‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’

महान शायर और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर शहर में पहली अक्तूबर, 1919 को हुआ था। 1945 में सब्बो सिद्धकी इंस्टीच्यूट द्वारा संचालित एक मुशायरे में हिस्सा लेने मजरूह सुल्तान पुरी मुंबई आए। मुशायरे के कार्यक्रम में उनकी शायरी सुन मशहूर निर्माता एआर कारदार काफी प्रभावित हुए और उन्होंने मजरूह सुल्तानपुरी से अपनी फिल्म के लिए गीत लिखने की पेशकश की। मजरूह सुल्तानपुरी ने ‘जब उनके गेसू बिखराए बादल आए झूम के’ गीत की रचना की। फिल्म ‘शाहजहां’ के बाद महबूब खान की ‘अंदाज’ और एस फाजिल की ‘मेहंदी’ जैसे फिल्म में अपने रचित गीतों की सफलता के बाद मजरूह बतौर गीतकार अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसके बाद राजकपूर ने उनसे एक गीत लिखने की पेशकश की। उन्होंने ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’ गीत की रचना की, जिसके एवज में राजकपूर ने उन्हें एक हजार रुपए दिए। 1975 में राजकपूर ने अपनी फिल्म ‘धरम करम’ के लिए इस गीत का इस्तेमाल किया।  1993 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। 1964 में प्रदर्शित फिल्म ‘दोस्ती’ में अपने रचित गीत ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मजरूह सुल्तान पुरी ने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने करियर में लगभग 300 फिल्मों के लिए लगभग 4000 गीतों की रचना की। 24 मई, 2000 को वह इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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