हादसों का हिमाचल
(वर्षा शर्मा, पालमपुर)
जरा पिछले दिनों के अखबारों के पन्नों को पलट कर देखें, तो हैरानी होगी देखकर कि हिमाचल में कितने हादसे हो रहे हैं। कहीं मां-बेटी की करंट से मौत, कहीं सर्पदंश से चार लोगों की जान गई, कहीं खंभे पर चढ़े लाइनमैन की करंट से मृत्यु। कहीं किसी ने जहर खा लिया, तो कहीं कोई वाहन खाई में जा गिरा। यानी रोज हादसे और बेहिसाब हादसे। क्या यही है शांत हिमाचल, देवभूमि हिमाचल। पिछले हादसों से कोई सबक नहीं और न ही कोई प्रयास होता है कि ये हादसे रुकें। ऐसा लगता है कि हिमाचल हादसों का आदी हो गया है। जान की कीमत जर्रे से भी कम हो गई है। कहीं बस गिरती है और उस हादसे में 29 लोगों की दर्दनाक मौत हो जाती है। एक पल में कितने ही घरों के चिराग बुझ गए। प्रदेश भर की संवेदनाएं एकाएक पीडि़तों के साथ जुड़ जाती हैं और सुधरने के संकल्प लिए जाते हैं, लेकिन दो-चार दिनों में ही सब पुराने ढर्रे पर आ जाता है। हादसा हुआ, जांच की फाइल बनी और कुछ ही दिनों में फाइल अलमारी में जगह बना लेती है। हाल यही रहा और कवायद यही रही, तो इन हादसों की रफ्तार यही रहेगी। जब तक हादसों से सबक नहीं लिया जाता, हादसों का सफर यूं ही जारी रहेगा।
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