बुढ़ापा वरदान बने अभिषाप न‌हीं

खेलता-कूदता, मनचला बचपन सबको प्यारा लगता है। मस्त जवानी की शान ही निराली होती है। परंतु कमबख्त बुढ़ापा किसी को अच्छा नहीं लगता…

बुढ़ापा शरीर की दुर्दशा कर देता है। सिर के काले बालों पर सफेदी आ जाती है। जवानी में मीलों तक मजे से चलने वाले पैर बुढ़ापे में थोड़ी दूर चलने पर ही थक जाते हैं। बुढ़ापे में पतझड़ हमेशा के लिए जीवन की सारी बहार छीन लेता है। बुढ़ापा आदमी के दिमाग पर भी अपना असर डालता है। दिमागी ताकत कमजोर हो जाती है। स्मरणशक्ति आदमी का साथ नहीं देती। जाने-माने व्यक्तियों के नाम और पते याद नहीं आते। बुढ़ापा आदमी को परवश बना देता है। बूढ़े व्यक्तियों की जिंदगी बेटे-बेटियों और पोते-पोतियों के सहारे ही चलती है।  बूढ़े व्यक्ति को अपनी हर चीज के लिए दूसरों का मुंह ताकना पड़ता है। उसे परिवार वालों की मर्जी के अनुसार ही चलना पड़ता है। बैंक में उसकी जमा पूंजी हो, तब तो ठीक, नहीं तो बात-बात में उसे अपमान के कड़वे घूंट पीने पड़ते हैं। प्रायः बूढ़ा व्यक्ति परिवार के लिए बोझ सा बन जाता है। उसकी बीमारी की बुढ़ापे का असर मानकर उपेक्षा की जाती है। नई पीढ़ी को बूढों की बातें विषबुझे तीरों जैसी लगती हैं। अब तो वृद्धाश्रमों का जमाना आ गया है। बूढ़े मां-बाप को वृद्धाश्रमों में भेजकर बेटे अपने कर्त्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं। हम बडे़-बूढ़ों के अनुभवों से लाभ उठाएं, उनके ज्ञानकोष को व्यर्थ न जाने दें। उन्हें उचित आदर-मान दें। ऐसा होने पर बूढ़ों के लिए बुढ़ापा अभिशाप नहीं, वरदान बन जाएगा।

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