लोकतंत्र लेगा ‘कोविंद’ की परीक्षा

By: Jul 25th, 2017 12:05 am

ललित गर्ग लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं

रामनाथ कोविंद देश के चौदहवें राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं। वह एक दलित के बेटे हैं, जो सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचने की दूसरी घटना है। इससे भारत के लोकतंत्र को नई ताकत मिलेगी। सर्वव्यापी उथल-पुथल में नई राजनीतिक दृष्टि, नया राजनीतिक परिवेश आकार ले रहा है। इस दौर में कोविंद के राष्ट्रपति बनने से न केवल इस सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा बढ़ेगी, बल्कि राष्ट्रीय अस्तित्व एवं अस्मिता भी मजबूत होगी। उनकी छवि एक सुलझे हुए कानूनविद, लोकतांत्रिक परंपराओं के जानकार और मृदुभाषी राजनेता की रही है। उम्मीद है कि देश के संवैधानिक प्रमुख के रूप में उनकी मौजूदगी हर भारतवासी को उसके शांत और सुरक्षित जीवन के लिए आश्वस्त करेगी। दलित का दर्द दलित ही महसूस कर सकता है। मेरी दृष्टि में आज की दुनिया में दलितों और पीडि़तों की आवाज बुलंद करने वाले सबसे बड़े नाम के रूप में कोविंद उभर की सामने आए, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला और संयुक्त राज्य अमरीका में मार्टिन लूथर किंग की ही भांति कोविंद की भूमिका दलितों के उत्थान की दृष्टि से भी बड़ी हो सकती है। कोविंद की शानदार एवं ऐतिहासिक जीत का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी एवं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति को जाता है कि भाजपा ने इस चुनाव को बड़ी गंभीरता से लड़ा और इस क्रम में न सिर्फ कई विपक्षी दलों को अपने पक्ष में किया, बल्कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसी धुर भाजपा विरोधी पार्टियों से रामनाथ कोविंद के पक्ष में कुछ क्रॉस वोटिंग कराने में भी सफलता प्राप्त की। दूसरी ओर भाजपा के नेतृत्व ने रणनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए जातिगत रूप से पिछड़ा पृष्ठभूमि से आए व्यक्ति को प्रधानमंत्री और दलित पृष्ठभूमि से आए व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाकर वर्षों से कायम दलित-पिछड़ा उभार का अर्थ बदल दिया है। इसे वह सामाजिक समरसता का नाम देती आई है। एक दलित राजनेता के राष्ट्रपति बनने के बाद दलित एवं पिछडे़ वर्ग के साथ न्याय होना चाहिए। यह कहना गलत है कि भारत में राष्ट्रपति केवल एक प्रतीकात्मक महत्त्व वाला पद है। दलित पृष्ठभूमि से आए राष्ट्रपति केआर नारायण ने 2002 में गुजरात की सांप्रदायिक हिंसा पर सख्त रुख अपनाकर वहां की तत्कालीन राज्य सरकार को कुछ मामलों में अपना रुख बदलने को मजबूर किया था, जबकि पिछड़ा पृष्ठभूमि से आए राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने प्रचंड बहुमत के नशे में चूर राजीव गांधी सरकार को कई मुद्दों पर पसीने छुड़ा दिए थे। पूरा विश्वास है कि राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद रामनाथ कोविंद भी वैसी ही दृढ़ता प्रदर्शित करेंगे और अपने कार्यकाल को देश के लिए यादगार बना देंगे। इसमें दलित, आदिवासी एवं पिछडे़ वर्ग को जीने की एक समतामूलक एवं निष्पक्ष जीवनशैली मिले। एक साधारण परिवार के शख्स का देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होना भारतीय लोकतंत्र की महिमा का बखान है। इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता कि राष्ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविंद का निर्वाचन उनकी जैसी पृष्ठभूमि वाले करोड़ों लोगों को प्रेरणा प्रदान करने वाला है। इससे भारतीय लोकतंत्र को न केवल और बल मिलेगा, बल्कि उसका यश भी बढ़ेगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोविंद एक साधारण राजनीतिज्ञ रहे हैं, मगर भारत का यह इतिहास रहा है कि साधारण लोगों ने ही असाधारण कार्य किए हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि कोविंद ऐसे समय में वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का स्थान ग्रहण कर रहे हैं, जिन्हें मौजूदा दौर का स्टेट्समैन माना जाता है और भारत को महान बनाने में जिनके खाते में अनेक उपलब्धियां भरी पड़ी हैं। इस दृष्टि से कोविंद को एक समृद्ध एवं शक्तिशाली विरासत को आगे बढ़ाना है। देश के जितने भी राष्ट्रपति रहे हैं, वे उच्चकोटि के राजनीतिक रहे। पूरा देश उनकी बौद्धिकता और राजनीतिक दूरदृष्टि का कायल रहा है। इस पद पर चुने जाने के बाद कई राजनीतिक हस्तियों ने विशुद्ध और तटस्थ भाव से अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन किया और देश के लिए महत्त्वपूर्ण फैसले किए। गैर राजनीतिज्ञ डा. अब्दुल कलाम ने भी यह पद संभाला और उन्हें राजनीतिज्ञों के साथ काम करने में कोई दिक्कत नहीं हुई और वह भी सफल राष्ट्रपति के रूप में स्थापित हुए। मिसाइलमैन के साथ-साथ अहिंसक समाज रचना के रूप में उन्हें राष्ट्र में काफी सम्मान प्राप्त हुआ है। इसलिए किसी भी व्यक्ति का राजनीतिज्ञ या गैर राजनीतिज्ञ होना उतना अर्थ नहीं रखता, जितना सर्वोच्च पद की मर्यादाओं का पालन करना और दूरदृष्टि से काम लेना। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सर्वोच्च पर विराजमान होने वाले कोविंद का व्यक्तित्व भी उतना ही बड़ा है। बड़ी सोच एवं बड़े दिल के साथ उन्हें संवैधानिक दायरों में इस सर्वोच्च पद के नए मानक गढ़ने हैं, नई परिभाषाओं से भारत सशक्त एवं शक्तिशाली बनाना है। कोविंद जी! हमारे राष्ट्रनायकों ने, शहीदों ने, नीति निर्माताओं ने, संतपुरुषों ने एक सेतु बनाया था संस्कृति का, राष्ट्रीय एकता का, त्याग का, कुर्बानी का, जिसके सहारे हम यहां तक पहुंचे हैं। आपको भी और हमें भी ऐसा ही सेतु बनाना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ी उसका उपयोग कर सके। रामनाथ कोविंद ऐसे समय में राष्ट्रपति बन रहे हैं, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी ऊर्जा, सूझबूझ एवं दूरदर्शिता से नया भारत निर्मित करने के लिए संकल्पित हैं। दूसरी ओर कई आज देश के समक्ष कई चुनौतियां भी हैं। जिस तरह राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सदस्य नरेश अग्रवाल ने गोरक्षा के नाम पर की जा रही हत्याओं के मुद्दे पर चल रही बहस में हिंदू देवी-देवताओं को शराब के विभिन्न नामों से जोड़कर प्रस्तुत किया, उससे जहां संसद के उच्च सदन की गरिमा धुंधली हुई है, वहीं सांप्रदायिक विद्वेष की आग को जानबूझ कर हवा दी जा रही है। यह लोकतंत्र की बड़ी विडंबना है। भारत विविधता एवं साझा संस्कृति का देश है। इसमें गरीबों को उनका हक कानूनी तौर पर मिलता है, किसी की मेहरबानी से नहीं। यह हक न तो जाति देखकर दिया जाता है, न धर्म देख करए जो भी सरकार बनती है वह सवा सौ करोड़ भारतीयों की बनती है और इसका धर्म सिर्फ संविधान होता है। कोविंद के ऊपर यह भार डालकर देश आश्वस्त होना चाहता है कि संविधान का शासन अरुणाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक में निर्बाध रूप से चलेगा और देश की सीमाएं पूरी तरह सुरक्षित रहेंगी।

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