खैर पर जीएसटी लगाने का विरोध
गगरेट — वस्तु एवं सेवा कर के दायरे में खैर के पेड़ की लकड़ी को लाने पर किसान इसके विरोध में उतर आए हैं। जीएसटी में खैर के पेड़ की लकड़ी पर अठारह प्रतिशत कर प्रस्तावित है। जिला में खैर के पेड़ काफी संख्या में पाए जाते हैं और किसान भी इन्हें बंजर भूमि पर नकदी फसल की तरह उगाने को तरजीह देते हैं, लेकिन अब इसकी लकड़ी पर अठारह प्रतिशत टैक्स लगने से किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। किसानों ने केंद्र सरकार से खैर की लकड़ी को भी कृषि उत्पाद मानते हुए इस पर लगाए जा रहे अठारह प्रतिशत टैक्स को हटाने की मांग की है। जिला में मौजूदा समय में एक बड़े कत्था उद्योग सहित अढ़ाई दर्जन से अधिक लघु कत्था उद्योग कार्यरत हैं। गुणवत्ता का दृष्टि से भी यहां का कत्था बेहतरीन माना जाता है। कत्था खैर की लकड़ी से तैयार किया जाता है। यही वजह है कि जिला ऊना सहित कांगड़ा, हमीरपुर व बिलासपुर जिला के किसान खैर के पेड़ों को नकदी फसलों की तरह लगाते हैं और दस साल में एक बार इनके कटान की अनुमति मिलने पर इन्हें बेचकर अच्छे खासे पैसे कमाते हैं। केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित जीएसटी के तहत अब खैर के पेड़ की लकड़ी को भी अठारह प्रतिशत टैक्स स्लैब के दायरे में लाया गया है। जाहिर है कि खैर के पेड़ की लकड़ी पर इतना टैक्स लगने से किसान की जेब पर इसका सीधा असर पड़ेगा। कत्थे के लिए खैर के पेड़ की लकड़ी खरीदने पर खरीददार टैक्स काटकर ही किसान को पैसे देंगे। उधर, राष्ट्रीय स्वतंत्र किसान मोर्चा के अध्यक्ष ठाकुर सीता राम का कहना है कि खैर के पेड़ की लकड़ी पर अठारह प्रतिशत कर लगाना किसान की कमर तोड़ने जैसा है। उन्होंने केंद्र सरकार से खैर के पेड़ की लकड़ी को भी कृषि उत्पाद की श्रेणी में रखने की मांग की है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियां देखकर ही किसान खेती करते हैं और खैर के पेड़ भी किसानों के लिए खेती जैसे हैं।
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