छोटे पेड़ों की बड़ी कला बोनसाई

खुले स्थान में ही पेड़ अपने नैसर्गिक आकार-प्रकार को ग्रहण कर पाता है। बढ़ती जनसंख्या और फैलते शहरों के कारण खुले स्थान सिमट रहे हैं, जमीन पर दबाव बढ़ रहा है। ऐसे में पेड़ों से अपने लगाव को बोनसाई के जरिए पूरा करने की प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ रही है। बोनसाई यानी बौने आकार के वृक्ष…

बढ़ते शहरीकरण ने बरगद जैसे पेड़ों के नीचे बैठने का सुकून हमसे छीन लिया है। ऐसे में प्रकृति प्रेमियों के लिए बोनसाई एक नया ठौर बन गया है। यह तेजी से लोगों के शौक में शामिल हो रहा है। बोनसाई यानी बौने आकार के वृक्ष। बोनसाई उगाने का शौक आपको, आपके परिवार को और आने वाली पीढि़यों को सुकून के क्षण उपलब्ध करा सकता है।  बोनसाई बनाने के दो तरीके हैं, पौधशाला से उपयुक्त वृक्ष-शिशु खरीद लाना और बीज से ही शुरू करना। इनमें से पहला जल्दी परिणाम देगा, पर यदि आप पौधे के विकास को शुरू से ही नियंत्रित करना चाहें, तो बीज से उगाने का कोई विकल्प नहीं है, पर इसमें बोनसाई बनने में बहुत समय लग सकता है। पीपल, बरगद, गूलर, अंजीर, नीम, बांस, महुआ, गुलाब, बोगेनविला, देवदार, चीड़ आदि के अच्छे बोनसाई बन सकते हैं।  बोनसाई वही सफल माना जाता है जिसकी आकृति मूल वृक्ष जैसी ही हो। बोनसाई बनाने के लिए मूल पात्र और मिट्टी में पौधे को रहने देते हुए उसकी शाखाओं, टहनियों और पत्तों को बड़ी सावधानी से पौधा काटने की कैंची से इस तरह से काटें कि पौधा विकसित वृक्ष की आकृति का दिखे। काटते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि एक बार काट देने के बाद पौधे के उस अंग को वापस पौधे में जोड़ा नहीं जा सकता है। हर बोनसाई का एक सामने का भाग होता है, जहां से उसे दिखाया जाता है, और जहां से देखने पर वह मूल वृक्ष जैसा लगता है। काटते वक्त इस बात पर विचार कर लें कि बोनसाई का सामने वाला भाग कौन सा रहेगा। इस ओर से दर्शक की तरफ कोई शाखा निकली हुई नहीं होनी चाहिए, ताकि पूरा बोनसाई दिखे। इस ओर के पीछे की तरफ और दोनों बगलों से शाखाएं सही अनुपात में निकली हुई होनी चाहिए ताकि बोनसाई देखने में असली वृक्ष की आकृत का लगे। अब पौधे को बड़ी सावधानी से मिट्टी से अलग करें और उसे पानी से भरी बाल्टी में रखकर जड़ों से लगी मिट्टी हटाएं और कैंची से जड़ों को उनकी मूल लंबाई के लगभग दो तिहाई तक कुतर दें, या उतना कुतर दें जितने से पौधे को बोनसाई रखने के गमले में रखा जा सके। तने के ठीक नीचे आपको जड़ों का एक गुच्छा मिलेगा। जड़ों को लगभग इस गुच्छे तक कुतर देना चाहिए, लेकिन काटते वक्त गमले के व्यास का भी ध्यान रखें। गमले में पौधे को रखते समय गमले के किनारे से लगभग एक-दो इंच की मिट्टी जड़ों से मुक्त होनी चाहिए। बोनसाई के लिए गमला सावधानी से चुनें। वह मजबूत और सुंदर होना चाहिए और बहुत गहरा नहीं होना चाहिए। उसके पेंदे में अनेक छोटे छेद होने चाहिएं ताकि अतिरिक्त पानी उनसे बह निकल सके और जड़ों को हवा मिल सके। इन छेदों के ऊपर महीन नेटिंग लगाएं ताकि चींटियां आदि गमले के अंदर घुस न सकें। अब इस जाली के ऊपर मिट्टी फैलाएं। मिट्टी पौष्टिक एवं मजबूत होनी चाहिए ताकि बोनसाई उसमें आसानी से जम सके। मिट्टी की परत जब दो-तीन इंच मोटी हो जाए तो ऊपर बताई गई विधि से तैयार किए गए पौधे को उसमें रखें और जड़ों के चारों ओर मिट्टी फैलाकर धीमे से दबा दें। अब मिट्टी के ऊपर बजरी और कंकरी फैलाएं ताकि सब कुछ साफ-सुथरा लगे। इस तरह कम जमीन में भी आप पेड़ लगाने और उसके जरिए मिलने वाले सुकून का लाभ उठा सकते हैं।