गिरिपार में सप्ताह भर चलेगी दिवाली

संगड़ाह  – सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं को संजोए रखने के लिए जाने वाले गिरिपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के लगभग सभी त्योहार मनाए जाते हैं, मगर इन्हें मनाने का अंदाज शेष हिंदोस्तान से अलग है। गिरिपार में बूढ़ी दिवाली जहां दीपावली के एक माह बाद मनाई जाती है, वहीं लोहड़ी के दौरान आयोजित होने वाले माघी त्योहार पर एक साथ 40 हजार के करीब बकरे कटते हैं। गुग्गा नवमी पर जहां भक्त खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं, वही ऋषि पंचमी में महासू देवता के भक्त आग पर कूदते हैं। इन्हीं परंपराओं को आधार मानकर हाटी समिति गिरिपार के अंतर्गत आने वाले विकास खंड संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ को जनजातीय दर्जा देने की मांग कर रही है। गिरिपार में नई दिवाली भी सप्ताह भर मनाई जाती है तथा बुधवार को चौदश से दिवाली सप्ताह भर चलने वाली दिवाली का दौर शुरू हो चुका है। चौदश के बाद अवांस, पोड़ोई, दूज, तीज, चौथ व पंचमी के नाम से मनाई जाने वाली दिवाली के दौरान क्षेत्र में जहां पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं, वहीं रामलीला व सांस्कृतिक संध्याओं का भी दौर चलता है। शुक्रवार को दिवाली के दूसरे दिन इलाके के विभिन्न गांवों में प्रात कुल देवता का पारंपरिक पूजन हुआ तथा दिन में बुड़ेछू अथवा बूढ़ा नृत्य हुआ। दिवाली व बूढ़ी दिवाली के दौरान क्षेत्र मे पारंपरिक बुड़ेछू अथवा बूढ़ा लोक नृत्य किया जाता है तथा विशेष समुदाय द्वारा घंटों किया जाने वाला यह नृत्य गिरिपार की खास पहचान है। बुधवार से क्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ दिवाली त्योहार शुरु हो गया तथा इस अवसर पर अस्कली, बिलोई, सिड़ो व पटांडे आदि पारंपरिक व्यंजन बनाए जाने का दौर जारी है।

अलाव से लाई आग से जलाए जाते दीप

दीपावली अथवा अमावस्या की रात्रि गिरिपार के अंतर्गत आने वाली 127 पंचायतों के विभिन्न गांव में दीए अन्य जगहों की तरह माचिस से नहीं जलते, बल्कि कुल देवता के प्रांगण में जलाए जाने वाले अलाव से लाई गई आग से दीप जलाए जाते हैं। दिवाली के बाद आने वाली दूज भी गिरिपार में खास महत्त्व रखती है तथा इस दिन क्षेत्र में भाई दूज की जगह सास दामाद दूज मनाई जाती है। इस दिन दामाद अपने सासों को उपहार अथवा गिफ्ट देते हैं तथा उनका आशीर्वाद लेते हैं। दूजए तीजए चौथ व पंचमी को क्षेत्र के अलग-अलग गांव में सांस्कृतिक संध्याओं, बुड़ेछू नृत्य अथवा रामलीलाओं का दौर भी चलता है।