15 साल से हजार रुपए ही तनख्वाह

By: Sep 10th, 2017 12:15 am

newsबिलासपुर — पूरे देश में मिड-डे मील सेवा शुरू हुए 15 साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक भी प्रदेश के वर्कर्ज को 1000-1500 रुपए मासिक वेतन दिया जा रहा है। हालांकि ये वर्कर्ज सरकारी स्कूलों में ही कार्य करती हैं, फिर क्यों नहीं सरकार इनको अनुबंध में करके इनकी तनख्वाह बढ़ाती है। मिड-डे मील वर्कर्ज को न तो मेडिकल भत्ता, न पेंशन, न  इंश्योरेंस व अन्य कई सरकारी सुविधाओं से क्यों वंचित रखा गया है। इस दौरान वर्कर्ज की परेशानियों को मद्देनजर रखते हुए दस यूनियनों के सैकड़ों लोग नौ से 11 नवंबर को दिल्ली संसद के बाहर धरना-प्रदर्शन करेंगे। यह बात एटक से संबद्ध मिड-डे मील वर्कर यूनियन की राष्ट्रीय अध्यक्ष डा.वी विजयलक्ष्मी ने कही। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार मजदूरों का शोषण कर रही है। देश के लाखों बच्चे गरीबी की वजह से स्कूल छोड़ देते हैं। मिड-डे मील योजना इस उद्देश्य से शुरू की गई थी कि स्कूलों में ड्रॉप आउट कम करने के साथ ही बाल मजदूरी भी रोकी जा सके। इस योजना को अमलीजामा पहनाने में अहम भूमिका निभा रहे मिड-डे मील वर्कर की अनदेखी की जा रही है। उनके काम को पार्टटाइम जॉब का नाम दिया गया है, जबकि उनका पूरा दिन इसी में लग जाता है। इसके एवज में उन्हें महज 1000 रुपए मासिक मानदेय दिया जा रहा है। मिड-डे मील योजना के तहत बच्चों को पौष्टिक आहार मिलना चाहिए। इसके लिए बेहद कम बजट का प्रावधान किया जा रहा है, जबकि दाल, चावल व अन्य खाद्य पदार्थों के दाम कई गुना बढ़ चुके हैं। इससे पौष्टिक आहार की बात बेमानी साबित हो रही है। मिड-डे मील वर्कर्ज की नौकरी भी पक्की नहीं है। अब स्कूलों के निजीकरण का प्रयास किया जा रहा है। मिड-डे मील का जिम्मा भी एनजीओ को सौंपने पर विचार किया जा रहा है। इससे स्कूलों में कार्यरत मिड-डे मील वर्कर्ज को घर बैठना पड़ेगा। घरों में सफाई, कपड़े धोने या बरतन साफ  करने जैसे घरेलू वर्कर्ज के लिए न्यूनतम वेतन 4000 रुपए निर्धारित किया गया है। इस लिहाज से मिड-डे मील वर्कर्ज को कम से कम 18 हजार रुपए मासिक वेतन मिलना चाहिए। उन्हें कम से कम 3000 रुपए पेंशन भी मिलनी चाहिए। उनकी इंश्योरेंस भी करवाई जानी चाहिए। सरकार गोरक्षा के लिए हर कदम उठाने को तैयार है, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा दरकिनार की जा रही है। मंत्रियों की सुरक्षा के लिए कई बॉडीगार्ड तैनात किए जाते हैं, लेकिन महिलाओं पर अत्याचार बढ़ने के बावजूद उनकी सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मजदूरों पर हमले हो रहे हैं। उन्हें नौकरियों से निकाला जा रहा है। अब तो मीडिया कर्मी भी सुरक्षित नहीं रहे हैं। बंगलूर में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या इसका ताजा उदाहरण है।

‘डेरा डालो-घेरा डालो’ नारा गूंजेगा

केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरोध में एटक समेत कई अन्य संगठन संसद के घेराव की तैयारी में हैं। भारतीय मजदूर संघ को छोड़कर देश भर में कार्यरत दस संगठन ‘डेरा डालो-घेरा डालो’ का नारा बुलंद करते हुए 9-10-11 नवंबर को संसद का घेराव करने के साथ ही विरोध प्रदर्शन भी करेंगे। इस मौके पर एटक के जिला महासचिव प्रवेश चंदेल, मिड-डे मील वर्कर यूनियन की जिला अध्यक्ष कमलेश ठाकुर व महासचिव सुरेंद्रा भी मौजूद रहीं।


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