किसी एक की नहीं हुई पहाड़ों की रानी

कभी कांग्रेस-कभी भाजपा; तो कभी वामपंथी रहे विधायक, दो साल से लगातार भाजपा लहरा रही परचम

शिमला— शिमला राजनीतिक दृष्टि से कभी किसी दल विशेष का गढ़ नहीं रही है। हालांकि पिछले दो चुनाव से यहां भाजपा जीतती आ रही है, लेकिन चुनावी इतिहास कुछ और ही रहा है। यहां कभी कांग्रेस, कभी भाजपा को कभी वामपंथी विधायक रहे हैं। माकपा के राकेश सिंघा ने यहां वर्ष 1990 में 6857 वोट हासिल करके कांग्रेस व भाजपा के उम्मीदवारों को चित कर दिया था। इसके बाद कभी माकपा विधानसभा का चुनाव नहीं जीत पाई। हालांकि नगर निगम में मेयर व डिप्टी मेयर के पदों पर उनके पदाधिकारी रहे हैं। शिमला शहर के चुनावी इतिहास में झांकें, तो वर्ष 1985 में कांग्रेस के हरभजन सिंह भज्जी ने भाजपा के राधा रमण शास्त्री को हराया था। भज्जी 630 मतों से विजयी हुए थे, जिन्हें 8825 मत हासिल हुए, वहीं शास्त्री को 8195 वोट मिले। इसके बाद वर्ष 1990 में कांग्रेस के हरभजन सिंह भज्जी को भाजपा के सुरेश भारद्वाज ने 5963 मतों के अंतर से पराजित किया। भज्जी को तब 6738 वोट पड़े, जबकि भारद्वाज को 12701 मत हासिल हुए। 1993 में  कांग्रेस और भाजपा को पराजित कर यहां वापमंथी झंडा फहराया गया। तब राकेश सिंघा ने 159 मतों के अंतर से कांग्रेस के भज्जी को हराया, जबकि भाजपा के सुरेश भारद्वाज तीसरे स्थान पर रहे। वर्ष 1996 में कांग्रेस ने शिमला शहर में पार्टी टिकट बदला और आदर्श सूद को मौका दिया गया। आदर्श सूद इससे पहले नगर निगम के मेयर रह चुके थे और सूद कम्युनिटी के साथ ट्रेडिंग सेक्टर का भी प्रतिनिधित्व करते थे। उन्होंने 14511 मत हासिल करके भाजपा के सुरेश भारद्वाज को हराया, जिनसे वह 3145 मतों से विजयी हुए, यह तब उपचुनाव था। इसके बाद 1998 में भाजपा ने टिकट बदलकर नरेंद्र बरागटा को दिया, जिन्होंने कांग्रेस के हरभजन सिंह को 2603 वोट से पराजित कर दिया। कांग्रेस और भाजपा की तरफ से एक ही प्रत्याशी कई दफा चुनाव मैदान में उतर चुका है। कांग्रेस की ओर से जहां भज्जी छह दफा शिमला शहरी सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, वहीं भाजपा की ओर से सुरेश भारद्वाज, जो कि मौजूदा विधायक भी हैं, ने पांच दफा चुनाव लड़ा। इसी कड़ी में माकपा की ओर से राकेश सिंघा ने तीन दफा चुनाव लड़ा, वहीं ओपी चौहान ने दो दफा और संजय चौहान ने भी दो दफा विधायक चुनाव लड़ा। इसके अलावा राधा रमण शास्त्री, आदर्श सूद, टिकेंद्र पंवर व हरीश जनारथा से ये प्रत्याशी रहे हैं। शिमला शहर, क्योंकि राजधानी है, इसलिए यहां पूरे प्रदेश के मतदाता हैं। यहां पहाड़ी वोटर का भी बड़ा फैक्टर रहा है, जिसके साथ ट्रेडिंग सेक्टर भी डिसाइडिंग रहता है।

कुछ ऐसा भी था..

2003 में फिर से भाजपा ने शिमला से प्रत्याशी बदला और गणेश दत्त को टिकट दे दिया। गणेश दत्त को यहां कांग्रेस के हरभजन सिंह ने 2111 मतों से हराकर फिर सीट कांग्रेस की झोली में डाली। वर्ष 2007 में कांग्रेस के हरभजन सिंह भाजपा के सुरेश भारद्वाज से 4113 मतों से तथा वर्ष 2012 के पिछले चुनाव में कांग्रेस के हरीश जनारथा को भाजपा के सुरेश भारद्वाज ने 628 मतों के अंतर से पराजित किया।