टीएमसी में एक महीने से नहीं हुआ डायलिसिस

By: Jun 3rd, 2017 12:01 am

टीएमसी —  प्रदेश के दूसरे बड़े मेडिकल कालेज टांडा का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि यहां की डायलिसिस सुविधाओं से सरकार भी अंजान है। यहां एक महीने से एक भी मरीज का डायलिसिस नहीं हो पाया है। बाहर से आने वाले मरीजों की तो बात छोडि़ए अस्पताल में सेवाएं देने वाले स्टाफ को भी अपने परिजनों को डायलिसिस करवाने के लिए आसपास के निजी अस्पतालों में ले जाना पड़ रहा है। टीएमसी प्रशासन भी सरकार की इच्छा शक्ति के सामने नतमस्तक नजर आ रहा है। दूर-दूर से आने वाले लोग यहां से निराश होकर लौट रहे हैं। टीएमसी के नेफरोलॉजी डिपार्टमेंट की बात करें तो आज की तारीख में यह पूरी तरह बंद हो चुका है। हालांकि टीएमसी से जब नेफरोलॉजिस्ट एपी (असिस्टेंट प्रोफेसर) डा. अजय जरयाल का तबादला हुआ था, उसी वक्त यह चर्चा शुरू हो गई थी कि अब इस डिपार्टमेंट में ज्यादा दिन काम नहीं होगा। बताते हैं कि डा. जरयाल के समय में यहां एमर्जेंसी डायलिसिस भी होते थे। गंभीर हालत में भी मरीजों को एकदम से यहां से रैफर नहीं करना पड़ता था। इसके अलावा रूटीन में होने वाले मेंटेनेंस डायलिसिस तो होते ही रहते थे, लेकिन सरकार ने अचानक टीएमसी से एपी की पोस्ट खत्म कर दी और डा. जरयाल का आईजीएमसी शिमला तबादला कर दिया। हालांकि कोर्ट ने भी कोशिश की कि डा. जरयाल टीएमसी में ही सेवाएं दें, लेकिन सरकार के आगे सारी दलीलें फेल हो गईं। टीएमसी प्रशासन ने अपने स्तर पर एमडी मेडिसिन डा. पंकज गुप्ता को डायलिसिस की ट्रेनिंग करवाई और लोगों को थोड़ी राहत भी हुई, लेकिन अब सरकार ने उन्हें भी यहां से नेरचौक ट्रांसफर कर दिया। नेफरोलॉजी डिपार्टमेंट में जो एक टेक्नीशियन और दो स्टाफ नर्स थीं, उन्हें अब अस्तपाल के दूसरे विभागों में शिफ्ट कर दिया गया है।

कहां जाएं मरीज

निजी अस्पतालों में डायलिसिस करवाना हो तो एक बार ही दो से साढ़े तीन हजार रुपए के बीच खर्च आता है। सरकारी अस्पताल में डायलिसिस 500 रुपए में हो जाता है। मेंटेनेंस डायलिसिस करवाने वाले किडनी फेलियर मरीजों को सप्ताह में दो से तीन बार डायलिसिस करवाना ही पड़ता है। अब मरीज कितनी परेशानी से गुजर रहे हैं, इसका तो अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

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