इमोशनल इंटेलिजेंस

By: May 3rd, 2017 12:07 am

cereerसंवेगात्मक बुद्धि (इमोशनल इंटेलिजेन्स) स्वयं की एवं दूसरों की भावनाओं अथवा संवेगों को समझने, व्यक्त करने और नियंत्रित करने की योग्यता है। दूसरे शब्दों में, अपनी और दूसरों की भावनाओं को पहचानने की क्षमता, अलग भावनाओं के बीच भेदभाव और उन्हें उचित रूप से लेवल करना, सोच और व्यवहार मार्गदर्शन करने के लिए भावनात्मक जानकारी के उपयोग को संवेगात्मक बुद्धि (इमोशनल इंटेलिजेंस) कहते हैं।  अपनी भावनाओं, संवेगों को समझना उनका उचित तरह से प्रबंधन करना ही भावनात्मक समझ है। व्यक्ति अपनी ‘भावनात्मक समझ ’ का उपयोग कर सामने वाले व्यक्ति से ज्यादा अच्छी तरह से संवाद कर सकता है और ज्यादा बेहतर परिणाम पा सकता है। डेनियल गोलमैन की पुस्तक ‘भावनात्मक बुद्धि’ ने इस शब्द को सारे विश्व में प्रचलित कर दिया। इससे पहले बुद्धि लब्धि को ही सब कुछ माना जाता था। अब यह माना जाने लगा है कि एक अच्छी बुद्धि लब्धि वाला व्यक्ति अच्छी सफलता पा सकता है, पर सबसे ऊपर पहुंचने के लिए भावनात्मक समझ का होना भी जरूरी है। अच्छी भावनात्मक समझ रखने वाला व्यक्ति कभी भी क्रोध और खुशी के अतिरेक में आ कर अनुचित कदम नही उठाता है।  हमारे स्वयं की भावनाओं (संवेगों) को गिफ्ट करने तथा उन्हें नियंत्रित करने की योग्यता महत्त्वपूर्ण है, लेकिन दूसरों की भावनाओं एवं संवेगों को समझना और उन्हें सम्मान देना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। कई विद्वानों का मानना है कि इनसान की बुद्धि को अर्जित एवं इसका परिवर्तन किया जा सकता है। सामाजिक बुद्धि की पहचान के लिए चार क्षेत्र हैं पहला सभी पर ध्यान देना, दूसरा संवेगों को व्यक्त करने की योग्यता, तीसरा संवेगों को समझने की योग्यता एवं चौथा संवेगों को नियंत्रित करने की योग्यता। सामाजिक बुद्धि एक व्यवहारवादी अवधारणा है डेनियल गोलमान की पुस्तक इमोशनल इंटेलिजेंस से यह विषय प्रकाश में आया। सामाजिक बुद्धि की अवधारणा व्यक्तियों के व्यापार प्रबंधन प्रणाली अभिरुचि अंतर व्यक्तिगत कौशल और जज्बे को एक नई दिशा प्रदान करती है। सामाजिक बुद्धि के 5 आयाम पहला स्वयं की भावनाओं व संवेगों को पहचानना दूसरा स्वयं की भावनाओं में संवेगों का प्रबंधन तीसरा स्वयं को प्रेरित करना , चौथा दूसरों की भावनाओं को पहचानना वह समझना पांचवा आपसी संबंधों का प्रबंधन करना है। आज के विद्यार्थी भविष्य में समाज के उत्पादक बनते हैं अतः भावनात्मक कुशलता में वृद्धि होने से समाज का सृजनात्मक प्रधान व सकारात्मक नागरिक बनाती है।

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