सीजन के लिए…दनदनाने लगे नेपालियों के फोन

पतलीकूहल —  प्रदेश में सेब, आलू व मटर की फसल को एकत्रित करने में नेपाल से आए मजदूरों का अहम रोल होता है। यदि पड़ोसी देश नेपाल से ये मजदूर हिमाचल में दस्तक न दें तो यहां की मुख्य नकदी फसलें आलू , मटर व सेब खेतों व बागानों में सड़ जाती। हर वर्ष प्रदेश के कई हिस्सों में जाकर ये लोग आलू, मटर व सेब की फसल का काम निपटाकर प्रदेश की आर्थिकी को सही मुकाम पर पहुंचा जाते हैं। यहां आकर अच्छी कमाई कर करीब तीन महीनों के बाद सीजन समाप्त होने पर ये अपने वतन लौट जाते हैं। सेब के लिए कुल्लू घाटी व शिमला, किन्नौर  और शीत मरुस्थल लाहुल-स्पीति में सीजन के खत्म होने तक डटे रहते हैं। कुल्लू घाटी में सेब सीजन आरंभ होने के लिए अभी करीब दो महीने  हैं, लेकिन नेपाली मजदूर अपने मालिकों से संपर्क कर आने की तैयारी करने में लगे हैं।  पड़ोसी देश से आने वाले ये मजदूर सेब सीजन से पहले प्लम व नाशपाती सीजन के लिए पहुंचना प्रारंभ हो गए हैं और सेब के अंतिम दौर तक यानी सितंबर महीने के अंतिम सप्ताह में वापसी की तैयार में जुट जाते हैं। कुल्लू घाटी में नेपाली मजदूरों के ऊपर ही सेब की फसल को गंतव्य तक पहुंंचाने का दारोमदार होता है। यदि घाटी में ये मजदूर न आएं तो बागबानों की यह फसल बागानों में ही धराशायी हो जाए। घाटी में कई नेपाली परिवार ऐसे हैं, जो जमींदारों के पास पूरा वर्ष बागानों में बने मकानों में ही रहते हैं। कई परिवार तो वहीं पर कामकाज करके अपने बच्चों को यहां के सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे हैं। कुल्लू में रहने वाले नेपाली लाहुल-स्पीति में आलू व मटर का सीजन भी लगाते हैं, जिनमें अधिकतर लोग स्वयं लीज पर जमीन लेकर अच्छी कमाई करते हैं। यदि ये मजदूर नेपाल से न आएं तो कुल्लू के बागबानों को भारी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। जब तक  सेब का कार्य समाप्त न हो, सेब के तुड़ान व ढुलाई में व्यस्त रहते हैं। हर वर्ष नेपाल से आने वाला यह मजदूर जहां बागबानों व किसानों की फसल को गंतव्य तक पहुंचाता है, वहीं तीन महीनों तक अपने घर से दूर रहकर नेपालियों की इस मंडली में बच्चे भी शामिल होते हैं। नेपाल में स्कूल में छुट्टियां जुलाई-अगस्त में होती है तथा ये बच्चे भी एक से डेढ़ महीना सेब सीजन लगाकर अच्छी कमाई कर जाते हैं। बागबान खेखराम नेगी ने बताया कि हर वर्ष उनके पास तकरीबन 15 से 20 लोग प्लम सीजन के शुरू होने से पहले ही पहुंच जाते हैं, उनकी प्लम, नाशपाती व सेब की फसल को ढुलाई कर गोदामों तक पहुंचाते हैं। हालांकि इस बार गत वर्ष के मुकाबले सेब की फसल  कम आंकी गई है, लेकिन हर वर्ष कुल्लू व लाहुल-स्पीति मजदूरी के लिए  आने वाले नेपाली घाटी में पहले प्लम के तैयार होने पर पहुंच जाते हैं।

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