मुफ्ती को कुर्सी का डर !
(स्वास्तिक ठाकुर, पांगी, चंबा )
मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को लेकर दिए गए उस बयान को लेकर देश भर में कड़ा विरोध होने लगा है, जिसमें उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर धारा-370 को मजबूत करने वाले अनुच्छेद-35ए से केंद्र सरकार ने कोई छेड़छाड़ की, तो जम्मू-कश्मीर में तिरंगा थामने वाला कोई नहीं रहेगा। महबूबा के इस बयान से पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के बीच तल्खियां बढ़ी हैं। महबूबा मुफ्ती का यह बयान हैरतंगेज तो है, लेकिन अप्रत्याशित नहीं। महबूबा मुफ्ती की पार्टी कहीं न कहीं शुरू से ही अलगावादी समर्थक रही है। राज्य में इसके सहयोगी दल भाजपा और इसकी विचारधारा में जमीन आसमान का फर्क है। इसी के चलते जब दोनों दलों ने गठबंधन सरकार बनाने का निर्णय लिया था, तभी से इसका अंदेशा था कि वैचारिक अंतर के साथ दोनों दलों के लिए राज्य में सरकार चलाना आसान नहीं होगा। वर्तमान में महबूबा का जो बयान आया है, वह उसी अनिश्चितता की बानगी है। यहां सवाल उठता है कि महबूबा को इस हद तक राष्ट्र विरोधी बयान क्यों देना पड़ा है? जम्मू-कश्मीर के एक मुख्यमंत्री ने अरसा पहले कहा था कि जब हमारी कुर्सी खिसकने लगती है, तो केंद्र सरकार को गाली देना और अपने सारे दोष उसके मत्थे मढ़ देना सब से आसान नुस्खा होता है। क्या महबूबा मुफ्ती भी अब सूबे में उसी नीति का अनुसरण कर रही हैं?
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