पहचान बिगाड़ते सड़क हादसे

By: Jun 29th, 2017 12:02 am

वंदना राणा

लेखिका, शिमला से हैं

देवभूमि की एक नई पहचान अब सड़क हादसों के रूप में स्थापित होने लगी है। सड़कें उतनी ही रहेंगी, जितनी कि वे हैं। सड़कों पर चलते वक्त चालक कायदे-कानूनों का पालन करेंगे, तो हादसों से बचा जा सकता है। हादसों को रोकने के लिए उचित और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है…

देवभूमि की एक नई पहचान अब सड़क हादसों के रूप में स्थापित होने लगी है। प्रदेश में हर दिन किसी न किसी कोने में कोई न कोई हादसा हो ही जाता है। रेडियो, अखबारों और टीवी चैनलों पर हादसों की खबरें सुनने-पढ़ने और देखने को मिलती हैं। आखिर क्यों होते हैं हादसे और हर हादसे के कुछ ही समय बाद क्यों हम पहले जैसे निद्रा अवस्था में चले जाते हैं। प्रशासन और सरकारें हादसों पर अंकुश लगाने की बातें तो करती हैं, लेकिन हकीकत में बातें महज बातें बनकर रह जाती हैं।  जब कोई नया हादसा हो जाता है, तो फिर से पुरानी कहानी दोहराई जाती है। घायलों-मृतकों में मुआवजे बांटे जाते हैं, जांच समितियां बनाई जाती हैं और कुछ समय बाद समाज और शासन-प्रशासन फिर पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं…किसी नए हादसे के इंतजार में। हादसों के जख्म तो उनको सालते हैं, जो इनके शिकार हो जाते हैं या जिन्होंने हादसों में अपनों को खोया होता है। बाकियों के लिए हादसे बस एक खबर भर बनकर रह जाते हैं। कभी-कभी मन में आक्रोश यह सोचकर होता है कि हम हादसों से कुछ सीखते क्यों नहीं? बार-बार वही गलती क्यों दोहराते हैं, जो अंततः हादसे का कारण बन जाती है। अभी हाल ही में कांगड़ा के ढलियारा में हादसा हुआ, जिसमें 51 सीटर बस में सवार थे 80 लोग। जरा सोचिए  कि ओवरलोड यह बस हादसे का शिकार होती भी क्यों न? पंजाब से आए श्रद्धालुओं की यह निजी बस कांगड़ा के ढलियारा में तीखे मोड़ पर कार को टक्कर मारने के बाद खाई में गिर गई। हादसे में दस लोग मारे गए, बाकी घायल हो गए। एक और हादसा एचआरटीसी बस का हुआ। यह बस भी खाई में गिरी और उसमें भी 14 छात्रों समेत 26 लोग घायल हो गए। तंग सड़क को इस हादसे का कारण बताया गया। प्रदेश में होने वाले हादसों के कारणों की तफतीश करें, तो इसकी एक लंबी फेहरिस्त बनती है। कभी तंग, टूटी-फूटी सड़कें, कभी ओवरलोडिंग, कभी ओवर स्पीड, कभी मोबाइल करने-सुनने के कारण। इन्हीं तमाम कारणों से आए दिन हादसे हो रहे हैं और अनेक कीमती जिंदगियां बेवक्त खत्म हो रही हैं। आखिर कौन है इन दर्दनाक हादसों का जिम्मेदार। सरकारें, प्रशासन, आप हम-आप?

गहराई और ईमानदारी से विश्लेषण करें, तो हम सभी इन हादसों के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं। सरकारों और प्रशासन ने बहुदा अपनी जिम्मेदारी को सही ढंग से समझा ही नहीं। कहीं आबादी ज्यादा है, तो वहां बसें कम। दूरदराज के इलाकों में सरकारी बसें बहुत कम आती हैं। इस कारण बस चालक भी बसों के अभाव में क्षमता से ज्यादा सवारियों को बसों में ढोते हैं। यहां आखिर लोग भी क्या करें? सुबह समय पर जिसने दफ्तर, स्कूल या अन्य गंतव्यों तक जाना है, वे तो बसों में सफर करेंगे ही। मजबूरन उन्हें यह भी मंजूर है कि बस में क्षमता से ज्यादा सवारियां चढ़ जाएं। अगर जरूरत के मुताबिक बसों की सुविधा यात्रियों को मिलती रहे, तो ओवरलोडिंग की समस्या ही खत्म हो जाए। कई बार हमने देखा है कि सरकारी बसें खाली सड़कों पर दौड़ती रहती हैं। यात्री हाथ देकर बसों को रोकते हैं, पर ड्राइवर नहीं रोकते। बेचारी सवारियां भीड़ वाली बस में मजबूरन चढ़ जाती हैं। सरकार को चाहिए कि पथ परिवहन निगम की इस खामी को दूर करे और खाली दौड़ती बसों में सवारियों को बिठाना अनिवार्य करे। वैसे भी पथ परिवहन निगम इस बेपरवाही की वजह से घाटे में तो जा ही रहा है, लोगों का भरोसा भी इससे टूटता जा रहा है। पथ परिवहन निगम को यह अव्यवस्था अतिशीघ्र सुधारनी होगी, ताकि हादसों पर रोक लग सके। रही बात सड़कों की, तो सड़कें तो ठीक हो सकती हैं, लेकिन चालकों को दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए। नशे में गाड़ी न चलाएं, ओवरस्पीड न करें, ओवरटेक न करें और गाड़ी चलाते समय चालक किसी भी सूरत में मोबाइल न सुनें। यदि बेहद जरूरी है, तो गाड़ी सड़क किनारे रोककर मोबाइल पर बात करें। इन सारे नियमों का पालन करना होगा। चालकों को समझना होगा कि हर जिंदगी अनमोल है। तुम सब कुछ कर सकते हो, पर किसी को उसकी जिंदगी नहीं लौटा सकते। इसलिए सरकारों व प्रशासन को चाहिए कि हादसों को रोकें, ताकि आईंदा हादसे न हों। जहां बसें कम हैं, वहां पर नई बसों की सेवा शुरू की जाए तथा ड्राइविंग से संबंधित उचित दिशा-निर्देश जारी कर ओवरलोडिंग को रोकने की व्यवस्था हो। जनता, सरकार व प्रशासन के आपसी सहयोग से हादसों को रोका जा सकता है। हादसों में जिन्होंने अपने खोए हैं, अपाहिज हुए हैं, उनसे पूछो हादसों ने जो जख्म उन्हें दिए हैं, वे कितने गहरे हैं? व्यवस्थाएं सुधरें, जागरूकता बढ़े तो हादसे रुक सकते हैं। इनसान होकर इनसानियत का फर्ज समझें और फर्ज को पूरा करें। सड़कें उतनी ही रहेंगी, जितनी कि वे हैं। सड़कों पर चलते वक्त चालक कायदे-कानूनों का पालन करेंगे, तो हादसों से बचा जा सकता है। हादसों को रोकने के लिए उचित और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

ई-मेल : jrana66@gmail.com

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