मुलाकात
एक अच्छा पाठक ही एक अच्छा लेखक बन सकता है…
अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत कहां से देखती हैं?
जीवन को समझना साहित्य है या साधना?
हमारा जीवन अपने आप में ही एक साहित्य है इसलिए मैं कहूंगी की जीवन को समझना इसके हर एक पहलू को समझना साहित्य है। लोक साहित्य, फिल्मी साहित्य सब कुछ साहित्य से जुड़ा है और इसी जीवन को सच्चाई, मकसद और ईमानदारी के साथ हम जीते हैं वो तो साधना बन जाती है। अगर हम केवल अपने लिए न जी कर दूसरों के लिए अपने जीवन का कुछ अंश देते हैं, सबको साथ लेकर चलते है तभी वह साहित्य साधना बनती है।
आपके सामने अभिव्यक्ति के बड़े प्रश्न क्या हैं?
मेरा मानना है कि अभिव्यक्ति एक तरह की न होकर कई तरह की होती है। इसमें एक पुरूष की एक महिला की ओर एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति होती है। इन अभिव्यक्तियों में अंतर यह है कि जब एक पुरूष किसी नारी के बारे में कुछ लिखता है तो वह उस पुरूष का अनुमान है। वहीं अगर कोई नारी, नारी के बारे में अभिव्यक्त करती है वो यह उसका अनुभव है। इसके अलावा स्वतंत्र अभिव्यक्ति इन दोनों अभिव्यक्तियों से अलग है। स्वतंत्र अभिव्यक्ति में जब आप कुछ अभिव्यक्त करते हैं, तो उसकी कीमत भी आपको चुकानी पड़ती है। जिसका ताजा उदाहरण पत्रकार गौरी लंकेश है, जिन्हें अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति के चलते अपनी जान तक गवानी पड़ी।
सरकारी सेवा के साथ साहित्यिक कैनवास सरल या कठिन?
मैं साहित्य लेखन हिंदी में करती हूं जबकि मेरी शिक्षा तकनीकी से जुड़ी रही है। मैंने इंजीनियरिंग किया है बावजूद इसके मुझे साहित्य कठिन नहीं लगा। अगर भाषा पर पकड़ है तो साहित्य कठिन नहीं है और जहां तक सरकारी नौकरी की बात है तो एक सरकारी मुलाजिम होने के साथ ही मैं समाज की जागरूक नागरिक भी हूं जो समाज के प्रति जागरूक है, संवेदनशील है और हर एक समसमायिक घटनाओं की जानकारी रखती हूं, तो मैं उसे अभिव्यक्त भी जरूर करती हूं। सरकारी नौकरी को मैं जितनी ईमानदारी से करती हूं, उसी तरह साहित्यिक रचनाएं भी लिखती हूं।
आप कब खुद को सिर्फ लेखक मानकर प्रतिक्रियावादी होना पसंद करती हैं?
ऐसा नही है, मैं एक जागरूक इनसान हूं। जरूरी नहीं है कि मैं एक लेखिका के रूप में ही अभिव्यक्त करूं। एक वक्ता के रूप में भी अभिव्यक्ति होती है। मैं स्वच्छता अभियान, कन्या भ्रूण हत्या और बालात्कार जैसे विषयों पर वक्ता के रूप में अपने विचार भी अभिव्यक्त करती हूं।
पुरस्कारों की खेप हासिल करना क्या प्रभावित करता है और यह कितनी जरूरी या स्वाभाविक अभिलाषा रहती है?
सच कहूं तो जब मैंने लिखना शुरू किया उस समय मुझे यह पता नहीं था कि लेखन में पुरस्कार मिलते है। कौन-कौन से लेखक हैं या साहित्यकार मुझे इसकी भी जानकारी नहीं थी। इसलिए मैंने कभी भी पुरस्कार के लिए लिखना शुरू नही ंकिया। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी और बाल साहित्य पढ़ती थी, वहीं से लेखन शुरू किया। मुझे पुरस्कार स्वतः ही मिले। स्वाभाविक लालसा शायद होती होगी, लेकिन मुझे कभी नहीं रही। एक लेखन के तौर पर मैंने अपनी रचनाएं भेजी, जिन्हें पुरस्कार के लिए चुना गया। आज भी कई लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या जुगाड़ है तो मेरा कहना है कि सम्मान स्वतः ही मिलता है जुगाड़ करके नहीं मिलता। बस मेहनत, भगवान की कृपा और निरंतरता ही आपको सम्मान दिलाती है।
जो प्रसिद्धि मिली, उससे आगे निकलने की यात्रा को कैसे देखती हैं?
मेरी अभिव्यक्ति में वही निरंतरता रहेगी। हमें अगले क्षण का पता नहीं होता है कि आकाश मिल रहा है या पाताल, तो आगे की यात्रा का कैसे पता कर सकती हूं? इस प्रश्न के जवाब में मुझे एक ही बात याद आ रही है कि चित्रगुप्त की किताब का हर आने वाला चित्र गुप्त रहता है।
पुरस्कारों से अलहदा आपके लिए लेखन सुकून? ऐसी कौन सी रचना है जो हमेशा नजदीक रहती है?
मुझे अपनी हर रचना उतनी ही प्यारी है जितनी एक मां के लिए अपनी हर एक औलाद। मेरी रचनाएं स्वतः ही मेरे पास आती हैं। मैं कभी भी जबरदस्ती नहीं लिखती। ऐसे में जो भी रचना मैं लिखती हूं, वह मेरे मन में उतर जाती है। मेरी रचना ‘भारत एक विमर्श’ को जब राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो मैंने अपनी किताब दोबारा पढ़ी और मैं स्वयं से प्रभावित हुई। मेरा मानना है कि स्वयं से अपनी रचनाओं से प्रभावित होना जरूरी है।
जीवन की प्राथमिकताओं में आपके लिए लेखन का क्रमांक क्या है और इसकी वजह क्या है?
जीवन में लेखन का क्रमांक प्रथम है, लेकिन कर्म साधना में यह तीसरे स्थान पर है। मैं अपने पति को कई मर्तबा यह बात कहती हूं कि अगर मैंने शादी नहीं की होती तो मैं बस जीवन में लिख ही रही होती, लेकिन परिवार से जुड़ने पर मेरी पहली प्राथमिकता मेरा परिवार है। मेरे बच्चे जब तक वो खाना नहीं खा लेते तब तक मुझे सुकून नहीं मिलता। उसके बाद दूसरे स्थान पर मेरा सरकारी कर्मचारी होने पर लोगों के लिए सेवाएं देना और तीसरे स्थान पर लेखन।
हिमाचल में साहित्यिक ऊर्जा को किस स्तर पर देखती हैं और उन कारणों पर आपकी दृष्टि, जो यहां के लेखन की उचित समीक्षा या मूल्यांकन होने नहीं देते?
हिमाचल में सभी नए और पुराने लेखक सभी ऊर्जावान हैं। मेरा मानना है कि जब से सोशल मीडिया आया है, तब से साहित्य ऊर्जावान हो गया है। एक मंच साहित्यकारों को मिल रहा है। मैंने बचपन में जब लिखना शुरू किया था, तो उस समय सोशल मीडिया होता तो पता नहीं मैं कहां होती। पहले लेखकों को अपनी रचनाएं कहां भेजें यह समस्या होती थी, लेकिन अब इंटरनेट और सोशल मीडिया ने सब आसान कर दिया है। एक कमी जो आज भी है, वो है आपसी गुटबाजी। लेखन में गुटबाजी और स्पर्धा नहीं होनी चाहिए। जो आपके पास आ रहा है उसे स्वतः ही रहने दं। स्पर्धा आपके विचारों का हनन करती है।
जिसके साथ साहित्य सृजन साझा करना एक सद्भावना या आदर है? या जिसकी टिप्पणियां आपको परिपक्व बना देती हैं?
मुझे अपना साहित्य किसी से साझा करने का समय नहीं मिलता। बस लिखा और टाइप किया और किसी पत्रिका या समाचार पत्र में छप गया। मैं लेखन भी अपने आराम के क्षणों में करती हूं। कभी लगता है कि दिन 48 घंटे का होता तो यह सब कर पाती। अब सोशल मीडिया पर लोगों की टिप्पणियां मिलती हैं, तो उससे आत्मबल मिलता है, लेकिन इस तरह के बेहद कम लोग हैं जिन्होंने साहित्य पढ़ा हो और वो इसकी वास्तविक प्रशंसा कर सकें।
आप किसे पढ़ना पसंद करती हैं और सबसे प्रिय लेखक साहित्यकार?
मैं जो भी किताब मेरे हाथ आए उसे पढ़ लेती हूं। एक अच्छा पाठक ही एक अच्छा लेखक बन सकता है। जब हम दूसरों को पढ़ते हैं, तभी हमें पता चलता है कि हम कहां खड़े हैं। इसके अलावा मुझे रविंद्र नाथ टेगौर, मुंशी प्रेम चंद, महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएं पढ़ना अच्छा लगता है।
कंचन शर्मा अब तक के अपने सफर को कितना सफल मानती हैं और लक्ष्य के साथ बहते हुए किस मंजिल को ढूंढना अभी बाकी है?
सच कहूं तो लेखन में मेरा कोई लक्ष्य नहीं है। मैं आत्मशांति और आनंद के साथ लिखती हूं और आगे भी लिखती रहूंगी।
—भावना शर्मा, शिमला