लंगर लगाने के नाम पर स्वच्छता को ठेंगा

धार्मिक स्थलों पर संस्थाओं की मनमानी; शक्तिपीठों में कचरे के ढेर, गंभीर नहीं दिख रहे मंदिर न्यास प्रशासन

ऊना — हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल चिंतपूर्णी, नयनादेवी, बाबा बालकनाथ व ज्वालाजी में लंगर लगाने के नाम स्वच्छता के नियमों को ठेंगा दिखाया जा रहा है। एक ओर जहां धार्मिक स्थलों में प्रदेश के अलावा अन्य बाहरी राज्यों दिल्ली, चंडीगढ़, पंजाब, राजस्थान व हरियाणा आदि राज्यों की संस्थाएं लंगर लगाती हैं, लेकिन इन संस्थाओं द्वारा नियमों की अनदेखी की जा रही है। लंगर लगाने के बाद अधिकतर संस्थाएं सफाई व्यवस्था सुचारू बनाए रखने में असफल साबित हो रही हैं। शक्तिपीठों में लंगर लगाने वाली इन संस्थाओं की गलतियों का खामियाजा अन्य श्रद्धालुओं को भी भुगतना पड़ रहा है, लेकिन धार्मिक स्थलों के मंदिर न्यास प्रशासन भी इस समस्या को लेकर गंभीर नहीं दिख रहे हैं। इसके चलते आए दिन इन संस्थाओं की मनमानी देखने को मिलती है। प्रशासन द्वारा इन संस्थाओं को लंगर लगाने के लिए अनुमति लेना अनिवार्य किया गया है। बाकायदा इन संस्थाओं की सिक्योरिटी भी जमा की जाती है, ताकि कोई भी संस्था इस तरह की कोताही न कर सके, लेकिन इसके बावजूद मंदिर न्यास प्रशासन के ढुलमुल रवैया के चलते लंगर संस्थाओं की मनमानी देखी जा सकती है। हालांकि प्रशासन की ओर से इन संस्थाओं को सफाई व्यवस्था बेहतर बनाए रखने की सख्त हिदायत दी जाती है। बाकायदा लंगर संस्था के मुखिया को नियमों के बारे में बताया जाता है, लेकिन उसके बाद भी इन संस्थाओं के लिए सभी नियम छोटे पड़ रहे हैं। प्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी, नयनादेवीजी, ज्वालाजी, बाबा बालकनाथ सहित अन्य धार्मिक स्थलों में हर साल चैत्र नवरात्र (गुप्त नवरात्र), अश्विन नवरात्र व श्रावण अष्टमी नवरात्र में मेलों का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा संक्रांति पर्व, एकादशी पर्व पर भी लंगर लगते हैं। हद तो तब हो जाती है, जब कई संस्थाओं द्वारा सड़क मार्ग में ही लंगर लगाए जाते हैं। सड़कों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रहती है। इसके चलते यातायात भी प्रभावित होता है। दुर्घटनाओं का भी अंदेशा बना रहता है। इसके बावजूद इस तरह की समस्या को लेकर प्रशासन गंभीर नहीं दिखता है। हालांकि अधिकतर नवरात्र मेला या खास पर्व के मौके पर प्रशासन की ओर से शक्तिपीठों में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए बाकायदा अलग-अलग कमेटियां गठित की जाती हैं, ताकि श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं मुहैया करवाने के साथ ही अन्य समस्याओं का भी समाधान किया जा सके, लेकिन धरातल पर इस तरह के सभी दावे खोखले ही साबित हो रहे हैं। बहरहाल, इन संस्थाओं की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए मंदिर न्यास की ओर से उचित कदम उठाने चाहिएं।

छोटे पड़ रहे नियम

अधिकतर संस्थाओं द्वारा बिना अनुमति ही लंगर लगाए जाते हैं। इन पर्वों पर उक्त धार्मिक स्थलों में श्रद्धालुओं की भारी-भरकम भीड़ होती है। संस्थाओं द्वारा शक्तिपीठों में अथाह आस्था होने के साथ ही पुण्य कमाने के लिए लंगर लगाए जाते हैं। आस्था होने के बाद भी इनके लिए नियम छोटे पड़ गए हैं।

मंदिरों की सुंदरता पर ग्रहण

प्रदेश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में लंगर लगाने के बाद संस्थाएं यहां पर सफाई-व्यवस्था करने में भूल जाती हैं। लंगर के बाद जगह-जगह शक्तिपीठों में कचरे के ढेर देखे जा सकते हैं, जो कि शक्तिपीठों की सुंदरता पर ग्रहण भी लगाते हैं।

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