समुद्रगुप्त के समय समाप्त हुआ कुनिंदों का शासन

By: May 3rd, 2017 12:05 am

समुद्रगुप्त छोटे-छोटे राज्यों और विभिन्न गणों का हन्ता माना जाता है। इलाहाबाद में स्थित समुद्रगुप्त के प्रशस्ति-स्तूप पर जो 350 सन् ई. के आसपास स्थापित हुआ था, कुनिंदों का उल्लेख नहीं है, जिससे लगता है कि तब तक कुनिंदों का शासन पूरी तरह समाप्त हो गया था…

गणराज्य व्यवस्था

जो भी हो कुनिंदों के सिक्कों और प्राचीन साहित्यिक संदर्भों से सभी विद्वान एकमत से स्वीकार करते हैं कि कुनिंद एक पहाड़ी जनपद रहा है जो कांगड़ा, हमीरपुर से लेकर अंबाला, सहारनपुर और कुमाऊं तक के क्षेत्र के शासक थे। एलग्जेंडर कनिंघम ने कुल्लू के कुनैतों को कुनिंदों का वंशज माना है। उनके इस कथन में बहुत सच्चाई लगती है, क्योंकि कनैत या कुनैत इस क्षेत्र के मूल निवासी हैं और न केवल कुल्लू अपितु साथ लगते क्षेत्र किन्नौर, मंडी, कांगड़ा, शिमला और सिरमौर में भी कनैत जाति के लोग आज भी रह रहे हैं। कुनैत दो श्रेणियों में बंटें हैं-खशिया और राव। खशिया लोग खश नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं जो आज भी अपने-आप को उच्च कोटि के राजपूत मानते हैं। कुनिंदों ने दूसरी सदी के बाद कोई सिक्के जारी किए ऐसा प्रतीत नहीं होता, न ही उनका तत्पश्चात किसी साहित्य में उल्लेख मिलता है। कुछ विद्वान ह्वेनसांग द्वारा उल्लिखित सुध्न या सूध लोगों को कुनिंद मानते हैं। स्रहण उनकी राजधानी थी। कनिंघम ने इस स्थान को यमुना के पश्चिम में सहारनपुर से सरसावा और अंबाला जाने वाले राजमार्ग पर स्थित माना है। यद्यपि सुहन लोग भी उसी क्षेत्र में रहते थे जहां कुनिंदों का गणराज्य  स्थापित था, परंतु इससे बढ़कर इस संबंध में कोई और प्रमाण नहीं मिलते। अतः ह्वेनसांग के सुध्न को कुनिंद मानना अधिक उपयुक्त नहीं लगता। ऐसा लगता है कि दूसरी ईस्वी सदी के आसपास गणराज्य  विघटित हो गया। संघ के सदस्य अलग हो गए। फलतः उनकी शक्ति क्षीण हो गई। गणराज्यों की परंपरा और सदियों  पुराना कुनिंदों का शासन गुप्त काल में प्रायः समाप्त हो गया। समुद्रगुप्त छोटे-छोटे राज्यों और विभिन्न गणों का हन्ता माना जाता है। इलाहाबाद में स्थित समुद्रगुप्त के प्रशस्ति-स्तूप पर जो 350 सन् ई. के आसपास स्थापित हुआ था, कुनिंदों का उल्लेख नहीं है, जिससे लगता है कि तब तक कुनिंदों का शासन पूरी तरह समाप्त हो गया था।

औदुंबर ः कुनिंदों के साथ औदुंबरों का भी प्रायः नाम आता है। पाणिनी ने अपनी अष्टाध्यायी में उनका उल्लेख ‘राजन्य वर्ग’ में किया है जिसका अर्थ यह है कि उन समय वे गणराज्य के रूप में स्थापित थे। महाभारत और वृहत्संहिता में भी उनका उल्लेख आया है, जहां उन्हें उत्तर भारत की जातियोें में से दिखाया गया है। औदुंबरों से संबंधित सर्वाधिक ज्ञान हमें उनके सिक्कों से प्राप्त होता है। इनके सिक्के प्रमुखतः कांगड़ा जिला के ज्वालामुखी, पठानकोट और होशियारपुर से मिले हैं। इन्हीं खोजों के कारण औदुंबरों को कांगड़ा, गुरदासपुर और होशियारपुर क्षेत्रों का प्राचीन शासक माना जाता है। कनिंघम का कथन है कि वर्तमान नूरपुर क्षेत्र का प्राचीन नाम दहमेरी या (धमेरी)था।

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