सोशल मीडिया कहीं ‘अनसोशल’ न बना दे
किशन चंद चौधरी
लेखक, बड़ोह, कांगड़ा से हैं
मां-बाप का सार्थक संवाद व अध्यापकों की रचनात्मक भूमिका विद्यार्थियों को सोशल मीडिया के मकड़जाल से आजाद कर सकती है। विद्यार्थियों को स्वयं चाहिए कि वे कम्प्यूटर, इंटरनेट व स्मार्ट फोन का सीमित व उचित प्रयोग करें। मित्रों व रिश्तेदारों से मिलें, घूमें-फिरें, योग करें व किताबों का नियमित अध्ययन करें…
वर्तमान संदर्भ में सूचनाओं का महत्त्व अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया। दूसरे शब्दों में कहें तो वर्तमान में विभिन्न देशों-सभ्यताओं के बीच बर्चस्व की जो लड़ाई लड़ी जा रही है, उसमें सूचनाएं हथियार के रूप में इस्तेमाल की जा रही हैं। आज अगर अमरीका का पूरी दुनिया पर दबदबा है, तो उसका आधार महज आर्थिक विकास ही नहीं है, बल्कि उसने अपने सूचना तंत्र को प्रभावी ढंग से विकसित कर लिया है। सर्च इंजन गूगल अमरीकी सूचना तंत्र का मुख्य घटक है। अगर हमेें अपने आस-पड़ोस की भी कोई सूचना चाहिए, तो उसके लिए हम गूगल पर खोज करते हैं। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमरीका का सूचना तंत्र कितना विकसित है।
सूचनाओं के इस संघर्ष में सोशल मीडिया एक महत्त्वपूर्ण मंच उपलब्ध करवाता है। इसके अत्यधिक महत्त्व के तीन प्रमुख कारण हैं। पहला यह कि इसका इस्तेमाल सरल व सस्ता है। दूसरा, सोशल मीडिया का नेटवर्क बहुत विशाल है। सोशल मीडिया के मार्फत आज एक बड़े वर्ग के साथ जुड़कर सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सकता है। सोशल मीडिया का तीसरा सबसे बड़ा लाभ है सेंसरशिप से मुक्ति। सोशल मीडिया काफी हद तक सेंसरशिप से मुक्त है। इसका यह लाभ है कि आप जो भी संदेश ऑडियंस तक पहुंचाना चाहते हो, उसे हू-ब-हू उसी स्वरूप में पहुंचाया जा सकता है, बिना किसी कांट-छांट के। आज का युग कम्प्यूटर के नाम से जाना जाता है। सूचना प्रौद्योगिकी ने टेलीविजन, कम्प्यूटर, इंटरनेट व स्मार्ट फोन के माध्यम से पूरे विश्व को जोड़ दिया है। कम्प्यूटर युग में जहां सरलता व स्पष्टता प्रदान की है, वहीं प्रत्येक व्यक्ति आज घर बैठे सूचनाएं, मनोरंजन, सेवाएं प्राप्त कर रहा है। संपूर्ण विश्व को सोशल मीडिया ने एक परिवार बना दिया है। विशेष तौर से विद्यार्थियों के लिए कम्प्यूटर व स्मार्ट फोन नए आयाम लेकर आए हैं। एसोचैम के एक सर्वे के मुताबिक 13 वर्ष से कम उम्र के करीब दो तिहाई शहरी बच्चे रोज यू-टयूब देखते हैं। 95 प्रतिशत किशोर 12-17 वर्ष आयु के इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। 51 प्रतिशत विद्यार्थियों के पास स्मार्ट फोन है।
ताज्जुब यह कि विद्यार्थियों को सोशल मीडिया से लाभ कम और हानि अधिक हो रही हैं। अधिकतर पढ़ने वाले युवा को स्मार्ट फोन व कम्प्यूटर से घंटों चिपके देखा जा सकता है। विद्यार्थियों की कम्प्यूटर, वीडियो गेम, इंटरनेट व ऑनलाइन गेम के प्रति लत चिंतनीय हैं। फेसबुक पर असंख्य मित्र बनाकर उनसे चैटिंग करते रहते हैं। व्हाट्स ऐप पर भी विद्यार्थी बार-बार अंगुलियां घुमाते रहते हैं। कई विद्यार्थियों को तो कक्षा के दौरान स्मार्टफोन प्रयोग करते देखा जाता है। कोई संदेश आने पर तुरंत उसका जवाब देने के कौतुहल में वे अमर्यादित होते जा रहे हैं। फेसबुक पर अधिक लाइक पाने की होड़ में विद्यार्थी हर समय अपनी फोटो व सेल्फी खींचने की लत में जकड़ जाते हैं। जहां भी जाते हैं, वहां आनंद प्राप्त करने की अपेक्षा अपनी सेल्फी लेकर फेसबुक पर अपलोड करने की जल्दी में रहते हैं। कई युवा को तो खतरनाक स्थानों, पहाड़ों, नदियों, नहरों, बिजली की तारों, चलती रेलगाडि़यों व तेज जलधारा के मध्य सेल्फी लेते समय जान से भी हाथ धोना पड़ा है।
आज सोशल मीडिया छात्रों के जीवन पर इतना हावी है कि ध्यान लगाने की क्षमता प्रभावित हो रही है। विद्यार्थियों की पुस्तकालय जाने की आदत कम होती जा रही है। शोध में पाया गया है कि फेसबुक का अधिक प्रयोग व्यवहार में चिड़चिड़ापन पैदा करता है। विद्यार्थियों की निर्भरता इंटरनेट पर बढ़ रही है, जिससे कि उनकी सोच पर बुरा असर पड़ रहा है। दूसरी ओर स्मार्ट फोन और डिवाइस के अत्यधिक इस्तेमाल से बच्चों में ड्राई आई यानी आंखों में सूखेपन की समस्या बढ़ रही है। अभिभावकों व अध्यापकों को चाहिए कि वे विद्यार्थियों को सोशल मीडिया के सही व सीमित उपयोग के बारे अवश्य बताएं। प्रौद्योगिकी, संचार व नवाचार का सदुपयोग विद्यार्थियों की दक्षता, कार्यक्षमता व बौद्धिक ज्ञान में वृद्धि कर सकते हैं। अन्यथा युवा पीढ़ी विनाश, अपराध व नशे की दहलीज पर खड़ी है। मां-बाप का सार्थक संवाद व अध्यापकों की रचनात्मक भूमिका भी विद्यार्थियों को सोशल मीडिया के मकड़जाल में आजाद कर सकती है। विद्यार्थियों को स्वयं चाहिए कि वे कम्प्यूटर, इंटरनेट व स्मार्ट फोन का सीमित व उचित प्रयोग करें। खुद पर काबू रखें। अपनी जरूरतों पर ध्यान दें। अपने मित्रों व रिश्तेदारों से मिलें, घूमें-फिरें, योग करें, किताब का नियमित अध्ययन करें। हमारी युवा पीढ़ी को चाहिए कि वह अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पूर्णतः एक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें और समय पर उन्हें यह भी तय कर लेना चाहिए कि उनके जीवन का ध्येय क्या होगा?
हम सभी का दायित्व हैं कि वाल्यावस्था से बच्चों को सुसंस्कारित बनाकर उनमें आध्यात्मिक एवं सृजनात्मक शक्ति को जागृत करके उन्हें समाज तथा राष्ट्रहित में कार्यशील होने के लिए प्रेरित करें। हमारे देश के समस्त माता-पिता, गुरुओं एवं गुणीजनों की जिम्मेदारी है कि वे इस बात को यकीनी बनाएं कि हमारी युवा पीढ़ी पथ भ्रष्ट न होने पाए।
हिमाचली लेखकों के लिए
लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।
-संपादक
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