सियासत की धर्मशाला

By: May 14th, 2017 12:05 am

स्मार्ट सिटी धर्मशाला का समूचा विकास महज राजनीतिक कारणों के चलते ही हुआ है। यह सियासत ही थी कि कभी यहां हिमाचल भवन बना तो कभी कोई क्षेत्रीय कार्यालय। कभी विधानसभा परिसर अस्तित्व में आया तो कभी मिनी सचिवालय की इमारत बुलंद हुई। दूसरी राजधानी का दर्जा भी इसी फेहरिस्त में शामिल है। इस बार दखल में देखें सियासत की धर्मशाला का सफर…

अंग्रेजों ने ही दिया सिटी का दर्जा

नगर परिषद से नगर निगम धर्मशाला बने धर्मशाला शहर को ब्रिटिश शासनकाल में ही शहर का दर्जा प्राप्त हुआ था। अंग्रेजों के शासन के दौरान छह मई 1867 को धर्मशाला में नगर परिषद का दर्जा दिया गया था। अंगे्रजों के समय बनी नगर परिषद का दो वर्ष पहले ही स्वरूप बदला गया है।

प्रदेश की दूसरी राजधानी का दर्जा प्राप्त करने के चलते पांच अक्तूबर, 2015 को इसे नगर निगम बनाया गया। नगर निगम बनाने के लिए धर्मशाला शहर के साथ लगते नौ गांवों को नगर निगम में जोड़ा गया। साथ ही केंद्र की स्मार्ट सिटी योजना में भी धर्मशाला शहर को शामिल किया गया है। प्रदेश की सरकारों ने समय-समय पर धर्मशाला को सुविधाओं से जोड़ने का प्रयास किया परंतु पर्यटन नगरी को समय के साथ विकसित नहीं किया जा सका।

शहर की कूहलों का नामोनिशान खत्म

अंग्रेजों के समय धर्मशाला शहर को सिंचित करने वाली कूहलों का नामोनिशान मिट गया है। पूर्व में कोतवाली, कचहरी, सिविल लाइन व जेल तक सिंचाई की जाती थी। लेकिन मौजूदा समय में धर्मशाला शहर में हरियाली लाने वाली इस कूहल का नामोनिशान तक नहीं बचा है। न ही इस दिशा में किसी ने राजनीतिक इच्छा शक्ति दर्शाई।

पेयजल योजनाएं अंग्रेजों की देन

पर्यटन नगरी धर्मशाला को पीने का पानी भी अंग्रेजों की देन है। अंग्रेजों द्वारा बिछाई पेयजल लाइन पर समूचे शहर को सप्लाई की जाती थी।  उसके बाद धर्मशाला शहर व आसपास के क्षेत्रों के लिए नई पेयजल योजनाएं भी गिनती की ही बन पाई हैं।

 बनते-बनते रह गया अक्षरधाम

धर्मशाला से मात्र सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित खनियारा के प्राचीन अंघजर महादेव मंदिर के साथ ही भाजपा सरकार के समय में अक्षरधाम मंदिर बनाने का प्लान बनाया गया था। इसके लिए बाहरी राज्यों के कारीगारों द्वारा जमीन भी देखी गई थी, लेकिन  अक्षरधाम मंदिर बनाने का प्लान सिरे नहीं चढ़ पाया। इतना ही नहीं, स्थानीय लोगों ने भी बहुमूल्य वन संपदा के स्थान पर अक्षरधाम मंदिर न बनाने का प्रस्ताव पारित किया था। जिससे  धर्मशाला में अक्षरधाम मंदिर की नींव अभी तक सर्वे के बाद सिमटती हुई नजर आ रही है।

शहर में खास

— अंडर ग्राउंड डस्टबिन

— ओपन एयर जिम

— मुख्यालय, तिब्बती निर्वासित सरकार

— यहीं ईजाद हुआ मोमो

— सबसे खूबसूरत क्रिकेट स्टेडियम

— राज्य युद्ध संग्रहालय

— राज्य शहीद स्मारक

— गोरखा संग्रहालय

— राज्य स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय

शिक्षा बोर्ड से लेकर क्रिकेट स्टेडियम तक

धर्मशाला में भाजपा के प्रयोग

धर्मशाला को दूसरी राजधानी का दर्जा देने के लिए शुरू हुई सियासत के बीच जब प्रो. प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बने तो धर्मशाला में सचिवालय भवन का निर्माण किया गया। वर्ष 2002 में मिनी सचिवालय का शुभारंभ पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने तत्कालीन परिवहन मंत्री किशन कपूर की  अध्यक्षता में किया था। इससे पूर्व जब शांता कुमार मुख्यमंत्री बने तो धर्मशाला में प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय लाया गया। धर्मशाला में प्रदेश विश्वविद्यालय का रीजनल सेंटर भी पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार व किशन कपूर के समय में ही बनाया गया। धर्मशाला शहर में शहीद स्मारक का निर्माण भी पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार द्वारा वर्ष 1977 में किया गया था। धर्मशाला के खनियारा में फूड एडं क्राफ्ट इंस्टीच्यूट की स्थापना पूर्व मंत्री किशन कपूर के समय में वर्ष 2012 में की गई। इतना ही नहीं,भाजपा ने धर्मशाला में खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण करवाया।

अब स्मार्ट सिटी में स्‍काई बस की सैर…

स्मार्ट सिटी को कांग्रेस की देन

वर्ष 1972 से 1977 तक धर्मशाला के विधायक रहे प्रो. चंद्र वर्कर ने सर्वप्रथम धर्मशाला में सड़कों का जाल बिछाकर पूरे क्षेत्र की आवाजाही का संपर्क बेहतर बनाया था। इसके अलावा कांग्रेस के समय में कई विभागों के मुख्यालय भी यहां स्थापित किए गए। कांग्रेस के शासनकाल में ही मार्च 2017 में धर्मशाला शहर को प्रदेश की दूसरी राजधानी का दर्जा मिला है। इसके अलावा धर्मशाला के समीपवर्ती तपोवन स्थित विधानसभा भवन की स्थापना भी कांग्रेस पार्टी की सरकार के समय वर्ष 2006 में ही शुरू की गई थी। प्रो. चंद्र वर्कर के बाद धर्मशाला को सुधीर शर्मा के रूप में नेता मिला है। सुधीर शर्मा ने अंग्रेजों द्वारा बनाई गई नगर परिषद को नगर निगम बनाने का बड़ा काम किया है। इसके अलावा धर्मशाला शहर की सड़कों का कंकरीटीकरण व टाइलें बिछाकर सौंदर्यकरण किया गया है। श्री शर्मा ने धर्मशाला के चौराहों को संवारने का भी अहम कार्य किया है। इसके अलावा शहीद स्मारक के निकट युद्ध संग्रहालय का निर्माण कर जहां शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देने का पुण्य कार्य किया है। धर्मशाला-मकलोडगंज को जोड़ने के लिए रोप-वे बनाने की दिशा में भी बेहतर प्रयास किए हैं। अब धर्मशाला शहर में विदेशों की तर्ज पर स्काई बस की सुविधा उपलब्ध करवाने की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है।

बिन मांगे मोती मिल  मांगे मिले न भीख…

शिमला के बाद प्रदेश के सबसे बड़े शहरों में शुमार धर्मशाला में हाई कोर्ट के सर्किट बैंच की मांग अभी भी अधर में है। कांगड़ा सहित चंबा, हमीरपुर व अन्य समीपवर्ती जिलों के लोगों को शिमला के चक्करों से निजात दिलाने के लिए  करीब दो दशकों से हाई कोर्ट के सर्किट बैंच को धर्मशाला में खोलने की मांग को प्रमुखता से उठाया जा रहा है। इसके लिए पिछले लंबे समय से अधिवक्ताओं सहित स्थानीय लोगां द्वारा भी इस मांग को उच्च न्यायालय प्रशासन सहित सरकारों के समक्ष भी उठाया जा रहा है। पिछले साल भी अधिवक्ताओं ने अनशन किया था। धर्मशाला न्यायालय के अधिवक्ताओं द्वारा किए गए आंदोलन की गूंज शिमला तक पहुंची थी, जिसके बाद हाई कोर्ट प्रशासन ने जिला बार एसोसिएशन धर्मशाला के पदाधिकारियों को वार्ता के लिए शिमला भी बुलाया। धर्मशाला के लिए पिछले 40 वर्ष से हाई कोर्ट के सर्किट बैंच के लिए उठाई जा रही आवाज और लंबे आंदोलन होने के बाद भी नतीजा शून्य ही रहा है।

वोट बैंक की खातिर कांगड़ा के टुकड़े

आजादी से पहले देश के सबसे बड़े जिला मुख्यालय धर्मशाला से वर्तमान लाहुल एवं स्पीति, कुल्लू, ऊना व हमीरपुर का शासन चलता था, लेकिन कालांतर में राजनीतिक खेल के चलते कांगड़ा को कई बार तोड़ने का प्रयास हुआ। मौजूदा समय में लाहुल-स्पीति, कुल्लू, ऊना व हमीरपुर अलग-अलग जिला बना दिए गए हैं।  कांगड़ा को पालमपुर, नूरपुर व देहरा के नाम पर भी तोड़ने के प्रयास अकसर चलते रहते हैं। राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक की खातिर प्रदेश के सबसे बड़े जिला के अस्तित्व को मिटाने में लगी रहती हैं, जबकि कांगड़ा राजनीतिक दृष्टि से प्रभावशाली व सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाता है। राजनीतिक दलों ने अपनी सुविधा के लिए पालमपुर, देहरा व नूरपुर को अलग करते हुए संगठनात्मक जिलों का गठन कर रखा है।

बस नाम की दूसरी राजधानी

मेडिकल कालेज छिटककर टांडा शिफ्ट

वर्ष 1996 में धर्मशाला को मेडिकल कालेज मिला, जिससे कांगड़ा ही नहीं बल्कि साथ लगते अन्य जिलों  को भी इस मेडिकल कालेज एवं अस्पताल से स्वास्थ्य सुविधा का लाभ मिलता था। यहीं नहीं, मेडिकल कालेज के चलते शहर के लोगांे को भी रोजगार के बेहतर विकल्प उपलब्ध हुए थे। धर्मशाला अस्पताल में इस मेडिकल कालेज को शुरू तो कर दिया, लेकिन इस अस्पताल में अन्य व्यवस्थाएं उपलब्ध नहीं करवाई जा सकीं। नतीजतन धर्मशाला में करीब 11 साल तक चले इस मेडिकल कालेज को नवंबर 2007 में टांडा (कांगड़ा) शिफ्ट कर दिया गया। टांडा अस्पताल शिफ्ट होने के साथ ही धर्मशाला के कारोबार पर भी इसका विपरीत असर पड़ा। इस मेडिकल कालेज के लिए निर्धारित नियमांे के तहत भूमि की उपलब्धता ही नहीं हो पाई। आलम यह रहा कि धर्मशाला में मेडिकल कालेज होने के बाद भी यहां पर अध्ययनरत प्रशिक्षुओं के होस्टल टांडा में ही थे।

डिग्री कालेज जस का तस

1926 में धर्मशाला डिग्री कालेज की स्थापना हुई थी। ब्रिटिश शासनकाल के समय अस्तित्व में आए इस डिग्री कालेज में धर्मशाला ही नहीं बल्कि प्रदेश भर से छात्र पढ़ने के लिए यहां पहुंचते हैं।  धर्मशाला डिग्री कालेज प्रदेश के बड़े कालेजों में शुमार है, लेकिन अंग्रेजों द्वारा दी गई सुविधा के विस्तारीकरण पर सात दशकों के बाद भी कोई खासे प्रयास नहीं हो पाए हैं।

क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र का अपना भवन नहीं

धर्मशाला को प्रदेश विश्वविद्यालय का क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र तो मिला,लेकिन वह भी विधि विभाग के एक छोटे से भवन में चल रहा है। इस केंद्र में न तो शिक्षकों की पूरे पदां पर तैनाती की गई है और न ही अन्य व्यवस्थाओं को पूरा किया गया है।

सीयू पर खींचतान जारी

प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय भी राजनीतिक अखाड़े में फुटबाल बन कर रह गई है। वर्ष 2007 में केंद्र से केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए घोषणा हुई थी। 2009 में  केंद्रीय विवि ने धर्मशाला से ही कार्य करना शुरू किया, लेकिन आज तक केंद्रीय विश्वविद्यालय को स्थायी भवन नहीं मिल पाया है। सीयू को भी अब अन्य स्थान पर ले जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्रीय विवि का प्रशासनिक कार्यालय जिला मुख्यालय धर्मशाला में चलाया जा रहा है, जबकि इसकी कक्षाएं अस्थायी भवन शाहपुर में चल रही हैं।  स्थापना के फेर में फंसी सीयू के लिए भूमि चयन एक बड़ा सवाल बना हुआ है। हालांकि धर्मशाला शहर के समीप जदरांगल तथा देहरा दोनों ही स्थानों पर इसकी स्थापना के लिए भूमि की उपलब्धता होने की बातें राजनीतिक पार्टियों द्वारा की जाती हैं।

होटल प्रबंधन संस्थान तक नहीं

कांगड़ा का जिला मुख्यालय धर्मशाला व मकलोडगंज विश्व विख्यात पर्यटक स्थल है। यहां हर वर्ष लाखों देशी व विदेशी सैलानी पहुंचते हैं। बावजूद इसके भारतीय होटल प्रबंधन संस्थान हमीरपुर को भेंट कर दिया गया। हालांकि धर्मशाला में इस संस्थान की उपयोगिता अधिक थी। कांगड़ा घाटी पर्यटन गतिविधियों का प्रमुख केंद्र है।  ऐसे में धर्मशाला में होटल प्रबंधन संस्थान होने से युवाओं को अच्छा विकल्प मिल सकता था।

इंजीनियरिंग कालेज नहीं मिला

प्रदेश की दूसरी राजधानी धर्मशाला को अंग्रेजों ने शिक्षा का हब बनाने के प्रयास शुरू किए थे। इसके लिए बाकायदा सैकड़ों कनाल रिजर्व भूमि का आबंटन भी कर दिया था। बावजूद इसके आज तक तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में धर्मशाला को कुछ नहीं मिल पाया है। आज तक कोई इंजीनियरिंग कालेज भी धर्मशाला को नसीब नहीं हो पाया है।

डाक्टरों का भी टोटा

धर्मशाला में किसी जमाने में शुरू किया गया अस्पताल भी आज अपनी दयनीय हालत में पहुंचा है। पूर्व में इस बड़े अस्पताल में ही कांगड़ा सहित अन्य जिलों के लोग भी अपना उपचार करवाने के लिए पहुंचते थे, लेकिन मौजूदा समय में आलम यह है कि धर्मशाला अस्पताल में चिकित्सकों का ही टोटा हो गया है।

पर्यटन को नहीं लग पाएं पंख

धौलाधार की तलहटी में बसे धर्मशाला की खूबसूरती व आबोहवा को देखते हुए अंग्रेजी हुकूमत ने धर्मशाला को देश की राजधानी बनाने की योजना बनाई थी। धर्मशाला को हिल स्टेशन बनाकर विश्व विख्यात पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने का खाका ब्रिटिश शासनकाल में ही तैयार किया गया था। बावजूद इसके कांगड़ा घाटी में पर्यटकों को आधुनिक सुविधाएं देने के लिए आज भी समय की जरूरतानुसार कार्य नहीं हो पाया है।

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