घोड़ों के ग्लैंडर्ज की पहचान करेगा हिमाचल
अभी तक देश के इकलौते राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार में भेजे जाते थे सैंपल
मंडी – घोड़ों-खच्चरों के अभिशाप ग्लैंडर्ज बीमारी की पहचान अब हिमाचल भी करेगा। ग्लैंडर्ज जैसी जानलेवा बीमारी की टेस्टिंग के लिए शिमला स्थित राज्य स्तरीय लैब को स्टैंडर्डाइज्ड कर दिया गया है। ऐसे में अब हिमाचल में भी घोड़ों के एलाइजा टेस्ट किए जा सकेंगे। इससे पहले घोड़ों में उक्त बीमारी की पहचान करने के लिए देश के इकलौते राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार में सैंपल भेजे जाते थे। हिमाचल में एलाइजा टेस्ट के लिए पशुपालन विभाग की ओर से सभी जिलों में सर्कुलर जारी कर दिया गया है। अब जब भी ग्लैंडर्ज बीमारी के लक्षण घोड़ों व खच्चरों में पाए जाएंगे तो उनके दो सैंपल लिए जाएंगे। एक सैंपल शिमला और दूसरा राष्ट्रीय अश्व अनसुंधान केंद्र हिसार भेजा जाएगा। इसके लिए सभी जिला उपनिदेशकों को सर्कुलर जारी कर दिया गया है। लैबोरेटरी को स्टैंडर्डाइज्ड कर दिया गया है और जल्द ही सर्विलांसिंग शुरू कर दी जाएगी। यहां बता दें कि हाल ही में कांगड़ा जिला के सनौरां में खच्चरों में ग्लैंडर्ज के लक्षण पाए गए थे। इनसानों को भी यह बीमारी होने का खतरा होता है। ऐसे में एहतियातन जल्द से जल्द घोड़े-खच्चर को मार दिया जाता है। हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार बीमारी के इलाज की समयावधि करीब नौ महीने से एक साल तक चलती है, जो कि काफी खर्चीली रहती है। ऐसे में बीमारी फैलने की आशंका भी बनी रहती है, इसके कराण घोड़ों व खच्चरों को मार दिया जाता है।
ग्लैंडर्ज होने पर ली जाती है पशु की जान
ग्लैंडर्ज होने पर घोड़े या खच्चर को बचाया नहीं जा सकता है। ऐसे में उसे इजेंक्शन से मौत की नींद सुला दिया जाता है। इसके बाद घोड़े-खच्चरों को गहरे गड्ढे में दफनाया जाता है। हालांकि इसके लिए अश्व-खच्चर मालिकों को सरकार की तरफ से मुआवजा तय किया गया है।
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