हां… मैं किन्नौरी हूं

By: Sep 11th, 2017 12:05 am

84121

जनसंख्या

6401

क्षेत्रफल वर्ग किमी

234

गांव

80 %

साक्षरता दर

प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज किन्नौर घाटी के मेहनतकश लोगों ने बागबानी के दम पर आर्थिकी सुधारी है। इसके अलावा हिमाचल के विकास में भी किन्नौरियों का अहम योगदान है। किन्नौरियों के उद्गम से अब तक के सफर को बता रहे हैं मोहिंद्र नेगी…

किन्नौर शब्द की उत्पति कनौर या कुनावर से हुई है। यहां आने वाले अनेक अंग्रेज यात्रियों ने भी इसे कनावर, कनौर या फिर कुनावर कहा है। स्थानीय लोग इसे कनौरिंड या किन्नौर कहते हैं। वास्तव में किन्नौर का नामकरण उस क्षेत्र के मुख्य जाति-समुदाय के आधार पर हुआ है, जो महाभारत कालीन किन्नरों के वंशज माने जाते हैं। पौराणिक व्याख्यानों के अनुसार वनवास के दौरान पांडवों ने यहां कई वर्ष बिताए। आज भी यहां इसके कई प्रमाण किन्नौर में मिलते हैं। किन्नौर के पौराणिक गीतों व कहानियों में महाभारत काल के दौरान पांडवों के किन्नौर में अज्ञातवास बिताने के कई वर्णन व प्रमाण आज भी मिलते हैं। विद्वान राहुल सांस्कृत्यान के अनुसार कनौरिंड को किन्नर देश कहा है। इसका अनुसरण अन्य विद्वानों ने भी अपने उल्लेखों में किया है।

1960 में मिला जिला का दर्जा

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर को वर्ष 1956 में जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया गया। पहली मई,1960 को किन्नौर का जिला के रूप में गठन किया गया। विस्मयकारी सौंदर्य से सजा किन्नौर जिला हिमाचल प्रदेश का जनजातीय तथा पर्वतीय क्षेत्र है। पहली मई, 1960 को यह जिला अस्तित्व में आने से पूर्व महासू जिला का एक भाग हुआ करता था। उससे पूर्व यह रामपुर बुशहर रियासत की एक तहसील हुआ करता था, जिसे चिन्नी के नाम से जाना जाता था।

तीन भागों में बंटा जिला

भौगोलिक दृष्टि से जिला किन्नौर को तीन भागों में बांटा जा सकता है। जिसमें अपर किन्नौर, मध्यम किन्नौर और लोअर किन्नौर शामिल हैं।

देश के पहले मतदाता श्याम शरण नेगी

देश में आम चुनावों में पहला मतदाता होने का गौरव भी किन्नौर के श्याम शरण नेगी को प्राप्त है। देश में फरवरी 1952 को पहले आम चुनावों की घोषणा हुई थी। फरवरी महीने में किन्नौर जैसे स्नो बाउंड क्षेत्र में चुनाव करवाना संभव नहीं था, लिहाजा मौसम को देखते हुए चुनाव आयोग ने फैसला लिया था कि किन्नौर में मतदान 1951 के आखिरी महीनों में करवाया जाए। श्री नेगी बताते हैं कि किन्नौर में जब 1951 में मतदान करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी तब वह शिक्षा विभाग में बतौर अध्यापक मूरंग सरकारी स्कूल में कार्यरत थे । चुनाव आयोग ने मेरी ड्यूटी शौंगठोंग पोलिंग स्टेशन में लगाई थी। मतदान वाले दिन शौंगठोंग में ड्यूटी पर पहुंचने की जल्दबाजी तथा मतदान करने की रुचि के चलते मैं प्रातः कल्पा पोलिंग में जा कर अपना मतदान कर शौंगठोंग के लिए निकल पड़ा। उस समय मुझे यह मालूम नहीं था कि मैं देश का पहला मतदाता बनने जा रहा हूं। वह आज भी हर चुनाव में मतदान जरूर करते हैं। श्री नेगी बताते है कि शिक्षा विभाग में नौकरी करने से पूर्व वह जंगलात विभाग में तैनात थे। उस समय जंगलात विभाग एक अहम विभाग माना जाता था।

चीन से अलग करता है शिपकिला दर्रा

इस जिला के पूर्व में तिब्बत,दक्षिण में उत्तर प्रदेश का उत्तरकाशी तथा  रोहडू क्षेत्र, दक्षिण-पश्चिम में कूल्लू तथा लाहुल-स्पीति क्षेत्र स्थित है। इन पर्वत शृंखलाओं में समुद्रतल से 1500 मीटर से लेकर 3570 मीटर तक के ऊंचाई पर गांव बसे हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा से  सटे होने के कारण किन्नौर का पूर्वी भाग सुरक्षा की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण है। इस ओर नमज्ञा गांव से ऊपर शिपकिला दर्रा ऐतिहासिक व महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि यह दर्रा भारत व चीन को विभाजित करता है। इसी मार्ग द्वारा ही भारत-चीन के बीच व्यापार होता है। पूर्व में जब तिब्बत स्वतंत्र देश हुआ करता था,उस समय यहां के कई लोग इसी मार्ग से मानसरोवर की यात्रा किया करते थे। किन्नौर जिला में विश्व की दो प्रमुख पर्वत शृंखलाएं हैं, जिनमें ग्रेट हिमालयन पर्वत शृंखला तथा जास्कर पर्वत शृंखला मुख्य है।

पहले चिन्नी से चलती थी व्यवस्था

वर्ष 1960 से पूर्व किन्नौर बुशहर रियासत के अधीन हुआ करता था, जिसकी प्रशासनिक यूनिट चिन्नी (वर्तमान में कल्पा) हुआ करती थी।  पहले यहां की सामाजिक व प्रशासनिक व्यवस्था स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार चलती थी, जिसमें स्थानीय देवी-देवताआें व लामाआें की मुख्य भूमिका हुआ करती थी।

भाईचारा हमारी पहचान है

किन्नौरी समुदाय के लोगों की एक बड़ी विशेषता यह है कि यहां के रिच कल्चर के कारण  ही यहां लोगों में एकजुटता व आपसी भाईचारा काफी अधिक देखने को मिलता है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी साल में एक बार सामूहिक रूप से बैठकों का आयोजन जरूर करते हैं

प्रताप नेगी, अधिवक्ता

सामाजिक कार्यक्रमों में युवाआें की उपस्थिति काफी अधिक रहती है।  इससे पता चलता है कि यहां के लोगों में आपसी भाईचारा काफी अधिक है

— डा. दिनेश नेगी

कई युवा तो ऐसे भी हैं जो अपने आपको जनजातीय कहने में शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं, जबकि यही जनजातीय दर्जा हमारी पहचान है

— अजेंद्र नेगी , पूर्व प्रधान, मूरंग पंचायत

कई  युवा यहां के कल्चर से काफी दूर हैं। इसके लिए उन मां-बाप को दोष देना सही होगा, जिन्होंने अपने बच्चों को  कल्चर से दूर रखा है। आज ऐसे कई युवा  हैं, जो स्थानीय बोली तक नहीं बोल पाते हैं। ऐसे युवाआें को अपना कल्चर अपनाना चाहिए

— यशवंत नेगी, उपाध्यक्ष,एसटी मोर्चा

हेरिटेज विलेज कल्पा में काष्ठकला का बेजोड़ नमूना

कई शताब्दी पूर्व अस्तित्व में आए कल्पा गांव में देवालयों व भवनों की काष्ठकला अब भी बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इसी लिए प्रदेश सरकार ने इस गांव को हेरिटेज विलेज का दर्जा दिया है।  इस गांव के बीचोंबीच बौद्ध मंदिर लोचा लागंग बौद्ध बिहार है, जिसे 9वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म गुरु लोचा रिंपोछे  द्वारा निर्मित किया गया था। बौद्ध धर्म ग्रंथों के अनुसार बौद्ध धर्म गुरु लोचा रिंपोछे ने किन्नौर, लाहुल-स्पीति तथा लद्दाख क्षेत्र में 108 बौद्ध विहारों का निर्माण किया था, जिन्हे लोचा लागंग के नाम से जाना जाता है। उन बौद्ध विहारों में से यह पहला बौद्ध विहार है। कल्पा में यह बौद्ध विहार करीब 5-6 दशक पूर्व पूरी तरह जल गया था,लेकिन उसी स्थान पर उसी शैली में नए विहार का निर्माण किया गया।  इसी प्रकार गांव के बीचोंबीच कई  देव मंदिर है, जिस की काष्ठ कला अत्यंत दुर्लभ है ,जो ऐतिहासिक महत्त्व को बयां करती है। इसे ग्रामीणों ने अब तक संजोए रखा है।

कंकरीट में बदल गए घर

जिला किन्नौर के  हर गांव में देवी-देवता होने के साथ-साथ बौद्ध धर्म के भी मंदिर हैं। पूर्व में जहां लकड़ी व मिट्टी आदि के घर हुआ करते थे, लेकिन अब आधुनिकता के विकास में अब गांव-गांव में सीमेंट व कंकरीट के मकान बनने लगे हैं।

बागबानी मुख्य पेशा

जिला किन्नौर की जलवायु विविध प्रकार की होने के कारण यहां पर विभिन्न प्रकार के फलों का उत्पादन किया जाता है।  सेब, बादाम, अखरोट, नाशपाती, अंगूर, चैरी आदि की खेती के लिए उपयुक्त है। किन्नौर जिला में बागबानी एक प्रमुख  व्यवसाय के रूप में उभरा है। किन्नौर जिला में 12716 हेक्टेयर क्षेत्र में बागबानी की जाती है।

आय के साधन

किनौर के लोगों की मुख्य आय का साधन सेब, मटर, बादाम, राजमाह, आलू, सूखे मेवे,सब्जियों के साथ-साथ माल-मवेशी हैं।

72 फुट ऊंचा शिवलिंग

किन्नौर जिला में  72 फुट ऊंचा  शिवलिंग आज भी विराजमान है। किन्नर कैलाश नामक स्थल पर इस शिवलिंग के दर्शन के लिए प्रत्येक वर्ष हजारों की तादाद में भक्त यहां पंहुचते हैं। मान्यता है कि शीतकालीन समय में किन्नौर भगवान शिव की तपोस्थली रहा है। इसी लिए किन्नौर को शिव का शीताकालीन  प्रवास स्थल भी माना गया है।

पांडवों ने बनाया कृष्ण मंदिर

इसी तरह युला नामक स्थान पर पांडव काल में बना कृष्ण मंदिर भी है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था। इसके अलावा यहां प्राचीन बौद्ध मठ भी ही हैं।

 नेगी से लेकर फारका तक

स्व. टीएस नेगी हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव के पद पर रहने वाले पहले जनजातीय व्यक्ति थे। उनके बाद वीसी नेगी सहित देव सिंह नेगी तथा वीसी फारका मुख्य सचिव के पद पर पहुंच चुके हैं। वर्तमान में वीसी फारका मुख्य सचिव  के पद पर तैनात हैं।

सियासत में किन्नौरियों की धाक

एक कुशल प्रशासनिक अधिकारी से राजनेता बने स्व. टीएस नेगी हिमाचल प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष पद पर कई वर्षों तक रहे। इसी तरह देवराज नेगी सहित जगत सिंह नेगी हिमाचल विधानसभा में उपाध्यक्ष तथा चेत राम नेगी हिमाचल प्रदेश सरकार में संसदीय सचिव के पद पर रह चुके हैं।

बलवंत सिंह नेगी किन्नौर की शान

लेफ्टिनेंट जनरल बलवंत सिंह नेगी वर्तमान में सेंट्रल कमांड में कार्यरत हैं। इससे पूर्व श्री नेगी सेना के कई महत्त्वपूर्ण पदों पर भी देश के लिए सेवाएं दे चुके हैं। श्री नेगी किन्नौर जिला की भावा वैली के काफनू गांव से ताल्लुक रखते हैं। यह पहले जनजातीय व्यक्ति हैं, जो भारतीय सेना में इतने बडे़ मुकाम पर पहुंचे।

टीएस नेगी ने जेनेवा में दिया सुझाव

पूर्व प्रशासनिक अधिकारी के बाद राजनेता रहे स्व. टीएस नेगी  60 के दशक में जेनेवा में हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेकर विश्व को वर्ल्ड गवर्नमेंट बनाने का सुझाव देने वाले विश्व के पहले व्यक्तिव रहे हैं।

यूएनओ में मुख्य पद पर रहे आईपीएस राठौर

इसी तरह जिला से संबंध रखने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे ओपी राठौर यूएनओ में कई वर्षों तक मुख्य पद पर रहते हुए अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

आईएस मेहता दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश

किन्नौर जिला के लिप्पा गांव से ताल्लुक रखने वाले आईएस मेहता दिल्ली हाई कोर्ट में न्यायाधीश के पद पर अपनी सेवाए दे रहे हैं। किन्नौर के यह पहले व्यक्ति हैं, जो ज्यूडीशरी के तहत इस मुकाम तक पंहुचे।

आईबी नेगी ने बढ़ाया मान

किन्नौर जिला के सांगला गांव से ताल्लुक रखने वाले आईबी नेगी यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे। श्री नेगी 25 अप्रैल 1986 में हिमाचल प्रदेश में डेपुटेशन पर आए, जो 1987 से 1990 तक डीजीपी के पद पर सेवाएं दे चुके हैं।

वाइस चांसलर भी रहे किन्नौरी

किन्नौर जिला के किल्बा गांव से संबंध रखने वाले डा. जीसी नेगी पालमपुर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर के पद पर तैनात रहे। इसी तरह लिप्पा गांव के सुशील सागर नेगी भी नौणी विश्वविद्यालय सोलन में वाइस चांसलर के पद पर रह चुके हैं। सुशील सागर नेगी ने 60 के दशक में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की थी। इसी प्रकार किन्नौर जिला के कल्पा गांव से ताल्लुक रखने वाले एलएस नेगी भी बागबानी यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर के  पद पर रहने के साथ यूपीएससी के भी मेंबर रहे हैं।

जागरूक कर रहे आरएस नेगी

किन्नौरियों को जागरूक कर रहे आरएस नेगी 1975 में एचएएस की परीक्षा पास करने के बाद 1977 में आईएएस कैडर में आए। आरएस नेगी  सेवानिवृत्त होने के बाद लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक कर रहे हैं। श्री नेगी हिम लोक जागृति मंच नामक संस्था के बैनर तले यह काम कर रहे हैं। श्री नेगी की इस निःस्वार्थ सेवा का लोग खासा लाभ प्राप्त कर रहे हैं। श्री नेगी बीते कई दशकों से हाइड्रो परियोजनाआें से होने वाले दुष्प्रभावों से भी खासे चिंतित हैं।

किन्नौरी ही दलाईलामा के गुरु

नोबेल पुरस्कार विजेता धर्मगुरु दलाईलामा के दो गुरुआें का संबंध किन्नौर से रहा है।  इनमें एक गुरु का संबंध सुनम गांव से तानजिन ज्ञालछन नेगी रिंपोछे तथा दूसरे ज्ञाबूंग के गेशे रिगजिंन तानपा रहे हैं।

रेमोथुपा, चुलफंटिंग लजीज व्यंजन

किन्नौर विश्व की प्राचीनतम प्रजातियों में से एक है। किन्नौर की सांस्कृतिक परंपरा जितनी प्राचीन है,उतना ही यहां का सांस्कृतिक परिवेश भी विशाल, समृद्ध एवं विशिष्ट है।  यहां हर साल कई त्योहार मनाए जाते हैं। रेमोथुपा, चुलफंटिंग, होद, ब्रासकान आदि किन्नौरियों  मुख्य लजीज व्यंजन हैं।

शराब बनाने की परमिशन

किन्नौर जिला में रहने वाले ग्रामीणों को प्रदेश सरकार अपने स्थानीय  फालों से 24 बोतल शराब तैयार करने के लिए बाकायदा लाइसेंस प्रदान करती है। किन्नौर में तैयार होने वाली लोकल शराब में अंगूरी तथा ब्रांडी मुख्य पेय पदार्थ हैं।

लुप्त हो रही परंपरा

आज हमारी पौराणिक संस्कृति तेजी से पतन की ओर जा रही है। युवा हमारी पौराणिक सामाजिक संस्कृति को भुला रहे हैं। पौराणिक शैली में बने मकानों को तोड़ कर उनके स्थान पर कंकरीट के मकान बनाए जा रहे हैं। वे पौराणिक गीत, जो हमारी पौराणिक संस्कृति व सभ्यता को दर्षाते हैं, उन्हेें लोग भुला रहे हैं।  लोग पौराणिक गाने व कथाआें को संजोए रखने में नाकाम साबित हो रहे हैं। हमारी पहचान तेजी से खत्म हो रही है।

हर साल करोड़ों का कारोबार

किन्नौर जिला के नामज्ञा होते हुए शिपकिला मार्ग से यहां कारोबार होता है। आधिकारिक तौर पर इसकी शुरुआत 1993 में भारत व चाइना के तत्कालीन प्रधानमंत्रियों के बीच बीजिंग में हुए समझौते के बाद हुई। इस व्यापार में जहां बकरी, याक, नमक, बटर, ऊन, घोडे़, बकरियां,क्रॉकरी, कंबल, रजाई आदि  का आयात किया जाता है,वहीं खेतीबाड़ी के उपकरणों के अलावा, कंबल, रजाई, खाद्य पदार्थ, साइकिल, काफी व चाय आदि वस्तुआें का निर्यात किया जाता है। वर्ष 2016 के आंकड़ों के अनुसार चार करोड़ तीन लाख 84 हजार 390 रुपए की वस्तुओं का निर्यात किया गया वहीं 4 करोड़ 55 लाख 90 हजार 100 रुपए की वस्तुओं का आयात किया गया। इस दौरान 73 लोगों ने व्यापार में भाग लिया।


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