कूहल के मलबे ने जाम कर दी पुलिया

करसोग – उपमंडल मुख्यालय करसोग के लगभग चार किलोमीटर के दायरे में तीन स्थानों पर सड़क में लोक निर्माण विभाग की इंजीनियरिंग का कमाल दिखाने को ग्रामीण महीनों से मांग करते आ रहे हैं, परंतु लोक निर्माण विभाग की कार्यप्रणाली पर गौर किया जाए तो स्पष्ट देखा जा सकता है कि कई स्थानों पर जनता की सुविधाओं से जुडे़ हुए कार्य लगभग मजदूरों के ही हवाले व ठेकेदारों के माध्यम से हो रहे हैं, जबकि कहीं भी लोक निर्माण विभाग का कार्य होता है तो उसमें निश्चित तौर पर विभाग की आंख निगरानी करती हुई जरूर मौजूद होनी चाहिए, परंतु ऐसा शायद करसोग में कभी कभार ही देखने को मिलता है। करसोग से लगभग चार किलोमीटर दूर भंथल में सालों से खराब सड़क की हालत सुधारने के लिए सरकार द्वारा भले ही लगभग 35 लाख रुपए का विशेष बजट दिया है, परंतु उस कार्य में मरम्मत शुरू होते ही विभागीय कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठने शुरू हो चुके हैं। भंथल में सहकारी सभा के समीप करसोग से रामपुर जाने वाली मुख्य सड़क पर कूहल का पानी सड़क के आरपार भूमिगत ले जाने के लिए जो स्लीपर डाले गए हैं वह एक सप्ताह में ही कार्य कुशलता की पोल खोलते हुए दिखाई दे रहे हैं क्योंकि जो स्लीपर डाले गए हैं उनमें लगभग 60 प्रतिशत मलबा भर चुका है तथा तीन स्लीपर के स्थान पर दो स्लीपर डालकर विभाग ने पल्ला झाड़ लिया है व सड़क खुली होने के बावजूद सिकुड़ गई है, जिस पर  विभाग गौर करे तो निश्चित तौर पर कूहल का पानी भी असानी से गुजरेगा, सड़क भी खुली होगी, परंतु जनता की सुनता कौन है ।  इस बात का रोष भंथल निवासी उत्तम चंद, तेज राम सहित अनेक लोगों ने ‘दिव्य हिमाचल’ को मौके पर बुलाते हुए किया। लोगों ने कहा कि उसी स्थान पर लगभग चार लाख रुपए लगाकर एक पुलिया का निर्माण कूहल के पानी को किया गया था जो एक साल में ही मलबे से जाम हो चुकी है और जनता के पैसे की बर्बादी हुई है, जिसकी जांच होनी चाहिए व उसका खर्च पीडब्ल्यूडी के जिम्मेदार कर्मचारियों व अधिकारियों से वसूल कर एक मिसाल कायम होनी चाहिए। ग्रामीणों ने कहा कि पिछले दिनों इस सड़क की मरम्मत कार्य में स्लीपर डालते हुए लोगों ने एतराज किया कि तकनीकी कार्य ठीक नहीं है। इसी के साथ करसोग बस अड्डे के मुहाने पर सालों से सड़क के बीचोंबीच नाली का गंदा पानी निकासी को जो जंगले लगा रखे हैं उसमें मजदूर तो अनेक बार मरम्मत करते हुए देखे गए हैैं तथा वह मरम्मत कार्य भी सप्ताह से ज्यादा नहीं टिक पाता है। जंगलों को ऊपर उठाया जाता है, परंतु कुछ दिन बाद वह फिर गड्ढों में बदल जाते हैं व वाहन हिचकोले खाते रहे इसकी चिंता किसी को नहीं है। तीसरा मामला करसोग के दूरभाष केंद्र के सामने से नैहरा-भंडारणू सड़क पर देखा जा सकता है, जिसमें नैहरा गांव के समीप अंतिम छोर पर सालों से सड़क खराब पड़ी हुई है, जिसकी लीपापोती करते हुए लाखों रुपए खराब किए जा रहे हैं, परंतु कुछ दिन बाद सड़क की हालत बद से बदतर हो जाती है।

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