टांडा सिर्फ नाम का ही मेडिकल कालेज

21 साल में एडमिनिस्ट्रेटिव आफिसर ही नहीं मिला, टीएमसी को अभी तक नहीं मिला पूरा मिनिस्ट्रियल स्टाफ

टीएमसी— कहने को तो डा. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कालेज टांडा प्रदेश का दूसरा बड़ा मेडिकल कालेज है, लेकिन शुरू से ही जिस तरह इस मेडिकल कालेज की अनदेखी हुई है, उसे देखकर तो लगता है कि सिर्फ कुछ नेताओं ने राजनीति चमकाने के लिए ही इस मेडिकल कालेज की स्थापना करवाई है। जनता को लुभाने के लिए उन्होंने इसे मेडिकल कालेज का दर्जा तो दिला दिया, लेकिन सुविधाएं देती बार मुंह फेर लिया। टांडा मेडिकल कालेज में डाक्टरों की कमी से हर कोई वाकिफ है, लेकिन कालेज को चलाने वाले मिनिस्ट्रियल स्टाफ की भी यहां भारी कमी है। चौंकाने वाली बात सामने आई है कि अक्तूबर 1996 में शुरू किए गए इस मेडिकल कालेज में आज तक एडमिस्ट्रेटिव और मेडिकल रिकार्ड आफिसर का पद ही नहीं भरा गया। प्रदेश में खोले गए चार मेडिकल कालेजों में यह पद साथ के साथ भरे गए। यही नहीं, इस कालेज के लिए जो तीन पीए की पोस्ट सेंक्शन थीं, उनमें से एक भी पोस्ट नहीं भरी गई। वर्तमान में जो प्रिंसीपल, एमएस और एडी के पीए का काम देख रहे हैं, वे क्लर्क हैं। यहां सीनियर स्केल स्टेनोग्राफर भी नहीं हैं। यही नहीं, आईजीएमसी में जहां 11 कम्प्यूटर आपरेटर हैं, वहीं टीएमसी में एक भी कम्प्यूटर आपरेटर नहीं है। बताते हैं कि टीएमसी में मौजूदा समय में कार्यरत 45 विभागों को मात्र छह क्लर्क देख रहे हैं। इस मेडिकल कालेज के लिए मिनिस्ट्रियल स्टाफ की जो 64 पोस्टें स्वीकृत की गई थीं, उनमें से मौजूदा समय में 29 ही भरी गई हैं। 35 पोस्टें अभी भी खाली चल रही हैं। बात अगर आईजीएमसी शिमला की करें, तो यहां भी वही काम है, लेकिन उसे करने वाले 147 लोग हैं। वहीं अमित करोल अध्यक्ष मिनिस्ट्रियल स्टाफ एसोसिएशन टांडा ने बताया कि हमने कई बार इस मुद्दे को उठाया। आरकेएस की मीटिंग में भी मंत्री के सामने मामले को रखा गया था। जो लोग रिटायर्ड हुए, उनकी जगह दूसरा स्टाफ नहीं आ सका। उधर, एडिशनल डायरेक्टर टीएमसी मधु चौधरी ने बताया कि सेक्रेटरी हैल्थ के समक्ष यह मुद्दा उठाया गया था। डीएचएस में अभी रिक्रूटमेंट हुई हैं, वहां से मेडिकल संस्थानों में क्लास थ्री और फोर की कुछ पोस्टें भरी जाएंगी। जूनियर असिस्टेंट (आईटी) की 15 पोस्टें जो टांडा के लिए स्वीकृत हुई हैं। इनके रिजल्ट सितंबर के दूसरे सप्ताह तक घोषित कर दिए जाएंगे।

यह है एमसीआई की गाइडलाइन

एमसीआई (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) की गाइडलाइन बताती है कि किसी भी मेडिकल कालेज को चलाने के लिए कम से कम 84 लोगों को स्टाफ होना जरूरी है। एमसीआई मेडिकल कालेज में 26 रिकार्ड क्लर्क होना जरूरी मानती है, लेकिन जान कर हैरत होगी कि टांडा में एक भी रिकार्ड क्लर्क नहीं है। इसी तरह जूनियर असिस्टेंट, क्लर्क जहां 31 होने चाहिएं, वहां टीएमसी में मात्र आठ से यह काम चलाया जा रहा है।

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