इंजीनियर्ज का गांव

किसी भी इंजीनयरिंग के छात्र के लिए आईआईटी में जाना एक सपना होता है। यहां तक पहुंचने का रास्ता बहुत कठिन होता है, पर बिहार के गया जिला के पटवा टोली गांव के लिए यह रास्ता उतना मुश्किल नहीं है। 2017 में पटवा टोली के 15 छात्रों ने आईआईटी की परीक्षा पास की है। 2016 में भी इस गांव के 11 बच्चों ने आईआईटी के मुश्किल एंट्रेंस एग्जाम को पास किया था। 2015 में इनकी संख्या 12 थी। पटवा टोली से कम से कम 300 इंजीनियर बनकर निकल चुके हैं, जिनमें एक तिहाई इंजीनियर आईआईटी से पढ़कर निकले हैं, बाकी एनआईटी और राज्य के अन्य इंजीनियरिंग कालेजों से पढ़कर निकले हैं। इस गांव की 90 प्रतिशत आबादी पटवा समुदाय से है। बुनकरों के इस गांव में बुनाई के शोर में पढ़ना मुश्किल होता है। बहुत से बच्चों को यहां पढ़ाई के साथ काम भी करना पड़ता है। पटवा टोली के छात्रों के आईआईटी जाने की सफर की शुरुआत 1991 में हुई, जब एक बुनकर के बेटे जितेंद्र कुमार का दाखिला आईआईटी में हुआ। इसके बाद जितेंद्र वहां के बच्चों को आईआईटी के लिए तैयार करने लगे। वह अपनी छुट्टियां गांव के अन्य बच्चों को टिप्स देने में बिताने लगा, जो आईआईटी की तैयारी करते थे। पटवा टोली के छात्रों का लक्ष्य आईआईटी और जितेंद्र सबके रोल मॉडल बन चुके थे। आईआईटी की तैयारी के लिए उन्होंने एक स्टडी मॉडल भी तैयार किया और उनकी इस कोशिश को नव-प्रयास का नाम दिया गया।

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