संबंधों की नाव पर

उल्टी दिशा में प्रश्न

वर्णिका और उनके पिता का यह दृष्टिकोण एकदम नया है। प्रश्न उठाने वालों को उन्होंने सच का आईना भी दिखाया और किसी के हाथों का खिलौना भी नहीं बने। फिर भी यह प्रश्न अपनी जगह बना हुआ है कि पीडि़त से प्रश्न पूछने की मानसिकता क्या अमानवीय नहीं है और क्या इसके कारण अन्याय का मनोबल नहीं बढ़ता…

सूचनाओं की अफरा-तफरी के इस दौर में सच सबसे अधिक प्रश्न झेलने के लिए विवश है। झूठ कुछ भी बोलकर आगे बढ़ जाता है और सच को हर पग पर स्वयं को साबित करना पड़ता है। झूठ स्वयंसिद्ध की तरह व्यवहार कर रहा है और सच प्रश्नों में खुद को उलझा हुआ पाता है। प्रश्न उल्टी दिशा में यात्रा कर रहे हैं और इसके कारण सच को बेध रहे हैं। वर्णिका कुंडु प्रकरण में भी प्रश्नों की इस उल्टी दिशा ने लोगों के मन में कई सवाल खडे़ कर दिए हैं। वर्णिका कुंडु ने जब राजनीतिक रसूख रखने वाले विकास बराला पर गलत मंशा के साथ पीछा करने का आरोप लगाया, तो इसके तुरंत बाद सोशल मीडिया में कुछ चित्रों के जरिए उनके चरित्र पर ही लांछन लगाने की कोशिश की गई। मसलन इतनी रात को उन्हें बाहर घूमने की क्या जरूरत थी। मंशा बहुत साफ  थी कि चरित्रहरण कर आरोपों की गंभीरता को कम किया जाए। हालांकि वर्णिका ने खुद ही इन तस्वीरों का सच बताकर चरित्र पर प्रश्न उठाने वाले मंसूबों को धराशायी कर दिया। वर्णिका के अनुसार जो तस्वीर सोशल मीडिया पर घूम रही है, वह काफी पुरानी है। उसमें जो दो लड़के हैं, उनमें विकास बराला नहीं है, बल्कि मेरे बेहद पुराने दोस्त हैं और वह विकास बराला को जानती-पहचानती नहीं है। रात में बाहर निकलने के प्रश्न का भी वर्णिका ने साफगोई से उत्तर दिया। वर्णिका ने कहा कि मैं एक आईएएस की बेटी हूं, फिर भी मेहनत करती हूं। मैं कैफे में डीजे हूं और उस रात को काम से ही लौट रही थी। मेरे घर वालों को पता था कि मैं कहां हूं। वर्णिका ने बिना मुंह ढके मीडिया के सामने आने पर उठ रहे प्रश्नों का भी जवाब दिया। वर्णिका के मुताबिक मीडिया ने मुझे मुंह ढक कर बयान देने के लिए कहा, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि मैंने कुछ गलत नहीं किया। मेहनत करके खाना कोई गलत बात नहीं। चेहरा तो उन्हें (आरोपियों को) छिपाना चाहिए, जिन्होंने यह हरकत की है और उन्हें चेहरा छिपाना भी पड़ा। सबसे बड़ी बात यह कि वर्णिका और उनके पिता ने अपने संघर्ष को अभी तक राजनीतिक नहीं बनाया। विकास बराला की हिरासत के बाद उनके पिता ने कहा कि वह पुलिस जांच में दखलअंदाजी नहीं करना चाहते। मुझे विश्वास है कि पुलिस अपना काम सही तरीके से कर रही है और मुझे इनसाफ  मिलेगा। गिरफ्तारी से यह बात साफ  हो गई है कि सिस्टम ठीक तरीके से चल रहा है। हालांकि आईएएस पिता ने कहा कि शुरुआती दौर में इस मामले में कुछ कोताही जरूर हुई, लेकिन वह कुछ लेगों के कारण हुई, सिस्टम की वजह से नहीं। इसी तरह वर्णिका ने भी पुलिस की कार्रवाई पर अब संतोष जताया है। वर्णिका और उनके पिता का यह दृष्टिकोण एकदम नया है। प्रश्न उठाने वालों को उन्होंने सच का आईना भी दिखाया और किसी के हाथों का खिलौना भी नहीं बने। फिर भी यह प्रश्न अपनी जगह बना हुआ है कि पीडि़त से प्रश्न पूछने की मानसिकता क्या अमानवीय नहीं है और क्या इसके कारण अन्याय का मनोबल नहीं बढ़ता। सच को कठघरे में घेरने वाली प्रश्नों की इस उल्टी दिशा को सही करना समय की सबसे बड़ी जरूरत है। वर्णिका प्रकरण से इसकी शुरुआत होती हुई दिखती है।

— डा. जयप्रकाश सिंह

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