1100 करोड़ से जवां होंगे प्राकृतिक जल स्रोत

जल के लिए काम

ग्रीन क्लाइमेट प्रोजेक्ट को नाबार्ड देगा मदद, आज होगी वीडियो कान्फ्रेंसिंग

शिमला – प्रदेश के प्राकृतिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए आईपीएच विभाग ने एक विशेष प्रोजेक्ट बनाया है। 1100 करोड़ रुपए की इस योजना को नाबार्ड के जरिए सिरे चढ़ाने की योजना है। सूत्रों के अनुसार सोमवार को इस सिलसिले में नाबार्ड के आला अधिकारियों के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत की जाएगी। नाबार्ड मुख्यालय मुंबई में बैठे अधिकारियों से विस्तृत चर्चा में बताया जाएगा कि किस तरह से हिमाचल में पुराने जल स्रोतों को रिवाइव किया जा सकता है और इससे यहां कितना अधिक लाभ होगा। धीरे-धीरे प्रदेश के प्राकृतिक जल स्रोत जो कभी यहां के लोगों के लिए मुख्य पेयजल या सिंचाई का साधन थे, खत्म हो चुके हैं। कई ऐसी खड्डें हैं, जिनमें बेहताशा पानी रहता था, लेकिन अब वे सूख चुकी हैं। इनका सर्वेक्षण भी इसी प्रोजेक्ट के जरिए किया जाएगा। हालांकि इसमें कुछ जानकारी आईपीएच विभाग के पास उपलब्ध हैं, जिसे पर्याप्त नहीं माना जा सकता। ऐसे में उसके द्वारा तैयार किए गए ग्रीन क्लाइमेट प्रोजेक्ट के अधीन व्यापक सर्वेक्षण होगा और उन पुराने स्रोतों को कैसे पुनर्जीवित किया जा सकता है, इस पर काम होगा। बताया जाता है कि नाबार्ड के क्षेत्रीय स्तर के अधिकारियों से इस पर चर्चा हो चुकी है और वे लोग ऐसे प्रोजेक्टों को फंडिंग के लिए तैयार भी हैं, परंतु इसका फैसला आला अधिकारी करेंगे और उनके साथ आईपीएच के अधिकारी वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत करेंगे।

खातरियां विलुप्त

मंडी, सरकाघाट, हमीरपुर के कई इलाकों में पुराने जमाने में खातरियां होती थीं, लेकिन अब वे खातरियां लगभग विलुप्त हो चुकी हैं जिनको पुनर्जीवित करने की जरूरत है।

कुदरती जल बचाएंगे

प्रोजेक्ट के तहत आईपीएच विभाग पुराने चश्मों, बावडि़यों, खड्डों को वापस पानी से भरने के लिए प्रयास करेगा, ताकि पानी की जरूरत को पूरा किया जा सके। इसके लिए धन की जरूरत रहेगी जिसका इंतजाम नाबार्ड के माध्यम से करवाया जा रहा है।

बावडि़यां भी सूख गईं

प्रदेश के ऊपरी क्षेत्रों में पानी के चश्मे जगह-जगह मौजूद थे। इसके साथ बावडि़यां भी बनाई जाती थीं। अब पुरानी बावडि़यां भी नजर नहीं आतीं। शिमला में कई जगह ऐसे प्राकृतिक चश्मे व बावडि़यां दिखाई देते थे, जहां से लोग पीने का पानी भरते थे, परतु अब इनमें पानी नहीं मिलता।

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