अगर बच्चा जिद्दी हो

कई बार बच्चा अपनी जिद्द मनवाने के लिए रोता है। आप ने न कहा तो उस ने अपना सिर पटका, आप ने फिर न कहा, लेकिन जब वह जमीन पर लोटने लगा तो आप ने घबरा कर उसे हां कह दिया। यहीं से बच्चा समझ जाता है कि रोने से कुछ नहीं होता। जमीन पर लोटने से जिद्द मनवाई जा सकती है। बस, तब से वह वही काम करने लगता है। इस प्रकार मूल बात है कि बिहेवियर मॉडिफिकेशन या मोल्डिंग अर्थात जिस तरह से आप उसे आकार देंगे वह वैसा ही करेगा। जैसा कि कुम्हार करता है, जो घड़ा उसे चाहिए उसे वह अपनी तरह से आकार देता है, लेकिन यहां बात बच्चे की है। अगर बच्चे को आप ने किसी वस्तु के लिए न कहा है तो आप उस का कारण अवश्य बताइए। बच्चा कितना भी रोए चिल्लाए, आप अपनी बात पर कायम रहें, दृढ़ रहें ताकि उसे अपनी सीमा रेखा पता चले। यह काम बचपन से ही करना चाहिए।

खुद को बदलें

बच्चे को बचपन से ही समझ लेना चाहिए कि अगर आप ने न कहा है तो इस का अर्थ नहीं है। पहली न के बाद दूसरी या तीसरी न कहने की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। बचपन में अगर आप ने एक बार न कहा, फिर थोड़ी जिद्द के बाद उसे हां कह दिया तो बड़ा हो कर वही बच्चा जिद्दी बनता है। बच्चे के जिद्दी होने की एक वजह आज की जीवनचर्या भी है। आज परिवार संयुक्त नहीं हैं। माता-पिता दोनों ही नौकरी पेशा हैं। ऐसे में उन के पास समय की कमी होती है। दिन भर की भागदौड़ के बाद जब वे घर पहुंचते हैं तो बच्चे की जिद अनायास ही पूरी कर देते हैं।

सारे पहलू को देखना जरूरी

इस के अलावा आज के बच्चे ठीक से खाते- पीते नहीं हैं। जंक फूड पर उन का ध्यान अधिक रहता है, जिस से वे एनीमिक बन जाते हैं। स्कूल का माहौल भी कभी कभी उन्हें जिद्दी बनाता है। कोई ऐसी घटना, जिसे वह किसी से बांट नहीं पाता, कह नहीं पाता तो जिद्दी बन कर ही उसे सामने लाता है। इस विषय पर मुंबई की शुश्रुत अस्पताल की मनोचिकित्सक प्रद्दान्या दीवान कहती हैं कि जब बच्चा हमेशा जिद्द करे तो उस के सारे पहलू को देखना जरूरी है। माता-पिता उस की बात को सुनें। उस के साथ अपना कुछ समय बिताने की कोशिश करें, जिस से बच्चे को अकेलापन महसूस न हो। वह अपनी बात आप से कहे।