हिमाचली पुरुषार्थ : जीवाश्मों में जान फूंकते डा. सांख्यान

By: Jul 12th, 2017 12:07 am

डा. अनेक राम सांख्यान को बचपन में जीवाश्म एकत्रित करने के शौक ने वरिष्ठ मानव विज्ञानी बना दिया। जानकारी न होने के बावजूद स्कूली समय में  क्षेत्र में पड़े दांत व हड्डियों को उठा लाते थे। स्कूल में आने वाले प्रो. एसआरके चोपड़ा को उन जीवाश्मों को देते थे, जिनसे प्रेरणा लेकर आगे मानव विज्ञानी बनने की ओर कदम बढ़ाया…

हिमाचली पुरुषार्थ : जीवाश्मों में जान फूंकते डा. सांख्यानलाखों साल पुराने मानव पूर्वजों के अवशेषों की खोज कर चुके घुमारवीं के वरिष्ठ मानव विज्ञानी डा. अनेक राम सांख्यान को बचपन में जीवाश्म एकत्रित करने के शौक ने वरिष्ठ मानव विज्ञानी बना दिया। जानकारी न होने के बावजूद स्कूली समय में  क्षेत्र में पड़े दांत व हड्डियों को उठा लाते थे। स्कूल में आने वाले प्रो. एसआरके चोपड़ा को उन जीवाश्मों को देते थे, जिनसे प्रेरणा लेकर आगे मानव विज्ञानी बनने की ओर कदम बढ़ाया। देहरादून व कोलकाता में अपनी सेवाएं देने के बाद घुमारवीं की आईपीएच कालोनी में मकान बनाकर उसमें अपने स्तर पर पेलियो म्यूजियम की स्थापना की। जिसमें एक करोड़ साल पुराने अवशेषों के साथ एग्जीबिशन पैनल तथा चित्रों के साथ मानव उदय की स्टोरी को अंकित किया है। म्यूजियम में एपमैन से लेकर आधुनिक मानव तक के अवशेष, जीवाश्म सहित पूरी कहानी है। लोगों के लिए यह म्यूजियम अभी हाल ही में खुला है, जिसमें लोग फ्री ऑफ कॉस्ट जानकारी हासिल कर सकते हैं। घुमारवीं उपमंडल की मरहाणा पंचायत के गांव चुंजवानी में अगस्त 1951 में इनका जन्म हुआ। पिता गोविंद राम व माता भोलां देवी  के घर जन्मे डा. अनेक राम सांख्यान की प्राथमिक शिक्षा व सेकेंडरी तक एजुकेशन राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला भराड़ी में ही हुई। डा. सांख्यान ने बीएससी तक की पढ़ाई डीएवी कालेज चंडीगढ़ तथा एमएससी की पढ़ाई पंजाब यूनिवर्सिटी से पूरी की। मानव विज्ञान में एमएससी करने के बाद पीजीआई चंडीगढ़ में एक साल तक ब्लड बैंक में जेनेटिक्स के ऊपर एक साल तक रिसर्च किया। सन् 1975 में जमना सांख्यान से शादी के बंधन में बंध गए। 1975 में ही भारतीय मानव सर्वेक्षण देहरादून में उनकी फर्स्ट ज्वाइनिंग हुई। इसके बाद 1991 में कोलकाता हैड आफिस में इन्होंने ज्वाइन किया।

मानव अवशेषों पर कर रहे 30 सालों से रिसर्च :

डा. सांख्यान पिछले तीस सालों से मानव अवशेषों पर रिसर्च कर रहे हैं। जिनमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है। शिवालिक क्षेत्र से लेकर अफ्रीकन देशों तक इन्होंने मानव अवशेषों पर रिसर्च की। यूएसए तथा इंग्लैंड के वैज्ञानिक इनके साथ काम कर चुके हैं तथा कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर के सेमिनारों में कई बार अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। शिवालिक क्षेत्र के हरितल्यांगर, नूरपुर, रामनगर व पिंजौर सहित इन्हें मानव के पूर्वजों के अवशेष मिले हैं। ये अवशेष रिसर्च में भी अप्रूव हो चुके हैं। भपराल में आदि मानव के औजार मिले। हरित्लांगर में नौ लाख साल पुराने मानव के पूर्वजों के अवशेष मिले। जिन्हें वनमानुष कहा जाता था। नर्मदा घाटी में वामन मानव की अस्थियां मिली हैं।

पेलियो रिसर्च सोसायटी का किया गठन :

डा. अनेक राम सांख्यान ने म्यूजियम के लिए पेलियो रिसर्च सोसायटी का गठन किया है। जिसमें हिंदोस्तान के 30 वैज्ञानिकों सहित लोकल लोग भी शामिल हैं।

इंग्लैंड और चीन में कर चुके हैं जीवाश्म स्थलों का अध्ययन :

डा. अनेक राम सांख्यान इंग्लैंड, फ्रांस, चीन, इंडोनेशिया तथा अफ्रीका के नौ देशों सहित अन्य देशों के जीवाश्म स्थलों का अध्ययन कर चुके हैं। डा. सांख्यान को किताबें लिखने का भी शौक है। अब तक वह पांच किताबें लिख चुके हैं।

– राजकुमार सेन, घुमारवीं

हिमाचली पुरुषार्थ : जीवाश्मों में जान फूंकते डा. सांख्यानजब रू-ब-रू हुए…

घुमारवीं में जीवाश्म पार्क बनाने का है सपना…

मानवीय अभिरुचियों में विज्ञान का प्रवेश  क्या किसी अदृश्य ताकत का नियंत्रण है या हमारे मन-मस्तिस्क पर विज्ञान का प्रभाव जन्म से रहता है?

मानवीय अभिरुचियों में विज्ञान के प्रवेश में अदृश्य ताकत का नियंत्रण है। डीएनए में जीन्स प्रवृत्तियों को नियंत्रित करता है।

आपके बचपन में ऐसा क्या हुआ कि आप यकायक परिवेश में जीवाश्मों को खोजते रहे?

पंजाब यूनिवर्सिटी से मानव विज्ञानी जीवाश्मों की खोज करने शिवालिक की पहाडि़यों में आते थे। उनसे ही प्रेरणा पाकर बचपन से ही जीवाश्मों की खोज के प्रति दिलचस्पी बढ़ी। क्योंकि किसी प्रतिक्रिया के लिए क्रिया जरूरी होती है।

मानव जीवन के बाल्याकाल में कितनी वैज्ञानिक मनोवृत्ति का उत्थान संभव है और क्या हमारी शिक्षा इस दृष्टि से बच्चों का मन पढ़ पाई है?

बाल्याकाल में कुछ जिज्ञासाएं होती हैं। मैं उन जिज्ञासाओं की गहराई तक गया उनका चिंतन किया। हमारी शिक्षा इस दृष्टि से अभी तक बच्चों का मन नहीं पढ़ पाई है।

आपको कैसे पता चला कि विज्ञान ही आपके भविष्य का रास्ता है और कैसे प्रेरित हुए?

बचपन में मानव विज्ञानियों से मिली प्रेरणा से ही मैंने विज्ञान में अपना भविष्य तलाशा।

भारतीय मानव सर्वेक्षण के जरिए आप अपने योगदान को कैसे देखते हैं?

भारतीय मानव सर्वेक्षण में शोध करने के अवसर मिले। यदि दूसरा डिपार्टमेंट मिलता, तो रिसर्च नहीं हो पाता।

हमारी पौराणिक कथाओं और अनुश्रुतियों में मानव और समाज की रचना का जो संसार बताया जाता है, क्या ऐसे किसी रहस्य के अवशेष आपके हाथ लगे?

जी हां, नर्मदा घाटी में डेढ़ लाख साल पुराने वामन व्यक्ति की कॉलर अस्थि मिली थी। इसका गहराई से अध्ययन किया। इस पर रिसर्च किए गए। अंडेमान के बौने लोगों पर रिसर्च हुई। गहन चिंतन के बाद आध्यात्मिक तौर पर भगवान श्री विष्णु के वामन अवतार से इसे जोड़कर देखा गया।

अब तक के अनुसंधान का सरल सारांश।

पिछले कई सालों से शोध में लगा हूं। शिवापेथिक्स का दांत मिलने से इतिहास की नई इबारत लिखी। इससे यह बहस छिड़ गई कि मानव की उत्पत्ति अफ्रीका में नहीं, बल्कि एशिया में हुई। मानव विकास की परिकल्पना को चुनौती दी है। वामन अवतार को प्रमाणित करना तथा मानव के औजार ढूंढने से प्रमाणित करना कि पाषाण युग का मानव शिवालिक क्षेत्र में विचरण करता था। इसके अलावा कई अन्य शोध किए गए हैं।

घुमारवीं में आपकी उपलब्धियों से भरे म्यूजियम में जो सबसे अमूल्य वस्तु है?

म्यूजियम में रखी हर वस्तु अमूल्य है।

अंततः  आप मानव उत्पत्ति के वैज्ञानिक पक्ष के सामने खड़ी भ्रांतियों को कितना दूर कर पाए हैं?

मैंने विचार व शोध प्रकट कर दिए हैं। कितनी भ्रांतियां दूर कर पाया, इसकी फीडबैक नहीं मिल पाई। मीडिया या दूसरी संस्थाएं इसका फीडबैक ले सकती हैं।

हिमाचल में मानव विज्ञान के आधार पर खोज की कितनी संभावना आप देखते हैं?

मेरे तथा दुनिया भर के वैज्ञानिकों के शोध में अब तक यह निकला है कि हिमाचल केवल देवभूमि ही नहीं, बल्कि प्राचीनतम आदिम भूमि भी है। शिवालिक क्षेत्र के हरित्लांगर से भपराल तक मिले जीवाश्म यह साबित कर चुके हैं।

जीवन की सबसे बड़ी प्ररेणा और उपलब्धि में आप खुद को कहां देखते हैं?

अपने काम से संतुष्ट हूं, पर चैलेंज भी बहुत हैं। विज्ञान से संबंधित कम चीजें पब्लिश होती हैं, लेकिन उनके काफी शोध लोगों तक पहुंच गए हैं।

कोई ऐसा सपना जिसे पूरा करना चाहते हों?

हां, घुमारवीं में बहुत बड़े जीवाश्म विज्ञान पार्क बनाने का सपना है। जो अभी तक अधूरा है। कोर्ट के समीप पार्क बनाने के लिए सरकार को प्रोपोजल भेजी है।

और म्यूजियम के माध्यम से आपका संकल्प?

पब्लिक तक जानकारी पहुंचाने का म्यूजियम बहुत बड़ा साधन है। इसके माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक जानकारी पहुंचाना ही मेरा संकल्प है।

क्या मानव के इर्द- गिर्द संसार बदलता रहा या बदलते संसार ने  मानव को  अधिक प्रभावित किया?

इसमें दोनों ही चीजें हैं। बदलते पर्यावरण से ही मानव ने अपना विकास किया है। परिवेश में बदलाव ने मानव को प्रभावित किया है।

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