हां… मैं गोरखा हूं

By: Aug 28th, 2017 12:05 am

बेमिसाल वीरता के लिए विख्यात हिमाचल का गोरखा समुदाय किसी परिचय का मोहताज नहीं है। सरहदों की सुरक्षा से आगे बढ़कर यह समुदाय अब जीवन के हर क्षेत्र में निरंतर नई मंजिलें तय कर रहा है। हिमाचल के गोरखा शौर्य का सफर बयां कर रहे हैं, पवन कुमार शर्मा व नरेन कुमार…

हिमाचल में 60 हजार आबादी

नेपाली भाषा बोलते हुए भी  नागरिकों की सुरक्षा और हर कदम पर साथ चलने के लिए गोरखा आज भी सरहदों सहित देश के साथ हर कदम पर खड़े हैं। उत्तर-पश्चिम से उप हिमालयन बैल्ट के साथ स्वदेशी पूर्व भारत में आज लगभग एक करोड़ 50 लाख भारतीय गोरखा हैं। इसी के साथ  हिमाचल प्रदेश में  गोरखाओं की जनसंख्या 60 हजार से भी अधिक है। गोरखा जनसंख्या का अधिक घनत्व हिमाचल प्रदेश, जम्मू, उत्तराखंड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, दार्जिलिंग हिल्स, असम, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश में है। अब आगामी पीढ़ी एनसीआर दिल्ली, गुरुग्राम , नोएडा, बिहार, रांची, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़ और मुंबई में भी बस्तियां बना रही है।   गोरखा संस्कृति को अब तक सही प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। वहीं, पश्चिम बंगाल में लगभग 15 लाख गोरखाओं की आबादी है, लेकिन गोरखाली साहित्य, संस्कृति को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। बंगाल में कला जहां साहित्य अकादमी मान्यता प्राप्त है, वहां लेखकों और नेपाली भाषा के संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त है। सीमित अवसर पूरे गोरखा अल्पसंख्यक के पास हैं।  जनजातीय गोरखा समुदाय में कई आदिवासी परिवार शामिल हैं, जो अब भी अज्ञात हैं, जिसमें भुजल, गुरंग, मगर, नेवार, जोगी, खास, राय, सुन्नवार, थमी, यखा और धीमल भारतीय गोरखा शामिल हैं। गोरखा एक जाति नहीं है, स्वदेशी मूल होने के नाते ये विभिन्न गोरखा जनजातियों के आदिवासियों का मिश्रण है।

यहां-यहां है समुदाय

प्रदेश में कई जिलों में गोरखा समुदाय पाया जाता है।  जिला कांगड़ा के धर्मशाला, पालमपुर, डमटाल, कंदरोड़ी, जिला चंबा के बकलोह तथा शिमला, नाहन, कुल्लू-मनाली, सोलन, सुबाथू सहित प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में गोरखा निवास करते हैं।

गोरखा समुदाय के अनमोल हीरे

गोरखा समुदाय ने देश की सेवा में लगभग सभी स्तरों पर अपनी सेवाएं दी हैं और वर्तमान में भी दे रहे हैं। राष्ट्र सेवा में अहम योगदान देने में समुदाय के अनेक हीरो हैं, इसमें से कुछ अहम हीरे हैं।, जिनमें परमवीर चक्र विजेता धन सिंह थापा, कैप्टन राम सिंह ठाकुर और मास्टर मित्र सेन थापा ने समुदाय का नाम ऊंचा किया है। इसके साथ ही महावीर चक्र विजेता जंग बहादुर थापा, शौर्य चक्र विजेता स्वर्गीय मेजर आभिज्य थापा, नायब सूबेदार राजन बुराथोकी और हाल ही में वीरगति को प्राप्त हुए मेजर शिखर थापा, अंकित प्रधान सहित सैकड़ों गोरखा समुदाय के लोग गोरखा रायफल्स में देश की सेवा में डटे हुए हैं।

शहीद दुर्गामल्ल-दल बहादुर स्मृति वाटिका

शहीद दुर्गामल्ल-दल बहादुर स्मृति वाटिका दाड़ी का शहीदों के सम्मान के लिए निर्माण किया गया है। स्मृति वाटिका द्वारा शहीद दुर्गामल्ल-दल बहादुर गोल्ड चैंपियनशिप पिछले 30 वर्षों से लगातार आयोजित की जा रही है।  इसके अलावा दाड़ी में गोरखा संग्रहालय का निर्माण भी करवाया जा रहा है।

मित्रसेन थापा के नाम पर डाक टिकट

गोरखाली साहित्यिक अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त साहित्यिक मास्टर मित्र सेन थापा भारत के एकमात्र हिमाचली है, जिन्हें भारत और नेपाल द्वारा डाक टिकट के साथ सम्मानित किया गया। कला और साहित्य में योगदान के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कोई सम्मान नहीं दिया गया। ऐसे महान लोग भी हिमाचल के लिए अब तक अज्ञात ही बने हुए हैं। धर्मशाला में पीजी कालेज धर्मशाला के सांस्कृतिक सभागार का नाम देने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है, लेकिन अब तक मास्टर मित्र सेन थापा का नाम नहीं लिखा गया है।

रियासतों पर गोरखा का अधिकार

हिमाचल प्रदेश में गोरखा शासकों ने सिरमौर, कोटा, रामगढ़, लाहरपुर, मौरनी, पिंजौर, जगतगढ़, बुशहर, जुब्बल विलसन, थरोच, घुंड, कोटखाई, ठियोग, कोटगढ़, हंडूर, नालागढ़, सोलन, डगशाई, सुबाथू सहित अन्य क्षेत्रों में रियासतों पर पर अपना अधिकार कर लिया। गोरखाओं ने इस दौरान विभिन्न किलों का निर्माण भी किया। इसमें गोरखा फोर्ट मलौन, गोरखा धार माउंटेन फोर्ट, गोरखा फोर्ट बनासार, गोरखा फोर्ट सुबाथू और गोरखा फोर्ट जैतक का निर्माण करवाया।

गोरखा बहादुरी की लौ जलातीं ज्योति मणि थापा

पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला की ज्योति मणि थापा ने पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 22 वर्षों को चूमते हुए गोरखा बहादुरी की पूरे विश्व में लौ जलाई है। ज्योति मनी थापा ने 10 वर्षों के लगातार शोध पर आधारित पुस्तक द खुखरी ब्रेव्स लिखी है।  इससे पहले भी गोरखा समुदाय की बहादुरी और संस्कृति से रू-ब-रू करवाने के लिए कई शोध पत्र लिखे हैं, और विभिन्न मंचों पर जमा करवाए हैं।

आजादी के लिए चढ़े फांसी 

गोरखाओं के वीर जवानों ने भारत की स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की बाजी लगाकर आजाद देश के सपने को साकार करने में अहम योगदान दिया। 2/1 जीआर के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी में मेजर दुर्गा मल्ल और कैप्टन दल बहादुर थापा जिन्हें पकड़ कर दिल्ली में फांसी परें लटका दिया गया। बैंड मास्टर आईएनए कैप्टन राम सिंह ठाकुर स्वतंत्रता सैनानी हैं, जो देशभक्ति को अपने संगीत के साथ महान ऊंचाइयों पर ले गए। इसके साथ ही अन्य बहादुर गोरखा स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिन्होंने युद्ध क्षेत्र में शहादत पाई है।

-शहीद भीम सिंह राणा -धर्मशाला

-शहीद मान बहादुर थापा-धर्मशाला

-शहीद मोहन सिंह थापा -धर्मशाला

-शहीद गोपाल सिंह शाही-धर्मशाला

 

डांडी मार्च में सहयोग

डांडी मार्च में महात्मा गांधी के साथ कई गोरखाओं ने भाग लिया। इनमें दलबहादुर गिरि, महादेवी गिरि, दार्जिलिंग हिल्स धनपत सिंह, शेर बहादुर, होशियार सिंह, दरबा सिंह थापा, खारगा बहादुर आदि के नाम मुख्य रूप से शामिल हुए।

अदम्य साहस के बल पर पाए वीर-अशोक चक्र

गोरखा रायफल्स के मेजर धन सिंह थापा परम वीर चक्र 1962 चीन-भारत युद्ध, कंसजोग छेत्री अशोक चक्र, बहादुर थापा को अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। गोरखा समुदाय को अब तक तीन परम वीर चक्र, 33 महावीर चक्र, 84 के साथ आपरेशन के दौरान वीर चक्र, पांच अशोक चक्र, 33 केआई ऑप्स में कीर्ति चक्र भारतीय गोरखा रेजिमेंट को मिले हैं।

पहली गोरखा रायफल्स बटालियन का केंद्र धर्मशाला

1942 में द्वितीय विश्व युद्ध और भारत में स्वतंत्रता आंदोलन एक साथ चले। इस दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय सेना आजाद हिंद फौज के लिए आवाज बुलंद की, जिसके चलते पहली गोरखा रायफल्स बटालियन का गठन किया गया, जिसका केंद्र धर्मशाला में बनाया गया।  इस गोरखा रायफल्स ने मलेशियाई जंगल में  अपने अद्भुत साहस का जौहर दिखाया और सिंगापुर में आजाद हिंद फौज के साथ शामिल हुई।

वीर नारियों ने धर्मशाला में बिताया जीवन

ब्रिटिश इंपीरियल आर्मी के साथ मणिपुर, नागालैंड और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में युद्ध के दौरान कई सैनिकों ने अपनी जान गंवाई। अंग्रेजों के विरुद्ध होने पर कई गोरखा सैनिकों को पकड़ा गया तथा इसमें मेजर दुर्गामल और कैप्टन दल बहादुर थापा को गिरफ्तार कर अंग्रेजों  ने अदालत में पेश किया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। इन सैनिकों की जवान विधवाआें ने बिना पेंशन के धर्मशाला में अपना जीवन व्यतीत किया।

राजनीति में आना होगा

गोरखा समुदाय के युवा निदिश ठाकुर का कहना है कि गोरखाओं की प्रसिद्ध सांस्कृतिक विरासत रही है, लेकिन आज के समय में अब उनके कई मुद्दे अनसुलझे हैं। उन्होंने कहा कि समुदाय को सुधार के लिए राजनीति में भी आगे आना होगा।

आर्थिक उत्थान की दरकार

गोरखा युवा संगठन के अध्यक्ष रोहित थापा ने कहा कि आजादी से पहले और बाद में गोरखाओं ने देश की रक्षा की है। आज भी अधिक संख्या में सीमाओं में देश की रक्षा कर रहे हैं। इसके साथ ही अब आर्थिक उत्थान के लिए भी समुदाय को कार्य करना होगा।

मेहमानों जैसा बर्ताव दुख देता है..

गोरखा स्टूडेंट एसोसिएशन की सदस्य मेघा का  कहना है कि भारत के होने पर भी कई बार मेहमानों जैसा बर्ताव किया जाता है। भारतीय संस्कृति के साथ मिलकर गोरखाओं की एक सांस्कृतिक विरासत है, उसे बचाने और एक-दूसरे की संस्कृति को सहेजने के प्रयास करने चाहिएं। उन्होंने कहा कि अब समस्याओं और मुद्दों को दूर किए जाने के लिए विस चुनावों में अपना प्रत्याशी उतारने को अग्रसर हैं।

कई मुद्दे नजरअंदाज

स्टूडेंट एसोसिएशन धर्मशाला की सचिव अनिका थापा का कहना है कि गोरखा समुदाय को देश सेवा करने का मौका मिल रहा है। देश की सुरक्षा के लिए कइयों ने शहादत दी है। उन्होंने कहा कि अब युवाओं और समुदाय के कई मुद्दों को नजरअंदाज किया जा रहा है।

पिछड़ रहा समुदाय

गोरखा समुदाय के युवा गौरव महंत का कहना है कि समुदाय अब आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ नजर आ रहा है। हम नौकरियों सहित अन्य क्षेत्रों में सही स्थान न मिल पाने के कारण पिछड़ते हुए नजर आ रहे हैं। आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाने के लिए गोरखाओं के लिए विशेष कार्य नहीं हो पाया है।

मंदिरों के निर्माण में योगदान

सौ साल पहले भागसूनाग मंदिर, कचहरी हनुमान मंदिर, जयंती माता मंदिर का निर्माण  में भी गोरखा ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पहले चंबा के बकलोह में 4 जीआर ट्रेनिंग सेंटर चलाया जाता था। इसके साथ ही धर्मशाला में पहला गोरखा ट्रेनिंग सेंटर शुरू किया गया था, जिसे अब 14 जीटीसी गोरखा ट्रेनिंग सेंटर सुबाथू (सोलन) में चलाया जा रहा है।

कांगड़ा रियासत के विजेता गोरखा

1805 से 1809 तक गोरखा रियासतों ने कांगड़ा किला को जीतकर अपने नाम किया। अमर सिंह थापा ने कांगड़ा रियासत में अपना शासन स्थापित किया। जिसके बाद राजा संसार चंद ने रणजीत सिंह की मदद से फिर गोरखाओं पर आक्रमण किया, लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। जिसके बाद स्थानीय शासकों ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर गोरखाओं पर आक्रमण करके हराया। इसके बाद वर्ष 1816 में विशेष संधि की गई। जिसके तहत गोरखाओं द्वारा जीते गए क्षेत्रों को अंग्रेजों को दे दिया गया।

राजनीति में सीधी पकड़ नहीं 

हिमाचल में गोरखा समुदाय का राजनीतिक शून्यकरण ही देखने को अब तक मिला है। राज्य की राजनीति या नीतियों में गोरखा और उनकी समस्याओं के निपटान बिखरे हुए से रहे हैं। गोरखा समुदाय एक प्रभावशाली वोट बैंक हैं, लेकिन सक्रिय रूप से कभी भी राजनीति में शामिल नहीं हुआ है। वर्तमान में गोरखाओं के लिए संरक्षक या प्रशासनिक सहायता प्रदान नहीं की गई है। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग में गोरखा समुदाय को कोई ऐसी राहत प्रदान नहीं की गई है, जो कि उन्हें शिक्षा और करियर के अवसरों में मदद कर सके। राजनीति के मंच तक गोरखाओं की पहुंच न होने से समुदाय के कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे दबते हुए नजर आते हैं, जिन्हे लेकर समुदाय के लोगों में भी  आक्रोश देखने को मिलता है।

गोरखा विकास परिषद उतारेगी प्रत्याशी

हिमाचल गोरखा विकास परिषद द्वारा गोरखा समुदाय के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को लेकर कार्य किया जा रहा है। हिमाचल गोरखा विकास परिषद द्वारा हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में इस बार गोरखा समुदाय से अपना प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है। समुदाय ने हिमाचल एवं पंजाब गोरखा एसोसिएशन के अध्यक्ष रविंद्र सिंह राणा को धर्मशाला से विधायक के रूप में चुनाव में उतारने की बात कही है। इतना ही नहीं समुदाय एवं विकास परिषद द्वारा अपना जन अभियान भी शुरू कर दिया गया है। इसके अलावा नगर निगम धर्मशाला में पार्षद सुनील खनका की भी चुनाव में जीत परिषद करवा चुकी है।

कैप्टन राम सिंह के नाम से हो सीयू का नामकरण

हिमाचल एवं पंजाब गोरखा एसोसिएशन के अध्यक्ष रविंद्र सिंह राणा का कहना है कि अब तक चुनावों में प्रतिनिधित्व न मिल पाने के कारण समुदाय के कई मुद्दे उठाए नहीं गए हैं। ऐसे में समुदाय ने अब अपना प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय विवि धर्मशाला का नामकरण कैप्टन राम सिंह ठाकुर के नाम से किया जाए। साथ ही गोरखा समुदाय ने समुदाय के महान लोगों को भारत रत्न, पदम विभूषण सहित पदमश्री अवार्ड देने की मांग की है।

तपिश थापा बने फुटबाल कमिश्नर

प्रदेश के धर्मशाला के दाड़ी के तपिश थापा एक मात्र ऐसे फुटबाल खिलाड़ी हैं, जिनका चयन अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन में फुटबाल मैच कमिश्नर के रूप में किया गया है।  तपिश थापा अध्यापक होने के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश फुटबाल संघ से भी जुडे हैं। अभी हाल ही में तपिश थापा ने ऑल इंडिया स्तर की मैच कमिश्नर की परीक्षा पास कर खिताब अपने नाम किया है। अब तपिश राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फुटबाल मैच करवाने का कार्य करेंगे।

राजनीति में चमकीं सविता कार्की

गोरखा समुदाय से संबंध रखने वाली सविता कार्की  ने अपनी अलग पहचान बनाई है। सविता कार्की गोरखा समुदाय में राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब रही हैं। सविता कार्की पिछले 15 सालों ग्राम पंचायत दाड़ी के प्रधान पद पर लगातार बनी रही। इसके अलावा अब सविता कार्की ने प्रदेश के दूसरे नगर निगम में दाड़ी वार्ड से पार्षद का चुनाव भी जीतकर गोरखा समुदाय को राजनीतिक पहचान दिलाने का सरानीय कार्य किया है।

शिक्षा के क्षेत्र में गोरखा

अधिकांश गोरखा समुदाय एक साक्षर के रूप में पहचाना और जाना जाता है, लेकिन स्कूल ड्रॉप-आउट दर भी कहीं अधिक मात्रा में देखने को मिलती है। सबसे ज्यादा युवा स्कूलों और कालेजों को बीच में ही छोड़ देते हैं। युवाओं की विभिन्न सुरक्षा बलों में शामिल होने या विदेशों में काम खोजने के लिए उच्च शिक्षा अधूरी है। इसके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर और पिछड़े गोरखा समुदाय के लोगों के बच्चे मुश्किल से ही स्कूल में पहुंच पाते हैं।

कैप्टन राम सिंह मेमोरियल समिति

कैप्टन राम सिंह मेमोरियल समिति द्वारा भी हर वर्ष खनियारा में फुटबाल प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इसके अलावा समिति द्वारा गोरखा समुदाय की संस्कृति और इतिहास को आगे बढ़ाने का भी प्रयास किया जा रहा है।

बकलोह के बीएस थापा ने जीता अर्जुन अवार्ड

हिमाचल प्रदेश के चंबा के बकलोह क्षेत्र से संबंध रखने वाले बॉक्सर बीएस थापा ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना दमखम दिखाया है। इसके चलते बीएस थापा अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया है।

हिमाचल एवं पंजाब गोरखा एसोसिएशन धर्मशाला

हिमाचल एवं पंजाब गोरखा एसोसिएशन धर्मशाला की स्थापना 29 अक्तूबर, 1916 में कैप्टन मोधो सिंह राणा ने की थी। इसके बाद से वर्ष 2017 अब तक हिमाचल एवं पंजाब गोरखा एसोसिएशन लगातार समुदाय के मुद्दों और समस्याओं को लेकर मिलकर कार्य कर रही है। मौजूदा समय में पहली बार वर्ष 2017 में रविंद्र सिंह राणा गैर-सैन्य व्यक्तित्त्व आम व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया गया है। रविंद्र सिंह राणा समुदाय की समस्याओं और मुद्दों को लेकर कार्य कर रहे हैं। गोरखा एसोसिएशन में छह हज़ार से अधिक सदस्यों को शामिल किया गया है, जबकि इसके साथ 18 गांवों को मुख्य रूप से जोड़ा गया है।

संघ-परिषद से दिखाई सक्रियता

गोरखा समुदाय ने विभिन्न संघों एवं परिषदों से अपनी सक्रियता लगातार दर्ज करवाई है। हिमाचल गोरखा विकास परिषद धर्मशाला राजनीतिक गतिविधियों को लेकर कार्य करते हैं। परिषद नगर निगम धर्मशाला में भी अपने प्रत्याशी उतार चुकी है। इसके साथ ही अब हिमाचल प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में पूरे जोर-शोर से उतरने का ऐलान कर दिया है।

शहीदों की याद में बड़े खेल आयोजन

गोरखा समुदाय शहीदों की शहादत पर खिलाडि़यों को प्रेरित करने के लिए बड़े आयोजन करवा रहा है। इसमें शहीद दुर्गामल्ल-दल बहादुर फुटबाल गोल्ड चैंपियनशिप, कैप्टन राम सिंह ठाकुर मेमोरियल चैंपियनशिप खनियारा धर्मशाला में करवाई जा रही है।

राष्ट्रगान में कै. राम सिंह की धुन

15 अगस्त 1947 को लाल किले में झंडे का उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया। समारोह में कांगड़ा के खनियारा के गोरखाली आईएनए कैप्टन राम सिंह ठाकुर की तैयार धुनों से आर्केस्ट्रा बजाया गया। इसी धुन पर राष्ट्रगान गाया गया था। वर्ष 19506में जन-गण-मन को भारत के राष्ट्रगान के रूप में तय किया गया।  वही, गोरखा समुदाय का इतिहास युद्धों और बलिदानों से भरा हुआ है। इसमें सूबेदार निरंजन छेत्री, राजकुमार टिकंद्रा जीत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाइयां लड़ी, जिसमें उन्हें आठ जून 1891 को इंद्रेनी थापा, सावित्री थापा, दुर्गा मल्ल पहले गोरखा आईएनए सिपाही, जो फांसी पर लटका दिए गए।  वहीं, चोबलाल उपाध्याय, कैप्टन राम सिंह ठाकुर भारत के संगीतकार (राष्ट्रगान जन गण मन) और कई अन्य देशभक्ति गीतों में कदम-कदम बढ़ाए के रचयिता, कंदमबर गुरंग राजनीतिज्ञ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता, बहादुर गुरुंग सहित हजारों गोरखा आजाद हिंद फौज में शामिल हुए।

गोरखा रेजिमेंट हर दम आगे

चीन-भारत युद्ध 1962 हजारों गोरखाओं ने सीमाओं की रखवाली की। इनकी शक्ति और हिम्मत से पाकिस्तान के साथ अलग-अलग युद्धमें गोरखा रेजिमेंट प्रत्येक संघर्ष में भारत के लिए रक्षा की पहली पंक्ति में रही। 1947, 1965, 1971 और कारगिल (1999) में गोरखा रेजिमेंट्स ने लिबरेशन ऑफ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिमालय के रहने वाले गोरखा प्राकृतिक रूप से खड़ी पहाड़ी पर चढ़ाई चढ़ने में विशेष रूप से विशिष्ट हैं, वह उच्च पहाड़ी के दुश्मन को उलझाने में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। हिमालय कश्मीर के ऊंचाई और विश्वासघाती इलाकों लद्दाख, लेह, सियाचिन में अहम भूमिका  निभाते हैं।

विश्व युद्धों में दो लाख ने दिखाया दम

विश्व युद्ध में ब्रिटिश भारत सरकार के प्रतिनिधित्व में गोरखा और सिख प्रमुख बल रहे। उन्होंने दोनों विश्व युद्धों में भाग लिया। यहां तक यूरोप, मेसोपोटामिया, एशिया और अफ्रीकी देशों के युद्ध के दौरान दो लाख से अधिक गोरखाओं ने भाग लिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 20 हजार से अधिक मारे गए।

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