चुनावी शोर में जनता के मुद्दे खामोश

पांच साल तक जिन मसलों पर होती रही सियासत, अब उनका जिक्र तक नहीं कर रहे राजनीतिक दल

धर्मशाला— विधानसभा चुनावों के शोरगुल में एक बार फिर जनता के मुद्दे गायब होने लगे हैं। प्रदेश में सबसे ज्यादा 15 सीटों वाले कांगड़ा जिला के अधिकतर विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशी जनता के मुद्दों को छोड़कर जातीय संतुलन साधने में जुटे हैं। कहीं रूठों को मनाने तो कहीं असंतुष्टों को बिठाने का ही सियासी खेल चल रहा है। नेता मुद्दों को छोड़ लोगों को उनके निजी हितों व समुदायों से जोड़ कर लुभाने का प्रयास कर रहे हैं। न महंगाई, न भ्रष्टाचार, न पार्किंग, न जीएसटी, न नोटबंदी, न ही केंद्रीय विश्वविद्यालय और तो और जनता से जुड़े अन्य अहम मुद्दे भी कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। चुनावी बिगुल बजते ही जनता के महत्त्वपूर्ण मुद्दे कहां गायब हो गए, यह सबसे बड़ा सवाल बन गया है। अब नेता मुद्दों व विकास की बात करने के बजाय एक दूसरे पर छींटाकशी करने में ही व्यस्त हैं। हालांकि इससे पहले भाजपा नेता केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला की डल झील में हुए लाठीचार्ज, पार्किंग और रोपे-वे सहित अन्य मुद्दों को प्राथमिकता से उठाती रही है, वहीं कांग्रेस जीएसटी, नोटबंदी, महंगाई सहित केंद्र से सहयोग न मिलने के मुद्दों को जोर-शोर उठाती रही है, लेकिन अब चुनावों के ऐन मौके पर दोनों ही दल मुद्दों की सियासी जंग के बजाय जाति समुदाय व एक दूसरे की निजी कमियों को गिनाने पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। ये नेता जनता का ध्यान मुद्दों से हटाकर, उन्हें और ही बातों में उलझाना चाह रहे हैं, लेकिन इस बार लोग भी इस बात को मामने को तैयार नहीं हैं। वह नेता जी का विजन देखना चाह रहे हैं।

…तो किस एजेंडे पर लड़ रहे चुनाव

भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी अभी तक यह भी नहीं  बता पाए हैं कि वह चुनाव किस एजेंडे पर लड़ रहे हैं। किस विधानसभा में वह चुनाव जीतने के बाद क्या करेंगे, इस बात को लेकर भी चर्चा नहीं हो रही है। ऐसा एक तरफ से नहीं, बल्कि दोनों तरफ से हैं। हालांकि बुद्धिजीवी लोग अब यह जानना चाहते हैं कि उनका विधायक जीतने के बाद जनता व संबंधित विधानसभा क्षेत्र के लिए क्या करेगा।