शिमला की हकीकत

By: Jun 11th, 2017 12:05 am

महज 25 हजार की आबादी के लिए बसाए गए शिमला शहर में आज दो लाख के करीब जनता गुजर-बसर कर रही है। आबादी जिस रफ्तार से बढ़ी, उसी रफ्तार से  निगम शहर का विकास नहीं कर पाया, नतीजतन आए दिन लोगों को बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझना पड़ रहा है…

अंग्रजों ने शिमला को 25 हजार की आबादी के लिए बसाया था। मगर अंग्रजों के बाद शिमला की आबादी तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2001 में शिमला की आबादी 1.42 लाख से ज्यादा थी। वर्ष 2011 में आबादी का आंकड़ा 1.70 लाख के करीब पहुंच गया था। मौजूदा समय में शहर में आबादी का आंकड़ा दो लाख से पार हो गया है। वहीं रोजाना एक लाख के करीब लोग यहां पहुंचते हैं, जिसके चलते केवल शिमला शहर ही नहीं बल्कि बाहर से आने वाले लोगों के लिए भी सुविधाएं उपलब्ध करवाने का दबाव है। मगर आबादी के मुकाबले शिमला में सुविधाओं का टोटा है। आज भी अंग्रजों के समय बनी आधारभूत सुविधाओं को लाखों की आबादी भोग रही है। शिमला शहर तेजी से बढ़ा है और शहर में आबादी का भार भी बढ़ा है। मगर उस हिसाब से सुविधाओं का विस्तार नहीं हो पाया है, जिसके लिए सरकार व निगम प्रशासन जिम्मेदार रहा है। हालांकि शहर में विकास के लिए योजनाएं बनती रहीं मगर विकास की उक्त योजनाएं पूरी नहीं हो पाई हैं, जिसके चलते आज जनता को कई मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है। आज भी शहर में अंग्रजों द्वारा बिछाई गई सीवरेज लाइनों पर मौजूदा आबादी का भार है। शिमला में पुरानी सीवरेज लाइनें बिछी हैं। शहर में नई लाइनें नाममात्र ही बिछ पाई हैं। यही आलम शहर में पेयजल व पार्किंग की सुविधा का है जो मौजूदा आबादी के हिसाब से काफी कम है। अगर यूं कहा जाए कि मौजूदा समय में भी विकास अंग्रजों द्वारा कायम सुविधाओं के आसपास ही घूम रहा है तो वह गलत नहीं होगा। शहर में जनता को सब सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए कई योजनाएं बनाई गई थीं। कई योजनाओं पर कार्य भी चला हुआ है। मगर इन योजनाओं के अभी तक सिरे न चढ़ने पर जनता को सीमित सुविधाओं में गुजारा करना पड़ रहा है।

कर बढ़ोतरी निगम के हाथ में नहीं

आर्थिक संसाधनों में बढ़ोतरी के लिए नगर निगम शिमला जनता से कर ले रहा है। नगर निगम शिमला  जनता से प्रॉपर्टी टैक्स, सीवरेज सैस के अलावा बिजली व शराब की बिक्री पर फीस ले रहा है। मगर नगर निगम प्रशासन अपनी ओर से ऐसा कोई भी कर नहीं लगा पाया है, जिससे उसके संसाधनों में बढ़ोतरी हो चूंकि शहर में करों पर बदलाव शहर में जनता के विरोध का कारण बन जाता है।

ग्रीन टैक्स लगाने की तैयारी में

नगर निगम शिमला अपनी आय बढ़ाने के लिए ग्रीन टैक्स लगाने की तैयारी में है। शहर में ग्रीन टैक्स वसूलने के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी कर दी गई हैं।

निगम की आय

नगर निगम शिमला मौजूदा समय में जनता से लाखों का कर वसूल रहा है। बताते चलें कि निगम प्रशासन ने चालू वित्त वर्ष के दौरान संपत्ति करों से 1702.88 लाख रुपए की आय प्राप्ति का अनुमान लगाया है। वहीं बिजली खपत पर फीस से 150.00 लाख, शराब की बिक्री पर फीस से 64.00 लाख की आय प्राप्ति का अनुमान लगाया है। इसके अलावा पार्किंग में 745.10 लाख, पानी से 2200 लाख, सीवरेज से 500.00 लाख और अन्य साधनों से करीब 6662.90 लाख की आय प्राप्ति का अनुमान लगाया गया है। नगर निगम शिमला ने स्मार्ट सिटी व अन्य प्राप्त अनुदान राशि के रूप में 10430.80 लाख रूपए आने का अनुमान लगाया है। अमृत सिटी के रूप में निगम को 7138.49 लाख मंजूर हुए हैं,जिससे नगर निगम शिमला की आर्थिक माली हालत सुदृढ़ हुई है। नगर निगम शिमला द्वारा वर्ष 2017-18 के लिए 401 करोड़ 67 लाख का बजट पारित किया था जो करीब 50 लाख के फायदे का बजट रहा है।

विकास की योजनाएं फाइलों में दफन

शिमला शहर के विकास के लिए कई योजनाएं बनाई गईं। इन योजनाओं का ढांचा बनाने के लिए विदेशी दौरे भी किए गए। मगर आज भी काफी संख्या में योजनाएं फाइलों में दफन हैं। शिमला शहर के विकास के लिए दर्जनों योजनाएं ऐसी हैं,जो सिरे नहीं चढ़ पाई हैं जिसके लिए अधिकारियों ने कई मर्तबा दौरे किए।   इन योजनाओं में ई-गवर्नेंस परियोजना मुख्यत है। इस योजना से जन साधारण को ऑनलाइन सुविधाएं, वार्ड स्तर पर महत्त्वपूर्ण जानकारियां, आधुनिक सुविधाएं और त्वरित व पारदर्शी कार्यप्रणाली का लाभ प्राप्त होना था। मगर उक्त योजना आज भी फाइलों में ही सीमित है। इसके अलावा शहर में एक्सलेटर स्थापित करने, गोल्फ कार्ट, पिक टैक्सी चलाने सहित वार्डों में पार्किंग निर्माण की योजनाएं भी सिरे नहीं चढ़ पाई हैं। अधिकारियों के साथ-साथ नगर निगम शिमला के पूर्व महापौर व उप महापौर ने कई योजनाओं को सिरे चढ़ाने के लिए कई विदेशी दौरे किए। मगर इसके बावजूद उक्त योजना अधर में लटकी हुई है।

नगर निगम का सफर

हिमाचल प्रदेश में नगर निगम शिमला पहला नगर निगम है। सर्वप्रथम पंजाब सरकार द्वारा 1876 में नगर बोर्ड शिमला का गठन किया गया था। उस समय बोर्ड में 19 सदस्य थे। इनमें से सात अधिकारी तथा 12 गैर अधिकारी होते थे। 12 गैर अधिकारी सदस्यों में से नौ सदस्य चुनकर आते थे, जबकि तीन सदस्यों को सरकार द्वारा नामांकित किया जाता था। इसके बाद चार सदस्य पदेन सदस्य माने गए। यह चार सदस्य थे आयुक्त शिमला, कार्यकारी अभियंता शिमला, प्रांतीय मंडल कार्यकारी अभियंता शिमला, केंद्रीय मंडल तथा सिविल सर्जन शिमला । 1950 के अधिनियम के अंतर्गत दिसंबर 1951 में शिमला में नगर सरकार की शुरुआत हुई। 1962 में सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। उस समय तक नगर सरकार का स्वरूप पंजाब में संचालित होता था,लेकिन हिमाचल प्रदेश के पुनर्गठन के बाद 1968 में हिमाचल प्रदेश नगरपालिका अधिनियम लागू किया गया। इसके अलावा 2016 में धर्मशाला में दूसरे नगर निगम की स्थापना की गई है।

निगम की कहानी, तीसरे दिन मिलता पानी

शिमला नगर निगम प्रदेश का पहला नगर निगम है। शिमला नगर निगम डेढ़ सौ साल का सफर तय कर चुका है। शिमला को नगर निगम बने कई साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी यहां लोगों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। प्रदेश में कुल 54 शहरी स्थानीय निकाय हैं, लेकिन इनमें से किसी भी निकाय में अभी तक लोगों को वे सुविधाएं नहीं मिल पाई हैं,जो एक निकाय में रहने वाले नागरिक को मिलनी चाहिएं। नगर निगम शिमला की बात की जाए तो यहां पर आज भी लोगों को पानी, पार्किंग जैसी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। लोग टैक्स देते हैं,  लेकिन सुविधाएं नहीं मिल पातीं।  शिमला में आज भी पानी की समस्या सबसे बड़ी चुनौती है। नगर निगम की ओर से पानी के  कनेक्शन दिए गए हैं, लेकिन पानी के लिए अभी भी दो से तीन दिन तक इंतजार करना पड़ता है और उपभोक्ता फिर भी पानी का पूरा बिल भरने को मजबूर हैं। पानी के बिल अभी भी फ्लैट रेट पर ही जारी किए जा रहे हैं।  हालात ये हैं कि अगर कोई पानी की एक बूंद ले या एक हजार लीटर, उसे एक जैसा ही बिल देना होगा।

कचरे के ढेर चिढ़ा रहे मुंह

शिमला का माल रोड, जाखू, चौड़ा मैदान समेत दूसरे कोर एरिया में सफाई व्यवस्था संतोषजनक कही जा सकती है। कोर एरिया में निगम दो शिफ्टों में सफाई करवाता है, जबकि उपनगरों में सुबह के समय सड़कों की सफाई की जाती है और सुबह कूड़ा भी उठाया जाता है। नगर निगम के तहत आने वाले तमाम 25 वार्डों में सफाई व्यवस्था बुरी तरह से चरमराई हुई है। सड़कों व गलियों में कूड़े के ढेर लगे हुए है। लोग जंगलों व नालों में कूड़ा फेंक रहे हैं। ऐसे में शिमला की सुंदरता पर गंदगी का ग्रहण लगातार लग रहा है।

रोजाना पैदा होता है लाखों टन कूड़ा

प्रदेश में रोजाना लाखों टन कूड़ा पैदा होता है। राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक एक व्यक्ति प्रतिदिन 350 ग्राम कूड़ा पैदा करता है। राजधानी की बात की जाए, तो यहां नगर निगम के तहत आने वाले एरिया में प्रतिदिन 70 से 100 टन कूड़ा पैदा होता है। इस कूड़े को ठिकाने लगाने का जिम्मा नगर निगम का रहता है।

राजनीति ने डुबोई लुटिया

नगर निगम शिमला में विकास कार्यों के सिरे न चढ़ पाने का सबसे बड़ा कारण यहां की राजनीतिक व्यवस्था है। नगर निगम शिमला में पहले 25 वार्ड थे। वर्ष 2012 में पहली बार भाजपा शासनकाल में नगर निगम के मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर कराए गए। उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा की प्रदेश में सरकार होने के चलते नगर निगम में भी इन दोनों ही पदों पर भाजपा को जीत मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मेयर और डिप्टी मेयर दोनों ही पदों पर माकपा के उम्मीदवारों ने बाजी मारी और भाजपा को बहुमत मिलने के बावजूद नगर निगम की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा। वर्ष 2012 में जो चुनाव नतीजे सामने आए  उसमें भाजपा के 12 और कांग्रेस के 10 और माकपा के दो पार्षद और मेयर -डिप्टी मेयर विजय रहे। इन त्रिकोणीय समीकरणों के चलते पूरे पांच साल नगर निगम शिमला में हर हाउस में हर मामले पर नोक-झोंक होती रही। विकास कार्य की रफ्तार धीमी हो गई। स्मार्ट सिटी जैसे मुद्दे पर माकपा अकेली पड़ गई और मेयर -डिप्टी मेयर कोर्ट जा पहुंचे। पिछले पांच सालों में नगर निगम में न के बराबर स्टाफ की भर्ती हुई । कारण रहा कि प्रदेश कांग्रेस सरकार की ओर से पदों को भरने की मंजूरी ही नहीं दी गई।  नगर निगम को पूर्व में जिस तरह से ग्रांट मिलती थी,माकपा के कुर्सी संभालने के बाद वह भी नहीं मिल पाई। उसके बाद कोर्ट ने टैक्स को लेकर यूनिट एरिया मैथड लागू करने के आदेश दिए,तब कहीं जाकर टैक्स वसूली को लेकर नगर निगम गंभीर हुआ और बायलॉज बनाकर करोड़ों की टैक्स वसूली हुई। अब जाकर नगर निगम की हालत में सुधार हुआ और विकास कार्यों को कुछ गति मिल सकी।

नगर निगम चुनावों पर सबकी नजर

इसी साल के आखिर तक विधानसभा के चुनाव होने प्रस्तावित हैं। ऐसे में नगर निगम शिमला के इन चुनावों को टें्रड सैटर माना जा रहा है। कारण यह है कि शिमला में पूरे प्रदेश के कर्मचारी, व्यापारी और अधिकारी रहते हैं। शिमला शहर को मिनी हिमाचल कहा जाए तो भी अतिशयोक्ति नहीं होेगी। ऐसे में नगर निगम चुनावों से मतदाता के मन की वह इच्छा भी साफ हो जाएगी, जिसके आधार पर वह विधानसभा के प्रत्याशियों को मतदान करेंगे। निगम चुनावों को पार्टी सिंबल पर न कराने की एक वजह यही मानी जा रही है। हालांकि माकपा और भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की सूची नामांकन से पहले जारी कर दी, लेकिन कांग्रेस ने नामांकन के दिन अपने प्रत्याशियों की सूची जारी की। साफ है कि पार्टियां भी इस चुनाव को विधानसभा चुनावों से जोड़ कर देख रही है।

नगर निगम को सशक्त करने की जरुरत

शिमला में दूसरे नगर निगम की जरूरत नहीं है, बल्कि जो नगर निगम है,उसे सुदृढ़  किया जाना चाहिए। नगर निगम को और सशक्त बनाने के लिए जरूरी है कि इस संस्था को स्वायत्ता प्रदान की जाए और आर्थिक सहयोग सरकार की ओर से दिया जाए। शिमला नगर निगम प्रदेश के दूसरे निकायों के मुकाबले कहीं अलग है क्योंकि शिमला प्रदेश की राजधानी है और प्रसिद्ध पयर्टन स्थल है। अगर नगर निगम शिमला को स्वायत्तता प्रदान की जाती है तो वह स्टाफ की भर्ती से लेकर विकास कार्यों के निर्णय आसानी से ले सकेगा और कार्यों में बेवजह देरी नहीं होगी

– एमपी सूद, पूर्व आयुक्त, नगर निगम शिमला

राजधानी में खेल के मैदान ही नहीं

शिमला में कहीं पर भी न तो बच्चों को खेलने के लिए कोई पार्क की व्यवस्था है और न ही खेलने का कोई ऐसा मैदान,जहां बच्चे बेखौफ होकर बिना रोक-टोक खेल सके। रिज के आसपास जो पार्क हैं, वे इतने बड़े नहीं हैं, जहां बच्चे खेल सकें। ये पर्यटकों के लिए केवल आराम करने भर के लिए हैं। रानी झांसी पार्क, जहां पहले बच्चे खेलते थे, वह भी निर्माण कार्य के चलते बंद है। इसके अलावा कहीं भी कोई बड़ा खेल का मैदान नहीं है, जहां पर आउटडोर गेम्ज खेली जा सकें। हालांकि शहर के स्कूलों में खेल के मैदान हैं, लेकिन वहां पर बच्चे केवल स्कूल टाइम के दौरान ही खेल सकते हैं । छुट्टी के दिन बच्चों को मजबूरन सड़कों को ही खेल का मैदान बनाना पड़ता है।

अलग ढांचे की उठने लगी आवाज

नगर निगम में मर्ज किए गए टूटु, कुसुम्पटी और भट्टाकुफर मल्याणा के लोग अकसर नगर निगम को लेकर शिकायत करते हैं कि उन्हें वे सुविधाएं नहीं मिल पाइर्ं, जो नगर निगम एरिया के निवासी होने के नाते मिलनी चाहिए थीं। ऐसे में आवाज उठने लगी है कि या तो नगर निगम को और अधिक सृदृढ़ किया जाए या फिर एक अलग ढांचा बनाया जाए जो मुख्य शहर से बाहर बसे लोगों की समस्या समझ कर उनका निदान सही समय पर कर सके।

यहां तो सीवरेज लाइन तक नहीं

शिमला में अभी भी कई प्रमुख क्षेत्र ऐसे हैं, जो सीवरेज लाइन से नहीं जुड़ पाए हैं इसमें टुटू,जाखू मंदिर के आसपास समेत कई ऐसे क्षेत्र हैं,जहां सीवरेज लाइन ही नहीं है। इतना ही नहीं,कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं,जहां पर नगर निगम की कूड़ा उठाने वाली गाड़ी ही नहीं पहुंच पाती।

ढूंढू नहीं मिलेगा बच्चों के लिए पार्क 

शिमला में अभी तक एक भी ऐसा पार्क नहीं है, जहां पर बच्चों को खेलने के लिए पूरी सुविधाएं हों। शहर में जो पार्क हैं, वे केवल पर्यटकों व आम लोगों के बैठने के लिए ही प्रयोग किए जा सकते हैं।

पार्किंग के लिए आए दिन मारामारी

शिमला में पार्किंग को लेकर हमेशा मारामारी रहती है। पर्यटक तो दूर स्थानीय लोगों को भी अपने वाहन सड़क किनारे खड़े करने पड़ते हैं, जो जाम का कारण बनते हैं। यानी  राजधानी में पानी के बाद अगर कोई दूसरी सबसे बड़ी समस्या है तो वह पार्किंग की है। इस समस्या से स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटक और यहां पहुंचने वाला हर शख्स जूझता है।

शहरों का बढ़ा दायरा

जब शिमला शहर बसाया गया था तो शहर केवल माल रोड,लोअर बाजार और लक्कड़ बाजार तक सीमित था, लेकिन अब शहर का दायरा काफी बढ़ गया है। समरहिल से लेकर ढली तक और टूटु से लेकर संजौली तक सभी क्षेत्र नगर निगम के दायरे में है। ऐसे में नगर निगम को सशक्त करने की आवश्यकता काफी पहले से महसूस की जाने लगी है।

शिमला की जरूरतें अलग

शिमला शहर की भौगोलिक संरचना को देखते हुए यहां की जरूरतें भी अन्य शहरों से अलग हैं। शिमला पर्यटन और इतिहास की दृष्टि से विश्व मानचित्र पर एक अलग महत्त्व रखता है। पहाड़ी शहर होने के नाते यहां पर अन्य शहरों के मुकाबले जीवन कठिन है।  शिमला वीआईपी शहर होने के नाते यहां पर हर जगह पर गाडि़यों का पहुंचना संभव नहीं है। ऐसे में लोगों द्वारा अधिकतर पैदल मार्ग का ही उपयोग किया जा सकता है। एक्सकेलेटर और गोल्फ कार्ट जैसी सुविधाएं राहत दे सकती थीं, लेकिन यह योजनाएं सिरे ही नहीं चढ़ीं।

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