अभिनव रास्ते पर अवनीश

आज जब गरीब व्यक्ति भी अपना पेट काटकर अपने बच्चे को महंगे से महंगे निजी स्कूलों में पढ़ाना चाहता है, इंग्लिश मीडियम का व्यामोह इस कदर हावी है कि लोग अपनी खून-पसीने की कमाई खर्च करने में चूक नहीं रहे हैं, तब किसी सरकारी स्कूल में किसी कलेक्टर द्वारा अपनी बच्ची का नामांकन कराना एक साहसिक कदम तो माना ही जाएगा, इसके साथ ही यह उसकी सामाजिक प्रतिबद्धता को भी दिखाता है…

शिक्षा और स्वास्थ्य की गिनती व्यक्ति की सर्वाधिक मूलभूत जरूरतों में होती है। इन क्षेत्रों की विसंगतियां लोगों को सबसे अधिक चुभती हैं। संभवतः इसी कारण बदलाव और बेहतरी की सर्वाधिक बातें इन्हीं क्षेत्रों में होती हैं। इसके साथ यह भी इतना ही सच है कि इन क्षेत्रों में बदलाव करना कभी भी सरल नहीं रहा है। हालिया दिनों में तो यह और भी मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि शिक्षा और स्वास्थ्य उद्योग बन गए हैं और यहां पर मुनाफे का तर्क सभी सदेच्छाओं पर भारी पड़ रहा है। ऐसे में छत्तीसगढ़ से एक बड़ी सुकून देने वाली खबर आई है। शिक्षा के मामले में बेहद संवेदनशील माने जाने वाले छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के कलेक्टर अवनीश कुमार शरण ने एक नई मिसाल पेश की है। उन्होंने अपनी पांच साल की बेटी का दाखिला सरकारी स्कूल में करवाया है। कलेक्टर साहब ने बेटी की प्राथमिक स्तर की पढ़ाई के लिए जिला मुख्यालय के शासकीय प्रज्ञा प्राथमिक विद्यालय को चुना है। यह पहली बार नहीं है जब कलेक्टर अवनीश कुमार ने ऐसा कदम उठाया हो, इससे पहले वह अपनी बेटी को पढ़ाई के लिए आंगनबाड़ी स्कूल में भी भेज चुके हैं। इस बिंदु पर ध्यान देने वाली बात यह है कि बलरामपुर जिला में शिक्षा को लेकर प्रयोग होते रहे हैं। इस जिले में लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए ‘उड़ान’ और ‘पहल’ जैसी योजनाएं शुरू की गई थीं। इन योजनाओं की तारीफ खुद सूबे के मुखिया सीएम रमन सिंह कर चुके हैं। आज जब गरीब व्यक्ति भी अपना पेट काटकर अपने बच्चे को महंगे से महंगे निजी स्कूलों में पढ़ाना चाहता है, इंग्लिश मीडियम का व्यामोह इस कदर हावी है कि लोग अपनी खून-पसीने की कमाई खर्च करने में चूक नहीं रहे हैं, तब किसी सरकारी स्कूल में किसी कलेक्टर द्वारा अपनी बच्ची का नामांकन करना एक साहसिक कदम तो माना ही जाएगा, इसके साथ ही यह उसकी सामाजिक प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। इससे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी सरकार को निर्देशित किया था कि वह सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी विद्यालय में पढ़ाने संबंधी नीति तैयार करे। इस पर काफी हो-हल्ला मचा, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी। ऐसे में अवनीश कुमार शरण की पहल में बड़े बदलाव की संभावनाएं छिपी हैं। आखिर व्यक्तिगत स्तर पर पेश की नजीर भी कभी कभी नीति का आधार बन जाती है। अगर कुछ अन्य कर्मचारी भी इस पहल को आगे बढ़ाएं तो शिक्षा क्षेत्र में सुधार और बदलाव दोनों संभव है।

– डा.जयप्रकाश सिंह

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