राहुल का कर्ज माफी चुग्गा !

By: Jun 10th, 2017 12:01 am

किसान आंदोलन पर प्रधानमंत्री मोदी फिलहाल चुप हैं। हालांकि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर एकदम ट्वीट कर अपनी प्रतिक्रिया देने और ‘मन की बात’ कहने में प्रधानमंत्री हमेशा अग्रणी रहे हैं। किसान आंदोलन अभी शांत नहीं हुआ है, बल्कि पंजाब और कर्नाटक से कुछ आवाजें उभरना शुरू हो गई हैं। पंजाब तो अन्नदाता का गढ़ रहा है। यदि वहां किसानों ने कर्जमाफी की मांग बुलंद की, तो कांग्रेस की नई-नवेली प्रदेश सरकार के पसीने छूट जाएंगे। पंजाब और कर्नाटक में कांग्रेस सरकारें हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने शायद इसे राज्य का मुद्दा मान लिया है, लिहाजा वह खामोश हैं। उनके कृषि मंत्री राधामोहन सिंह दिल्ली में पत्रकारों से आंख बचाते हुए, अंततः, बिहार पहुंच गए। वहां कृषि मंत्री योगाभ्यास में व्यस्त हैं। उन्हें अपनी सेहत की चिंता है, देश के किसानों पर करीब 12 लाख करोड़ रुपए के कर्ज क्यों हैं, मंत्री जी को इसकी फि क्र बिलकुल भी नहीं है। इसी बीच कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मध्य पद्रेश पहुंचने के लिए खूब नौटंकी की। बाइक पर चले, पैदल भी चले, मध्य प्रदेश पुलिस को चकमे दिए, अंततः हिरासत में लिए गए, फिर पीडि़त परिजनों से मिले या फोन पर बात करके संवेदनाएं प्रकट कीं। राहुल की राजनीति भट्टा पारसौल से लेकर जंतर-मंतर पर तमिल किसानों से मुलाकात, नोटबंदी के दौरान भीड़ में जाकर खड़े होने, दंगाग्रस्त मुजफ्फरनगर में हरियाणा के जरिए घुसने और अब राजस्थान से होकर मध्य प्रदेश में घुसने की कोशिश तक ही रही है। समाधान उन्हें नहीं पता। बस फोटो खिंचवाने के लिए या जलती आग में घी डालने के लिए वह ‘त्रासद पर्यटन’ करते रहे हैं। नतीजतन कांग्रेस का जनाधार सूखता जा रहा है। बहरहाल इन नौटंकियों के बाद एक नाटकीय बयान राहुल गांधी ने दिया है कि कांग्रेस देश के किसानों के कर्ज माफ  करेगी। यानी राहुल गांधी कांग्रेसी सत्ता के दिन आने तक किसानों को कर्जदार ही देखना चाहते हैं। यानी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने जो कर्ज माफ  किया था, वह अधूरा था। हमारा दावा है कि यूपीए सरकार ने करीब 65,000 करोड़ रुपए की जो कर्जमाफी दी थी, राहुल को न तो उसके ब्यौरे पता होंगे और न ही वह कर्जमाफी की प्रक्रिया का अर्थशास्त्र जानते हैं! उन्हें कर्जमाफी में सियासत का आकर्षण दिखाई देता है, लिहाजा उन्होंने किसानों की कर्जमाफी का एक चुग्गा परोस दिया। राहुल गांधी से स्वामीनाथन और किसान आयोगों के सवाल पूछ लिए जाएं, तो वह बगलें झांकने लगेंगे। आखिर अर्थशास्त्र और किसानी की न्यूनतम लागत से राहुल का क्या सरोकार…? वह काम पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम सरीखों का है। राहुल को तो कर्जमाफी का चुग्गा उछालना है, ताकि कांग्रेस के पक्ष में वोट पड़ सकें, लेकिन तमाम कवायदों के बावजूद उत्तर प्रदेश में मात्र 7 विधायक ही जीत पाते हैं। राहुल गांधी दर-ब-दर की खाक छान रहे हैं, लेकिन अंततः पर्यटन ‘त्रासद ही साबित होता है। बहरहाल मौजू सवाल है कि किसानों पर 12 लाख करोड़ रुपए का कर्ज कैसे हुआ? देश के बड़े औद्योगिक घरानों पर 5 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज है। कुल एनपीए राशि 6.06 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक है। राहुल गांधी का सवाल धन्ना सेठों की कर्जमाफी के खिलाफ  उठता रहा है, लेकिन उन्होंने यह सवाल कभी नहीं पूछा कि आखिर किसान कर्जदार क्यों होता रहा है? उसकी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) क्यों नहीं दिया जाता रहा है? उदाहरण के तौर पर 2016 में गेहूं के एमएसपी को लेते हैं। गेहूं के दाम 1206 रुपए क्विंटल थे। प्रधानमंत्री मोदी के वादे अनुसार 50 फीसदी मुनाफा अतिरिक्त दिया जाता, तो कीमत 1800 रुपए से ज्यादा बनती, लेकिन हकीकत यह है कि किसानों को औसतन दाम 1500 रुपए ही मिला है। सरकारी आंकड़े ही खुलासा करते हैं कि करीब 80 फीसदी किसानों को उनकी फसलों के उचित दाम नहीं मिल पाते हैं। दरअसल जो एमएसपी 5000 रुपए तय की गई है, उसका भुगतान 3000 रुपए के हिसाब से ही किया जाता है। किसान घाटे के ऐसे सौदे करने पर विवश होगा, तो कर्जदार नहीं होगा, तो क्या होगा। बेशक मोदी सरकार ने वादा करने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर असमर्थता जताई कि सरकार एमएसपी नहीं बढ़ा सकती और 50 फीसदी अतिरिक्त मुनाफा भी नहीं दे सकती, लेकिन इस पर तो निगरानी रख सकती है कि किसान को कम दाम न दिए जाएं। दरअसल कोई भी सरकार किसान-संवेदी नहीं है। खेती का काम सिकुड़ता जा रहा है। किसान अपनी औलाद को खेती से परे रखने की कोशिश कर रहा है। सरकारों को कुछ सालों के बाद की दुरावस्था पर सोचना चाहिए, जब किसान खेती नहीं करेंगे और देश में खाद्यान्न का संकट होगा, तो सरकारें क्या करेंगी? कर्जमाफी स्थायी समाधान नहीं है।

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