शराबी होता हिमाचल

By: May 7th, 2017 12:05 am

गांवों में खोले जा रहे शराब ठेकों के खिलाफ महिलाओं ने आवाज बुलंद कर दी है, वहीं सरकार की आमदनी का बड़ा हिस्सा शराब के कारोबार से ही आता है ,लिहाजा प्रदेश सरकार शराब को बैन भी नहीं कर सकती और लोगों के विरोध को अनदेखा भी नहीं किया जा सकता.. आइए जानें आखिरकार महिलाएं लालपरी के खिलाफ क्यों सड़कों पर उतर आईं और सरकार ने अपने कारोबार को बचाने के लिए क्या नीति अपनाई…   सूत्रधार  : शकील कुरैशी

हिमाचल प्रदेश में पहली दफा शराब के ठेकों का इतने बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। हालांकि पहले भी इसका विरोध होता था, लेकिन तब वह विरोध स्कूल या मंदिरों के आसपास ठेका खुलने से होता था, लेकिन अब बस्ती में ठेका न हो यही लोग चाहते हैं । खासकर महिलाएं इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आई हैं। प्रदेश के कई हिस्सों में महिलाओं ने जमकर विरोध जताया है और खुले हुए ठेकों को बंद तक करके दिखा दिया है। इसके बाद सरकार भी सोचने को मजबूर है लिहाजा सरकार ने भी निर्णय लिया है कि जहां पर विरोध है,वहां से ठेका हटा दिया जाएगा और कहीं दूर उसे खोला जाएगा। प्रदेश के हमीरपुर, सिरमौर, कांगड़ा, मंडी, शिमला जिलों में कई स्थानों पर शराब ठेकों का विरोध चल रहा है। यहां बस्ती में खुले नए शराब के ठेके को देखने के लिए महिलाएं तैयार नहीं हैं।  महिलाओं का मानना है कि उनके घर की शांति इससे खो गई है वहीं बच्चों पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। नशे की इस प्रवृत्ति को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता।

शराब से सरकार की बड़ी कमाई

हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे पहाड़ी राज्य में जिसकी वित्तीय हालत भी खराब है, शराब से बड़ी कमाई होती है। प्रदेश में एक हजार करोड़ रुपए से ऊपर की आर्थिकी शराब से जुड़ी हुई है। इस साल भी सरकार ने 1100 करोड़ से ऊपर  का टारगेट रखा है और अपने इस मिशन में सरकार कामयाब भी हुई है। तीन जिलों को छोड़कर शेष सभी में शराब के ठेके खोले गए हैं, जिनकी संख्या लगभग 1000 है। तीन जिलों में 265 शराब के ठेके सरकार खुद खोलने जा रही है।

अब तक जिलावार ठेकों का विरोध

चंबा       1

कुल्लू      3

ऊना       2

बिलासपुर  3

मंडी        17

शिमला    7

कांगड़ा    40

सोलन     6

सिरमौर    5

हमीरपुर    21

दिल्ली-छत्तीसगढ़ की तर्ज पर हिमाचल

जब प्रदेश की आर्थिकी का एक बड़ा हिस्सा शराब से आता है, तो सरकार इसे बंद कैसे कर दे। पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में शराब बेचनी बंद नहीं की गई है परंतु वहां पर इसकी बिक्री का टाइमिंग तय कर दिया गया है। इसी तरह से राजधानी दिल्ली में खुद वहां की सरकार इसकी बिक्री अपने ठेकों के जरिए कर रही है। इसी तरह से तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ में भी है।

राजनीति भी हावी

शिमला में लक्कड़ बाजार ऑकलैंड रोड पर और छोटा शिमला में लोग इन शराब ठेकों के विरोध में उतरे हैं। इसमें कहीं न कहीं राजनीति भी हावी है। क्योंकि यह चुनावी साल है, लिहाजा विरोधी दलों को सरकार के खिलाफ मुद्दा चाहिए। शराब का मुद्दा भी जोर पकड़ रहा है इसलिए इसमें राजनीति भी मिल गई है। विरोधी दल भी लोगों की आवाज को बुलंद करने में लगे हैं और शराब ठेकों का विरोध कर रहे हैं। सरकार द्वारा खुद शराब बेचे जाने को लेकर भी विपक्ष मुद्दा बना चुका है जिसमें उसने धांधलियों के आरोप तक जड़े हैं।

महिलाओं का गुस्सा

ग्रामीण क्षेत्रों में शराब की जगह-जगह खुली दुकानों ने यहां लाखों घरों को तबाह करके रख दिया है। गांवों में शराबी सुबह ही शराब के ठेके पर खड़ा हुआ दिखाई दे जाता है, जिससे कई मौतें भी निरंतर हो रही हैं। जिसके घर में इस नशे से तबाही हो रही है वहां के हालात समझे जा सकते हैं । अलबत्ता कुछ इन्हीं हालातों में चूल्हा छोड़कर महिलाओं को बाहर आना पड़ा है। सरकार इसके एक पहलू को देख रही है,जबकि दूसरे पहलू को नहीं देख रही और यही कारण है कि अब जागरूक महिलाएं सड़कों पर उतरने लगी हैं। महिलाओं के लिए यह मुद्दा अहम है जो चाहती हैं कि उनकी बस्ती में शराब का ठेका न  हो क्योंकि उनके परिवार के लोग बड़े पैमाने पर इससे नशावृत्ति की ओर बढ़ रहे हैं।

स्कूल-मंदिर के पास नहीं खुलती दारू की दुकान

अदालती फैसलों के बाद यह तय किया गया था कि शराब के ठेकों को पूरी तरह से कवर किया जाएगा और ये रोड पर सामने नहीं दिखेंगे। इसपर यहां अमल भी किया गया है। वहीं स्कूल व धार्मिक स्थल के नजदीक भी कोई ठेका नहीं होगा और इस फैसले को भी लगभग यहां लागू कर रखा है। फिर भी कहीं खुल जाता है तो लोगों के विरोध के बाद उसे हटा दिया जाता है। जिलाधीश की अध्यक्षता में कमेटी यह तय करती है। अब की बार बस्ती में ठेके का विरोध सभी को हैरान कर देने वाला है, लेकिन यह हो रहा है लिहाजा अब सरकार ठेकों को विरोध स्थलों से दूर पहुंचाने के लिए निर्देश जारी कर चुकी है।

प्रदेश में शराब का बढ़ता कारोबार

हिमाचल प्रदेश में कभी शराब से 300 से 400 करोड़ रुपए का राजस्व जुटाया जाता था। सरकारी क्षेत्र में कभी टेंडर के माध्यम से तो कभी नीलामी के माध्यम से ठेकों की बिक्री होती रही। अपनी आर्थिकी को बढ़ाने के लिए सरकार हर साल आबकारी नीति में संशोधन करती है,ताकि उसका राजस्व बढ़े। इस साल शराब के ठेके टेंडर और नीलामी दोनों प्रक्रियाओं से दिए गए हैं और 1105 करोड़ रुपए का लक्ष्य सरकार ने तय किया,जिसे हासिल भी किया गया है। जिस तरह की सरकार की सोच थी उससे  यह लग रहा था कि यह कमाई 1200 करोड़ रुपए से ऊपर जाएगी, लेकिन तीन जिलों में जो मामला अटका उससे थोड़ा फर्क पड़ गया।

साल-दर-साल बढ़ रहा खजाना

पिछले पांच साल की बात करें तो हर साल सरकार 100 से 150 करोड़ रुपए अधिक की सोच लेकर चली। पांच साल पहले 4800 करोड़, फिर 5800 करोड़ और फिर 6800 करोड़ से लगातार कमाई बढ़ती गई, जिसके बाद 7800 करोड़ और पिछले साल सीधे 1050 करोड़ की कमाई का लक्ष्य रखा गया, जिसे हासिल भी किया गया।

सरकार खुद बेचती है शराब

हिमाचल प्रदेश में ठेकेदारों को शराब पहुंचाने का काम खुद सरकार कर रही है। पिछले साल सरकार ने इसमें मुनाफा देखते हुए अपनी कारपोरेशन का गठन किया, जो कि शराब निर्माता कंपनियों से शराब लेती है और ठेकेदारों को आगे सप्लाई करती है। इसमें भी 500 करोड़ से ज्यादा का मुनाफा सरकार ने कमा लिया है,जो कि शराब की ही कमाई है। यानी सरकार को 1500 करोड़ रुपए से ऊपर की कमाई इसमें होने लगी है और इस साल भी इससे ज्यादा की कमाई आबकारी विभाग व बीवरेज लिमिटेड की होगी।

हिमाचल में बनते हैं कई ब्रांड

हिमाचल प्रदेश के परवाणू में देशी शराब निर्माण की दो कंपनियां चल रही हैं, जबकि मंडी में अंग्रेजी शराब बनाने की एक डिस्टिलरी काम कर रही है। इसी तरह से हमीरपुर , सिरमौर में तीन डिस्टिलरी चल रही है। नालागढ़ में भी तीन हैं और ऊना के मैहतपुर में भी अंग्रेजी व देसी शराब बनाने का काम किया जा रहा है। सोलन की ब्रूरी इसके लिए सालों से मशहूर है, जहां पर अब सोलन नंबर वन ब्रांड की शराब बनाई जाती है। इसी तरह से देशी में परवाणू में ओरेंज फ्लेवर की शराब बनाई जा रही है। सरकारी क्षेत्र में भी सरकार खुद शराब बनाने का काम कर रही है। सरकारी क्षेत्र की ऊना नंबर वन देशी शराब में अच्छा नाम रखती है जोकि डबल डिस्टिल्ड शराब है। इसे अंग्रेजी शराब के मुकाबले का माना जाता है मगर यहां  निजी कंपनियों की शराब उससे अधिक बिकती है, जिसके पीछे भी कई कारण हैं। यहां पर शराब के उत्पादन की बात करें तो देशी शराब 1 करोड़ 97 लाख प्रूफ लीटर (एक प्रूफ लीटर यानी 12 बोतल )तथा अंगे्रजी शराब 1 करोड़ 68 लाख प्रूफ लीटर का कोटा आबकारी एवं कराधान विभाग ने तय कर रखा है।  विभाग का मानना है कि प्रदेश में ही अधिकांश शराब तैयार की जाती है। हालांकि बाहरी राज्यों से भी कुछ बड़े ब्रांड की शराब यहां पर आती है।

ठेकेदारों को दे दी खुली छूट

यह शराब आर्थिकी का ही दबाव था कि सरकार ने शराब ठेकेदारों को मनमाने रेट पर शराब बेचने का अधिकार दे दिया। यहां संशोधित की गई आबकारी पालिसी में साफ कहा गया है कि शराब की बोतल पर मिनिमम सेल प्राइज होगा  जबकि पहले मैक्सिमम सेल प्राइज रहता था। इसके बाद जहां-जहां पर भी शराब के ठेके खुले हैं ,वहां पर प्रति बोतल 100 से 150 रुपए का इजाफा किया गया है। शराब के शौकीन इसका विरोध कर रहे हैं ,लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता। पहले आबकारी विभाग को अधिक दाम को लेकर शिकायत की जा सकती थी, लेकिन अब शिकायत नहीं हो सकती क्योंकि मनमाने दाम पर ठेकेदार शराब बेच सकते हैं।

सरकार के नियम दरकिनार

इस मामले को लेकर आबकारी कराधान मंत्री के पास भी शिकायत गई। सरकार के निर्णय का विरोध हो रहा है, जिस पर विभाग ने ठेकेदारों को निर्देश दिए हैं कि  मिनिमम सेल प्राइज से 20 फीसदी अधिक दाम में ही शराब बिक सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है क्योंकि ठेकेदारों ने सरकार को करोड़ों रुपए अधिक देकर ठेका हासिल किया है।

आबकारी नीति की कमजोरी

राज्य सरकार आबकारी नीति को सशक्त रूप नहीं दे पा रही है, जिससे उसकी एक दफा तय नीति के मुताबिक कमाई हो और लोगों पर भी कोई फर्क न पड़े।  परंतु यहां हर साल नीति में बदलाव होता है, जिसके पीछे राजनीतिक कारण भी रहते हैं। राजनीतिज्ञों पर शराब लॉबी  का दबाव रहता है, उस पर इस साल चुनाव भी होने हैं और ऐसे में सरकार इन शराब ठेकेदारों को भी नाराज नहीं कर सकती।

पारदर्शिता लाने की कोशिश में सरकार

शराब की अपनी दुकानें चलाने का एक महत्त्वपूर्ण फैसला इस बार लिया गया है जिसके चलते चंबा, किन्नौर व ऊना में सरकारी 265 दुकानें खुलेंगी। इसमें 500 से ज्यादा कर्मचारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है, वहीं इन ठेकों को पारदर्शी बनाने की कोशिश हो रही है। पारदर्शिता के लिए यहां पर बिलिंग सिस्टम को मजबूत किया जाएगा, वहीं सीसीटीवी कैमरे आदि भी लगाए जाएंगे।  बाकायदा लोगों को शराब की बोतल का बिल भी दिया जाएगा जो कोई निजी ठेकेदार नहीं देता।

आर्थिकी को कोई और साधन ढूंढे सरकार

भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष इंदु गोस्वामी का कहना है कि शराब ठेकों के खिलाफ महिलाओं का आंदोलन जायज है जो पहले होना चाहिए था। परंतु अब हो रहा है तो भी ठीक है क्योंकि इससे लाखों घर तबाह हो गए हैं। बेशक यह सरकार की आर्थिकी का साधन है परंतु सरकार को इसकी बजाय कोई दूसरे साधन ढूंढने चाहिएं। महिला मोर्चा इस आंदोलन में महिलाओं के साथ है और जल्दी ही सड़कों पर उतरेगा। उन्होंने कहा कि अब सरकार खुद शराब बेचने जा रही है, जो कि शर्म की बात है,वहीं स्टेट रोड को डी-नोटिफाई करना भी बेहद दुखद बात है।

महिलाओं का विरोध सही, घर उजाड़ देती है दारू

महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुशीला नेगी का कहना है कि शराब हंसते-खेलते घरों को बर्बाद कर रही है। महिलाएं प्रदेश में शराब ठेकों का विरोध करने उतरी हैं, यह बिल्कुल सही है और इस तरह के आंदोलन होने चाहिएं। उन्होंने कहा कि शराब न  हो तो कई घर बर्बाद होने से बच जाएंगे। लोगों के घरों को सुख-शांति और समृद्धि देने के लिए जरूरी है कि शराब जैसे नशे की प्रवृत्ति को समाप्त किया जाए। उन्होंने कहा कि महिलाओं को इसके लिए आंदोलन जारी रखना चाहिए, जिसमें महिला कांग्रेस हर मोर्चे पर उनका सहयोग करने के लिए तैयार है।

करोड़ों बोतलें गटक जाता है हिमाचल

प्रदेश में शराब की खपत की बात करें तो देशी शराब की खपत एक करोड़ 97 लाख प्रूफ लीटर सालाना की है, जबकि अंग्रेजी शराब की सालाना खपत एक करोड़ 68 लाख प्रूफ लीटर (एक प्रूफ लीटर यानी 12 बोतलें) ंकी बताई जाती है। आबकारी एवं कराधान विभाग कुल कोटा जारी करता है, जिसे ठेकेदारों को आगे बेचना होता है। इतनी शराब इस समय हिमाचल के लोग एक साल में पी रहे हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कारोबार कितना अधिक फैल चुका है। आज के दौर में बुजुर्ग से लेकर बच्चे तक शराब का सेवन करते हैं ।

लुगड़ी के 9 ठेके

हिमाचल में लोकल शराब जिसे लुगड़ी कहा जाता है, के  भी शराब के ठेके हैं। कांगड़ा में लुगड़ी के पांच ठेके चल रहे हैं,जहां घरों में तैयार शराब बेची जाती है। वहीं कुल्लू में लुगड़ी के दो, मंडी में भी दोे लुगड़ी के ठेके आधिकारिक रूप से चलाए जा रहे हैं।

सबसे पहले यहां हुआ विरोध

शराब ठेकों के खिलाफ प्रदेश के कई क्षेत्रों में विरोध तेज है। इसकी शुरुआत पांवटा साहिब, बिलासपुर के नौण, नूरपुर के औंद, सुंदरनगर, कांगड़ा, पालमपुर, जोगिंद्रनगर के तकलेड़, ठियोग के रईघाट तथा हमीरपुर के कुछ स्थानों के साथ शिमला में दो स्थानों पर हुई।

1822 से 1017 रह गए ठेके

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि नेशनल हाई-वे से शराब ठेके उठा दिए जाएं ,जिसका तोड़ निकालने के लिए सरकार ने स्टेट रोड को डी-नोटिफाई कर दिया है वहीं एनएच को भी डी-नोटिफाई करने को केंद्र सरकार को लिखा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यहां पर शराब ठेकों की गिनती 1822 से घटकर 1017 ही रह गई है, जिसे आने वाले दिनों मं बढ़ाया जाएगा। 10 साल पहले की बात करें तो यहां गिने-चुने शराब के ठेके होते थे। जिला मुख्यालय और मुख्य क्षेत्रों में ही शराब का ठेका मिलता था जो धीरे-धीरे बढ़ते गए।

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