छोटे कस्बे विकसित तो हुए, पर सुविधाएं नहीं दे पाई सरकार

सोलन के शामती, चंबाघाट, सलोगड़ा, बसाल, रबौण, आंजी में सफाई व्यवस्था बदहाल, स्ट्रीट लाइट के दावे भी हवा

सोलन  – सोलन निर्वाचन क्षेत्र में कई छोटे कस्बे तो विकसित हुए, लेकिन मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवाने में सरकार विफल साबित हुई है। इन कस्बों में सफाई व्यवस्था का सबसे अधिक बुरा हाल है। पीने का पानी भी लोगों को नियमित रूप से नहीं मिल पाता है। स्ट्रीट लाइटों के अभाव की वजह से ये कस्बे दिन ढलते ही अंधेरे में डूब जाते हैं। सोलन शहर के साथ लगते शामती, चंबाघाट, सलोगड़ा, बसाल, रबौण व आंजी ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर शहरीकरण तेजी से बड़ रहा है। ये क्षेत्र पंचायतों के अधीन आते हैं। यही वजह है कि यहां रहने वाले लोगों को कई प्रकार दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है। पंचायत के पास इतना अधिक बजट नहीं होता है कि वह अपने स्तर पर सफाई कर्मचारी रख सके। इन कस्बों में कूड़ादान तक नहीं है। चारों तरफ खुले में गंदगी पसरी रहती है। इसी प्रकार शहर के साथ लगता देउंघाट क्षेत्र छोटे कस्बे के रूप में विकसित हो चुका है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर यहां लोगों को कुछ नहीं मिला है।  स्ट्रीट लाइटों के अभाव की वजह से रात्रि के समय यह कस्बा अंधेरे में डूब जाता है।  बिलकुल यही स्थिति कंडाघाट व चायल कस्बे की भी है। ये दोनों क्षेत्र छोटे कस्बे के रूप में विकसित हो चुके हैं तथा यहां पर पूरी तरह से शहरी कल्चर है। हैरानी की बात है कि लगातार आबादी बढ़ने के बावजूद लोगों को सुविधाएं देने में सरकार विफल साबित हुई है। कंडाघाट में अस्पताल के निर्माण का मामला नेताओं पर भारी पड़ सकता है। इसी प्रकार यहां पर बनने वाली विशाल सब्जी मंडी का काम भी शुरू नहीं हो पाया। एक वर्ष पहले इस मंडी का उद्घाटन किया गया था। पर्यटन नगरी  के नाम से प्रसिद्ध चायल भी सुविधाओं के लिए तरस रहा है। वहीं सोलन में स्वास्थ्य सेवाओं से लोग पांच वर्ष तक परेशान रहे। क्षेत्रीय अस्पताल सोलन में कभी विशेषज्ञ डाक्टर नहीं, तो कभी दवाइयों का अभाव रहा। कई बार विपक्षी दल ने चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आंदोलन भी किया। यह मामला भी चुनावों में अहम मुद्दा बन सकता है।

पानी के लिए कोहराम

नेताओं द्वारा कई बार वादा किया जा चुका है कि छोटे कस्बों में नियमित रूप से प्रतिदिन पानी की सप्लाई मिलेगी। बरसात के दिनों में हालात ये बन जाते हैं कि लोगों को सप्ताह में एक दिन भी मुश्किल से पानी मिल पाता है। गिरि व अश्वनी खड्ड पेयजल योजना लोगों की प्यास बुझाने में कामयाब नहीं हो पाई हैं। पांच वर्ष से लोग यह समस्या झेल रहे हैं। विधानसभा चुनावों में आम जनता का गुस्सा सरकार पर भारी पड़ सकता है।

ट्रैफिक जाम से राहत नहीं

स्थानीय विधायक व मंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल सोलन बाइपास का निर्माण कार्य अधूरा लटका है। भू-अधिग्रहण के लिए बजट संबंधित विभाग को नहीं मिल पाया है। यही वजह है कि कई माह बीते जाने के बाद भी मात्र तीन किलोमीटर अधूरी सड़क तैयार हो पाई है। करीब 26 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले इस बाइपास के बाद लोगों को शहर के ट्रैफिक जाम से राहत मिल सकती है।