ऑनलाइन मंजूर होंगे रियल एस्टेट प्रोजेक्ट

टीसीपी तैयार करेगा सॉफ्टवेयर; निजी फर्म को सौंपा जिम्मा, जल्द मिलेगी सुविधा

शिमला  – प्रदेश में रियल एस्टेट के प्रोजेक्टों की ऑनलाइन मंजूरी देने की जल्द ही व्यवस्था होगी। टीसीपी विभाग इसके लिए जल्द ही सॉफ्टवेयर तैयार करेगा। इसका काम एक निजी कंपनी को सौंप दिया गया है। हालांकि शुरुआत में यह काम टीसीपी करेगा, लेकिन बाद में यह सब रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी (रीरा) ही करेगी। इससे रियल एस्टेट कारोबारियों को रजिस्टर करने के साथ ही उनके प्रोजेक्टों को ऑनलाइन मंजूरी भी मिलने लगेगी। टीसीपी ने रियल एस्टेट प्रोजेक्टों को ऑनलाइन मंजूरी देने के लिए सॉफ्टवेयर तैयार करने की प्रक्रिया कुछ समय पहले शुरू की थी। इसके लिए टीसीपी विभाग ने फरवरी-मार्च में इच्छुक फर्मों से निविदाएं मांगी थीं। हालांकि पहले यह सॉफ्टवेयर टीसीपी अपने लिए तैयार कर रहा था, लेकिन इस बीच सरकार द्वारा रियल एस्टेट रेगुलटेरी अथारिटी (रीरा) के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। सरकार ने रीरा के लिए ड्राफ्ट रूल्ज भी तैयार कर लिए हैं। इसके चलते टीसीपी विभाग ने अथारिटी के लिए ही सॉफ्टवेयर तैयार करने के लिए निविदाएं मांगी थीं। इसके लिए विभाग के पास कुछ फर्मों ने आवेदन किए थे, जिनमें से अंत में जम्मू-कश्मीर की एक फर्म को इसका काम सौंप दिया है। बताया जा रहा है कि यह फर्म दो-तीन माह में यह सॉफ्टवेयर तैयार कर लेगी। हालांकि माना जा रहा है कि  जब तक रियल एस्टेट अथारिटी का सरकार गठन नहीं करती, तब तक टीसीपी विभाग ही रियल एस्टेट प्रोजेक्टों की रजिस्ट्रेशन व पंजीकरण का काम करेगा। वहीं बाद में इसको अथारिटी को सौंप दिया जाएगा।

पिछले साल लांच हुआ था ई-सर्विस प्रोजेक्ट

टीसीपी विभाग ने पिछले साल जनवरी में ई-सर्विस प्रोजेक्ट लांच किया था, लेकिन इसमें केवल भवनों के नक्शे और रजिस्ट्रेशन जैसी ऑनलाइन सुविधाएं प्रदान की गई थीं। ऐसे में अब भवनों के नक्शे जारी करने के साथ-साथ, आर्किटेक्ट की रजिस्ट्रेशन को भी ऑनलाइन ही किया जा रहा है। हालांकि बिल्डर्स की रजिस्ट्रेशन भी ऑनलाइन की जा रही है, लेकिन इनके प्रोजेक्टों के प्लांस को ऑनलाइन जमा करवाने की सुविधा  नहीं है। ऐसे में इनको आनलाइन मंजूरी भी नहीं मिल रही। बिल्डरों को फ्लैट्स और हाउसिंग कालोनियां बनाने के लिए रजिस्ट्रेशन के अलावा प्रोजेक्ट्स के भी लाइसेंस लेने होते हैं। इसके लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट और लाइसेंस शुल्क भी जमा करवाना पड़ता है। इसके लिए सॉफ्टवेयर की जरूरत थी, जो कि अब तैयार हो जाएगा।

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