन चुके हैं। इस नदी का प्राचीन नाम ‘इरावती’ है, जिसे स्थानीय बोली में ‘रौती’ भी कहते हैं। रावी नदी की मूल धारा बड़ा भंगाल से निकल कर अपनी ही कई छोटी बड़ी जल धाराओं को समेटती हुई लोअर चुराह के चौहड़ा नामक स्थान पर विशाल नदी का रूप धारण करती है। चौहड़ा से लगभग 30 किलोमीटर आगे का क्षेत्र चंबा जिला की तहसील भटियात में पड़ता है, जिसे ‘परगना चूहन’ के नाम से जाना जाता है। भरमौर के पश्चिमी हिमशिखरों से ‘कुगती खड्ड’ बहती है तथा कैलाश पर्वत की हिमगिरियों से ‘मणिमहेश खड्ड’ प्रवाहित होती है। इन दोनों खड्डों का हड्सर नामक स्थान पर संगम होता है तथा उसके आगे यह जलधारा ‘बुड्डल खड्ड’ के नाम से जानी जाती है। भरमौर के सुदूर पूर्व में होली गांव से होकर बहती हुई रावी नदी खड़ामुख नामक स्थान पर बुड्डल खड्ड को अपने में मिलाती है। इसी नदी में मिलने वाली अन्य प्रमुख खड्डों में तुंदा क्षेत्र से बहने वाली ‘खड्ड तुन्दैन’ है तथा औहरा फाटी पर्वत श्रेणियों से बहने वाली खड्डें दुनाली के नाम से जानी जाती हैं। ये दोनों खड्डें कलसुईं के समीप रावी नदी में विलीन हो जाती हैं। खजियार की ऊपरी सभी पर्वत श्रेणियों का पानी तीन खड्डों में बंट जाता है। एक खड्ड तो ‘ओबड़ी खड्ड’ के नाम से जानी जाती है, जो सुलतानपुरा के समीप रावी में विलय होती है। दूसरी खड्ड मंगला खड्ड कहलाती है, यह चंबा में शीतला पुल के समीप रावी नदी में मिल जाती है। तीसरी खड्ड खजियार के पश्चिमी-उत्तरी वनों से बहती हुई चंबा नगर के निलोरा नामक स्थान पर रावी में मिलती है। चंबा का उत्तरी क्षेत्र परगना साहो-गुदियाल कहलाता है। इस क्षेत्र की उत्तर की शिखर श्रेणियों से प्रवाहित होने वाली जलधारा को ‘होल खड्ड’ तथा पंजजुंगला की पर्वत श्रेणियों से बहनी वाली खड्ड को ‘कीड़ा खड्ड’ कहा जाता है। साहो के समीप इन दोनों खड्डों का संगम होता है तथा इसके उपरांत इसे ‘साहल खड्ड’ के नाम से जाना जाता है।                            – क्रमशः

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