अपनी कमाई छिपा रहे निजी अस्पताल

कैग की रिपोर्ट में खुलासा, मोटी फीस लेने के बाद भी नाममात्र का भर रहे टैक्स

नई दिल्ली – सरकार से तमाम तरह की रियायत पाने के बावजूद मरीजों से मोटी फीस वसूलने वाले निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम और निदान केंद्रों से आयकर वसूली की व्यवस्था खामियों से भरी पड़ी है, जिससे उन्हें अपनी कमाई  छिपाने का पूरा मौका मिल जाता है। निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ‘कैग’ की ताजा रिपोर्ट में  कहा गया है कि देश में गुणवत्ता युक्त चिकित्सा सेवाओं की मांग पूरी करने के लिए सार्वजनिक बुनियादी ढांचा अपर्याप्त होने के कारण निजी स्वास्थ्य सेवाओं का कारोबार फल फूल रहा है। इस क्षेत्र में अप्रैल 2000 से 2016 के बीच कुल 23169.91 करोड़ रुपए का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आ चुका है, लेकिन इनसे आयकर कानून के प्रावधानों का अनुपालन कराने और उसके तहत की जाने वाली कर वसूली की प्रणाली में खामियां होने के कारण कमाई के हिसाब से आयकर वसूल नहीं किया जा सका । कैग के अनुसार निजी डाक्टरों, अस्पतालों, नर्सिंग होम, मेडिकल क्लीनिक, मेडिकल कालेज, निदान केंद्र और प्रयोगशालाओं द्वारा सेवाओं के लिए शुल्क ज्यादातर नकद में प्राप्त किया जाता है, जिससे कर चोरी की पूरी संभावनाएं मौजूद रहती हैं। कमाई के हिसाब से आयकर चुकाने के विवरण का पता लगाने के लिए आयकर महानिदेशक प्रणाली (डीजीआईटी) के तहत 604 चिकित्सा पेशेवरों, 605 नर्सिंग होम और 606 स्पेशलिस्ट अस्पतालों का वित्त वर्ष 2012-13 से 2015-2016 की अवधि के बीच का लेखापरीक्षण किया गया। इसमें  आयकर नियमों के अनुपालन सुनिश्चित करने की व्यवस्था का अभाव, आय और व्यय के लिए अलग-अलग श्रेणियों की स्पष्ट व्याख्या नहीं होने, गैर लाभ और लाभ वाली सेवाओं की स्पष्ट परिभाषा का अभाव जैसी कई त्रुटियां पाई गईं, जिससे इनके सही आय का आकलन नहीं किया जा सका। रिपोर्ट के अनुसार निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से जुड़ी सभी गतिविधियों पर अलग-अलग श्रेणी के तहत आयकर के वे सारे नियम लागू होते हैं, जो व्यक्तियों, अविभाज्य हिंदू परिवारों, कंपनियों, फर्मों, न्यासों, धर्मार्थ संस्थानों आदि के लिए निर्धारित किए गए हैं। इन प्रावधानों से इन्हें कोई छूट नहीं मिली है। लेखा परीक्षा में पाया गया कि निजी सेवा क्षेत्र में कर आधार को और मजबूत करने के लिए आयकरदाता डाटा प्रबंधन प्रणाली और नान फाइलर्स निगरानी प्रणाली का प्रभावी कार्यान्वयन नहीं किया गया। कौन-कौन से पंजीकृत चिकित्सा पेशेवर, चिकित्सा कंपनियां और स्वास्थ्य सुविधाएं आयकर की किस श्रेणी के दायरे में शामिल थीं, इसका सत्यापन करने की कोई प्रणाली मौजूद नहीं थी। प्रकृति के आधार पर सेवाओं को अलग-अलग करोबार में संहिताबद्ध नहीं किया गया था। लेखापरीक्षा में यह भी पाया गया कि दिल्ली, केरल, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों में नान फाइलर्स की पहचान के लिए कोई तंत्र नहीं था।

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