सामाजिक समस्याओं की जड़ है बेरोजगारी

By: Jul 1st, 2017 12:02 am

हरि मित्र भागी

लेखक, धर्मशाला, कांगड़ा से हैं

विश्व के विभिन्न देशों में कई शीर्ष कंपनियों के कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक भारतीय हैं। जहां यह हमारे लिए गर्व का विषय है, वहीं हमारे स्वाभिमान पर चोट भी तो करता है। जो चिकित्सक, वैज्ञानिक, शिक्षक, अधिकारी या अन्य कर्मचारी विदेशों में सेवाएं दे रहे हैं, वे भारत के विकास और उन्नति में क्यों योगदान नहीं देते…

केंद्र की मोदी सरकार अपने कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य पर अपनी अब तक की प्रमुख उपलब्धियों को गिना रही है। उत्तर प्रदेश सरीखे अहम राज्य में सरकार बनाने के बाद सत्तारूढ़ भाजपा और भी उत्साह में दिख रही है। यहां से उसका प्रयास है कि आने वाले समय में विभिन्न राज्यसभा चुनावों में भी अपने विजयी अभियान को जारी रखे, ताकि अपने कांग्रेसमुक्त भारत के सपने को साकार कर सके। बेशक अपने तीन वर्षीय कार्यकाल में केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था से लेकर रक्षा, तकनीकी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और ढांचागत विकास के स्तर पर कई मील पत्थर तय किए हैं। शासन के स्तर पर जो निष्क्रियता जनता को पहले सता रही थी, वह भी वर्तमान मोदी सरकार ने काफी हद तक तोड़ी है। इसके बावजूद अब भी भारत में कई समस्याएं अपनी जगह बरकरार हैं। हाल ही में छिड़ा किसान आंदोलन, कश्मीर में युवाओं द्वारा सेना पर पथराव, नक्सली हमलों में वृद्धि और सामाजिक जीवन में बढ़ा अपराध हम सब के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इन तमाम समस्याओं की जड़ में एक कारक समान दिखता है और वह है बेरोजगारी।  लिहाजा हम यदि बेरोजगारी की समस्या से ही निपट लें, तो एक साथ कई समस्याओं का प्रभाव कमजोर पड़ेगा। किसी विचारक ने ठीक ही कहा है कि देश में राजनीतिक लोकतंत्र के साथ-साथ आर्थिक लोकतंत्र की बहाली भी बेहद आवश्यक है। मोदी ने पदभार संभालने के बाद से मोदी ने अब तक कई देशों का भ्रमण किया है। इस दौरान वह जिस भी देश में गए, वहां उनका प्रवासी भारतीयों का समुदाय स्वागत करता रहा। आज विश्व के विभिन्न देशों में कई शीर्ष कंपनियों के कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक भारतीय मूल के हैं। यह जहां हम सब के लिए गर्व का विषय है, वहीं कहीं न कहीं हमारे स्वाभिमान पर चोट भी तो करता है। जो चिकित्सक, वैज्ञानिक, शिक्षक, अधिकारी या अन्य कर्मचारी विदेशों में सेवाएं दे रहे हैं, वे भारत के विकास और उन्नति में क्यों योगदान नहीं देते। प्राकृतिक या अन्य संसाधनों के तौर पर यदि हम संपन्न हैं, तो फिर ये प्रवासी भारतीय यहां सेवाएं देकर क्यों राजी नहीं?

युवाओं को रोजगार देने में हमारी नीतिगत विफलता इसका एक बड़ा कारण है। सच कहें, तो हमारे शासकों ने इस खामी को दुरुस्त करने में कभी संजीदगी दिखाई ही नहीं। आज देश में अगर बेरोजगारी बढ़ रही है, तो इसमें हमारे देश की राजनीति का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है। नेताओं ने रोजगार भी वोट हथियाने का एक जरिया बना लिया। वहीं रोजगार में आरक्षण का झुनझुना देकर हमारे शासक युवाओं की अपेक्षाओं-उम्मीदों के साथ खिलवाड़ करते रहे हैं। हमारे नीति नियंताओं ने भी कभी युवाओं को यह समझाने की कोशिश नहीं की कि सरकारी या निजी संस्थानों में नौकरी के अलावा भी स्वरोजगार के रूप में रोजगार के कई विकल्प मौजूद हैं। नतीजा यह हुआ कि देश-प्रदेश के हर पढ़े-लिखे युवा को जब रोजगार नहीं मिल पाया, तो उन्होंने गलत रास्ते चुन लिए। कोई बेरोजगार युवा कुछ पैसों के लालच में कश्मीर में सेना  पर पत्थर बरसा रहा है, तो किसी ने नक्सलवाद की राह पकड़ ली। समाज में जो लोग चोरी, डकैती, हत्या या लूटपाट जैसे अपराध को अंजाम दे रहे हैं, उनमें भी एक बड़ा वर्ग बेरोजगारों का ही है। ऐसे में बेरोजगारी हर दिन समाज को किसी न किसी रूप में छलनी कर रही है और इसके बावजूद हम इसका कोई कारगर हल अभी तक ढूंढ नहीं पाए हैं। यदि समाज को रहने लायक बनाए रखना है, तो बेरोजगारी से शासन व समाज को गंभीरता के साथ निपटना होगा। वर्तमान ते रोजगार के नए अवसर सृजित करने के लिए हमें अपने इतिहास को खंगालना होगा कि आखिर हमारे पूर्वज रोजगार की किन विकल्पों को अपनाते थे। मौजूदा संदर्भों में जो विकल्प कारगर नजर आते हैं, उन्हें क्रियान्वित करने में हमें हिचकना नहीं चाहिए। हमें उन देशों के रोजगार मॉडल को भी समझना होगा, जो बेरोजगारी से प्रभावी ढंग से निपटे हैं। बेरोजगारी से निपटने के मोर्चे पर अब हमें स्पष्ट नीति व नीयत के साथ आगे बढ़ना होगा। अन्यथा हम इसी पहेली के साथ जीने को विवश रहेंगे कि भारत एक संपन्न और समृद्ध देश है, इसके बावजूद इसका एक बड़ा तबका गरीब है। हमारे गांवों में रोजगार सृजन की अद्भुत क्षमता है। गांवों में कृषि-बागबानी को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ ग्रामोद्योगों को भी विकसित करना होगा। इससे जहां कुल उत्पादन में वृद्धि होगी, वहीं हर हाथ को काम देने का संकल्प भी पूरा हो पाएगा। इसके अलावा जिन विभागों में पद खाली पड़े हैं, उन्हें भरकर कुछ युवाओं को रोजगार दिया जा सकता है। इसके अलावा विभागीय कार्य की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए आरक्षण या पिछले दरवाजे से नियुक्तियों की प्रथा पर भी अब विराम लगना चाहिए।


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