माफिया के खिलाफ कितना तैयार हिमाचल

By: Jun 18th, 2017 12:05 am

शांत देवभूमि में दिन-ब-दिन अपराध फन फैला रहा है। प्रदेश में माफिया इतना हावी होने लगा है कि कर्मचारियों की जान पर बन आई है। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि अब वे कभी भी किसी भी कर्मचारी या अफसर पर हमला करने से नहीं चूकते। माफिया से निपटने में कितना सक्षम है हिमाचल, यही हकीकत बयां करता इस बार का दखल…

हिमाचल में माफिया के हमले वन कर्मियों के साथ-साथ खनन कर्मियों पर  कुछ वर्षों से बढ़े हैं। गांव में रेत-बजरी ट्रैक्टरों के जरिए निकालने वाले लोग इन निहत्थे खनन कर्मियों से भिड़ जाते हैं।  दिलचस्प बात है कि उद्योग विभाग का खनन विंग इन कर्मियों को हर माह 250 रुपए तक का वाशिंग अलाउंस तो देता है, मगर माइनिंग गार्ड की ड्रेस तय नहीं है। यहां तक कि उन्हें इस बात की ट्रेनिंग नहीं दी जाती कि आपात स्थिति में वे क्या करें।  कुछ अरसा पहले माइनिंग इंस्पेक्टर व सहायक माइनिंग इंस्पेक्टर स्तर के कर्मियों को हिप्पा में जरूर प्रशिक्षण दिया गया था, मगर इसके बाद कोई नई रूपरेखा तैयार नहीं हो सकी। हिमाचल में 300 से भी ज्यादा माइनिंग लीज हैं। हर जिला में नीलामी द्वारा लीज आबंटित की जा रही है, मगर उस अनुपात में न तो कर्मी हैं, न ही सुरक्षा के लिए व्यवस्था। हर साल 7 हजार से भी ऊपर अवैध खनन के छोटे-बड़े मामले प्रकाश में आते हैं। औसतन सात से आठ कर्मचारियों की पिटाई भी होती है। मगर प्रदेश में कर्मचारियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम ही नहीं हैं।

कागजों में दफन प्लान

सत्ता में रही सरकारों ने पुलिस, आईपीएच, पीडब्ल्यूडी, वन यहां तक कि स्वास्थ्य विभाग, पंचायत सचिवों व अन्य पदाधिकारियों तक को  अवैध खनन रोकने के लिए औचक निरीक्षण व छापामारी के लिए अधिकृत किया गया था। इसमें कई और विभाग भी थे, मगर हैरानी की बात है कि किसी भी महकमे ने इस मुहिम में भागीदारी ही नहीं जताई। अकेला उद्योग विभाग यह कार्यभार संभाले है। न ही संबंधित महकमों के अधिकारियों से कोई जवाब तलब किया गया, जबकि नीति के तहत थाने व चौकियों तक को अवैध खनन रोकने के लिए अधिकृत किया गया था।

लाठियों  के सहारे फोरेस्ट गार्ड  

वन विभाग के  फोरेस्ट गार्ड का मतलब सूचनाएं देने वाला एक कर्मचारी, जो लाठियों के सहारे जंगलों की रक्षा करने के लिए मजबूर दिखता है। वन विभाग में फोरेस्ट गार्ड्स का पीटने का मामला काफी पुराना हो चुका है।  अब बात अब कथित तौर पर हत्या तक आ पहुंची, लिहाजा इतना बवाल उठा है। मगर यह असलियत है कि वन रक्षक आज भी यह लड़ाई निहत्था लड़ रहा है। हालांकि उसके पास ड्रेस तो है, मगर फील्ड में ज्यादातर फोरेस्ट गार्ड बिना डे्रस के तैनात रहते हैं। लाठियों के सहारे जंगल की रक्षा की जा रही है।

आठ वन थाने कर दिए बंद

वर्ष 2014 में हिमाचल में लकड़ी की तस्करी को रोकने की दृष्टि से स्थापित किए गए वन थानों को बंद किया जा चुका है। प्रदेश में आठ स्थानों पर वन थाने खोले गए थे, जिनमें वन विभाग द्वारा अधिकारियों व कर्मचारियों की नियुक्तियां की गई थीं। पूर्व धूमल सरकार के समय में ये वन थाने खोले गए थे और तब यही कहा गया था कि लकड़ी तस्करों को पकड़ने के लिए ये थाने विशेष प्रयास करेंगे। वन थानों ने कई मामलों को पकड़ा था, जिससे विभाग की पीठ भी थपथपाई गई थी। बावजूद इसके इन वन थानों को बंद कर दिया गया। इन्हें बंद करने के पीछे तर्क दिया गया कि एक तो स्टाफ की किल्लत है, दूसरे फील्ड का स्टाफ इन थानों में लगा दिया गया था, जिससे दिक्कतें पेश आ रही थीं।

हथियारों से लैस हों वन कर्मी

फोरेस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष की मांग, मंडल-रेंज स्तर पर खोली जाएं चौकियां प्रदेश में वन रक्षकों के संगठन हिमाचल प्रदेश फोरेस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष तुलसी राम शर्मा का कहना है कि करसोग के कतांडा में साथी वन रक्षक के साथ यह हुई घटना बेहद दुखद है।  उन्होंने कहा कि एसोसिएशन चाहती है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो ताकि सच्चाई सामने आए। सरकार वन रक्षकों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाएं ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों।  तुलसी राम शर्मा ने कहा है कि प्रदेश में वन रक्षकों की सुरक्षा को लेकर हाल ही में वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी और अतिरिक्त मुख्य सचिव वन  तरुण कपूर से बात की है। एसोसिएशन ने मांग की है कि वन रेंज या मंडल स्तर पर वन चौकियां खोली जाएं, इनके लिए अलग से स्टाफ की व्यवस्था हो। इसके अलावा इन चौकियों में वाहनों की व्यवस्था हो ताकि वन कटान की सूचना मिलने पर वे मौके पर पहुंच सके। तुसली राम ने कहा कि यह भी मांग की गई है कि राज्य की संवेदनशील वन बीट में वन रक्षकों के साथ एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को भी तैनात किया जाए। वन रक्षकों को हथियार भी उपलब्ध करवाए जाने चाहिए, यह मांग वन रक्षक अरसे से कर रहे हैं। बिना हथियारों से वन माफिया से लड़ना संभव नहीं है और सरकार से इसकी भी मांग की गई है। सरकार ने हथियार देने की बात कही है। लेकिन यह जरूरी है कि ये हथियार छोटे हों क्योकि बंदूकों को उठाना  संभव नहीं होता । वन रक्षकों के पास अन्य सामान भी रहता है, ऐसे में रिवाल्वर या पिस्तौल जैसे हथियार उपलब्ध करवाए जाएं। उन्होंने कहा कि प्रदेश के जंगलों की रखवाली वन कर्मचारी जान हथेली पर रखकर करते हैं। वन माफिया का कई बार उन पर कहर बरपता है, तो कई बार जंगली जानवर झपट पड़ते हैं।

तीन साल में 713 कर्मियों पर हमला

देवभूमि हिमाचल जो कभी शांत कहलाई जाती थी और जहां सराकारी कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए काम करना मुश्किल नहीं था, अब उनके काम में भी बाधा पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। यही नहीं ईमानदारी से काम करने वाले कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ मारपीट भी हो रही है। ऐसे हालात में राज्य में सरकारी कर्मचारी व अधिकारी भला कैसे महफूज हो सकते हैं। प्रदेश के आंकड़ों पर गौर करें तो बीते तीन सालों में ही राज्य में कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ मारपीट व ड्यूटी में बाधा पहुंचाने के 713 मामले विभिन्न थानों में दर्ज किए गए हैं। और तो और जिस खाकी से अपराधी भयभीत होते हैं, अब वह ही महफूज नहीं हैं। प्रदेश में कर्मचारी व अधिकारियों के साथ मारपीट व धमकियां देने के मामले सामने आ  रहे हैं। बीते तीन सालों में ही राज्य में 713 कर्मचारियों की ड्यूटी में बाधा पहुंचाने व मारपीट के मामले राज्यों के विभिन्न थानों में दर्ज किए गए हैं। इनमें 104 मामले पुलिस जवानों-अधिकारियों से संबंधित हैं, जबकि बाकी अन्य विभागों से कर्मचारी हैं। पुलिस कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ ड्यूटी के दौरान मारपीट करने और ड्यूटी में बाधा पहुंचाने के मामलों को देखें तो राज्य में साल 2014 में 38 मामले सामने आए हैं, इनमें 34 मामले कोर्ट में लंबित हैं। साल 2015 में 40 मामले आए, इनमें भी 34 मामले कोर्ट में लंबित हैं। साल 2016 में 26 मामले राज्य के विभिन्न थानों में दर्ज किए गए हैं। इनमें से 15 मामले कोर्ट में लंबित हैं।  वहीं पुलिस विभाग के अलावा 609 कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ मारपीट व ड्यूटी में बाधा पहुंचाने के मामले इन तीन सालों में सामने आए हैं। इनमें साल  2014 में 156 मामले विभिन्न थानों में दर्ज किए गए। इनमें 123 मामले विभिन्न अदालतों में पेंडिंग हैं।  साल 2015 में 279 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 235 मामले अदालतों में लंबित हैं। वहीं साल 2016 में राज्य में कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ मारपीट व काम में बाधा पहुंचाने के कुल 174 मामले दर्ज किए गए जिनमें से 126 मामले अदालतों में पेंडिंग पड़े हुए हैं।  इस तरह साफ है कि हिमाचल में भी कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए ईमानदारी से काम करना आसान नहीं रह गया है।  ईमानदारी से काम करने वाले अधिकारियों को जलील होना पड़ रहा है और उनको धमकियां व मारपीट जैसी घटनाओं से भी दो चार होना पड़ रहा है।

भगवान भरोसे हैं सरकारी कर्मचारी

प्रदेश में कई कर्मचारियों को जोखिम भरी ड्यूटियां देनी पड़ रही हैं। वहीं इन कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर कोई पुख्ता योजना सरकार ने नहीं बनाई है। यह जरूर है कि सरकार ने हाल ही में भारी दबाव के बाद अस्पतालों में डाक्टरों व पैरामेडिकल स्टाफ की सुरक्षा के लिए मेडिपर्सन एक्ट लागू किया है। इसके साथ ही अब डाक्टरों व अस्पताल के कर्मचारियों के साथ मारपीट करने वालों पर अब कानूनी शिकंजा कसा जाएगा। ऐसे आरोपियों को अब जेल की हवा खानी पड़ेगी क्योंकि इनके साथ मारपीट की घटना को गैर जमानती बनाया गया है। हिमाचल में डाक्टरों व अन्य स्टाफ के साथ मारपीट की घटनाएं पेश आ रही थीं, इस पर चिकित्सकों व अन्य कर्मचारियों द्वारा सरकार पर दवाब डाला जा रहा था, यही वजह है कि सरकार को झुकना पड़ा है और अब यह कानून लाना पड़ा है। बाकी कर्मचारियों व अधिकारियों की सुरक्षा को लेकर कोई ठोस योजना सरकार के पास नहीं है।

अकेले नहीं भेजे जाते कर्मी

उद्योग विभाग के माइनिंग विंग के स्टेट जियोलॉजिस्ट रजनीश कुमार का कहना है कि फील्ड में माइनिंग गार्ड्स को अकेले नहीं, दो-दो को भेजा जाता है, ताकि किसी भी अवैध खनन के मामले से न केवल निपटा जा सके, बल्कि उसकी तत्काल सूचना भी समय पर मिल सके।

प्रदेश में 200 वनरक्षक कम

हिमाचल में वन रक्षकों की स्ट्रेंथ 2581 है, मगर इनमें 200 के पद खाली चल रहे हैं। राज्य में 250 के करीब महिला फोरेस्ट गार्ड भी हैं। हैरानी की बात तो यह कि इनके पास हथियार तक नहीं हैं और वे निहत्थे ही जंगलों की रखवाली कर रहे हैं।

अलग से नीति बनाने की दरकार

हिमाचल में जिस तरह से अवैध कटान के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं, उसके बाद इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है कि कोई ऐसा मेकेनिज्म विभाग बनाए, जिससे अवैध वन काटुओं से निपटने के लिए वन रक्षक अकेला नहीं, बल्कि टीम के साथ मौके पर जाकर दो-दो हाथ करने में सक्षम हो सके।

स्थानीय निकायों से लें सबक

हिमाचल में स्थानीय निकाय या फिर शिमला व धर्मशाला की नगर निगमों से इस मामले में सबक लिया जा सकता है। यहां अतिक्रमण या फिर अवैध निर्माण के मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए निकायों के साथ पुलिस बल जाता है, जिससे कोई बड़ी घटना पेश नहीं आती। यदि अवैध खनन व अवैध कटान के सिलसिले में भी ऐसा ही तंत्र स्थापित हो तो अवैध धंधों में संलिप्त लोगों से निपटने में कामयाबी हासिल हो सकती है।

ट्रांसफर का न हो डर

आरोप ये भी लगते रहे हैं कि अवैध धंधों में संलिप्त जमात के खिलाफ जब अधिकारी या फिर कर्मी हौसला दिखाए , तो उन्हें कार्रवाई का भी डर रहता है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों को तबादलों के दौर से न गुजरना पड़े, बल्कि उन्हें पुरस्कृत किया जाना चाहिए। अच्छा यही रहेगा कि यह पूरी प्रक्रिया बिना किसी प्रभाव के पारदर्शितापूर्ण तरीके से चलाई जाए। वरना कोई भी माफिया से लड़ने का दुःसाहस नहीं करेगा और उसके हौसले बुलंद ही होते रहेंगे। ऐसे मामलों में सख्त कानूनी कार्रवाई आवश्यक होगी।

शिकार पर कसी जाए लगाम

कभी मंडी, बिलासपुर तो कभी शिमला के साथ-साथ सोलन से लैपर्ड्स के अवैध शिकार की घटनाएं सामने आती हैं। ये इतने शर्मनाक व दर्दनाक मामले होते हैं कि बेरहमी से वन्य जीवों की खालें, नाखून तक नोंच ली जाती हैं। बावजूद इसके ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लग सकी। कई तथाकथित साधुओं से तेंदुओं की खालें भी बरामद की गईं, मगर वे बेखौफ होकर बाहर घूमते रहे। ये सब घटनाएं ऐसे अवैध धंधों में संलिप्त लोगों के हौसले ही बुलंद करती हैं। वक्त की जरूरत यही है कि सख्त से सख्त कार्रवाई हो, नियमों व कानून की पालना हो, इसमें किसी भी तरह का पिक एंड चूज न हों, वरना न तो माफिया डरेगा और न ही लोग।

निहत्थे ड्यूटी दे रहे वनरक्षक

प्रदेश में वन संपदा की रक्षा करने वाले 2581 वन रक्षक निहत्थे हैं। वन रक्षक दिन-रात वनों में बिना हथियारों के ड्यूटी दे रहे हैं।  विभाग ने वन रक्षकों की सुरक्षा के लिए किसी भी हथियार का प्रावधान नहीं किया है, जिसके चलते वन रक्षकों को वनों में ड्यूटी देने में भारी परेशानी से गुजरना पड़ रहा है। वन काटुओं और जंगली जानवरों से बचाव करने के लिए खतरों का सामना करना पड़ता है।  इतना ही नहीं प्रत्येक वन बीट पर ही वन रक्षक तैनात किया गया है, जो मीलों तक वनों की रक्षा के लिए बिना हथियार के पैनी नजर रख रहा है। करसोग, नाचन, थाची, पनारसा सहित अन्य क्षेत्रों मेें वन रक्षक बिना हथियार के देवदार के जंगलों को बचाने में ड्यूटी रहे हैं। इतना ही नहीं प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में वन काटू अवैध कटान करने के लिए वनरक्षकों पर हमला कर चुके हैं।

अब दिए जाएंगे पिस्टल-रिवाल्वर

करसोग के वन उपमंडल कतांडा में गार्ड की कथित तौर पर हत्या के बाद सरकार की तरफ से वन मंत्री ने ऐलान किया कि फील्ड में अब फोरेस्ट गार्ड व रेंजरों तक को पिस्टल, रिवाल्वर व बंदूकें दी जाएंगी। उम्मीद की जा सकती है कि इस बड़े कदम के बाद फोरेस्ट गार्ड और उससे ऊंचे अधिकारियों का रौब माफिया में दिखेगा।

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