टैटू संस्कृति

भौतिक सुख-सुविधाओं के बढ़ने के साथ ही पूरी दुनिया में योग और अध्यात्म के प्रति ललक भी बढ़ रही है। यह ललक लोगों को संस्कृत भाषा की तरफ आकर्षित कर रही है। कारण बिल्कुल स्पष्ट है, योग और अध्यात्म का प्राचीनतम और प्रामाणिक चिंतन संस्कृत ग्रंथों में ही उपलब्ध होता है, संस्कृत भाषा से परिचित हुए बगैर शास्त्रों में समाहित ज्ञान से परिचित नहीं हुआ जा सकता। टैटूज के जरिए संस्कृत के प्रति जो लगाव दिख रहा है, उसे प्रारंभिक ही माना जाना चाहिए। इस भाषा के प्रति बढ़ती ललक जल्द ही अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई देने लगे तो आश्चर्य नहीं मानना चाहिए…

अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए टैटूज युवाओं की नई भाषा बन गए हैं। हैरत की बात यह है कि टैटूज की सर्वाधिक प्रिय भाषा संस्कृत बन कर उभरी है। पूरी दुनिया में संस्कृत में लिखे गए मंत्रों, श्लोकों और सुभाषितों को शरीर पर गुदवाने का नया चलन देखने को मिल रहा है। गायत्री मंत्र, वैदिक ऋचाएं, शिव मंत्र, शक्ति मंत्र, गणेश मंत्र सहित कुछ लोकप्रिय सुभाषितों का मर्म पश्चिमी दुनिया के युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। आभासी जगत में मौजूद संकेत बताते हैं कि संस्कृत उस  बौद्धिक समाज में तो अपनी जगह बना ही रही है, जो बौद्धिक विश्व का नेतृत्व कर रहा है और उस युवा समुदाय में भी, जिसे फैशन का सरपरस्त कहा जाता है। पिछले कुछ सालों में अमरीका और यूरोप के देशों में रहने वाली युवा पीढ़ी नेट के माध्यम से संस्कृत के संपर्क में आई है। देवनागरी में लिखे संस्कृत के शब्दों के आकार और आकृति ने उन्हें इतना सम्मोहित किया कि अपने शरीर पर मंत्र गुदवाने, मंत्रों के आकार और आकृति के गहने पहनने, इनके प्रिंट के ग्रीटिंग्स भेजने, कपड़े पहनने और यहां तक कि स्टेशनरी में भी इनका प्रयोग फैशन का हिस्सा बन गया। यह फैशन वहां इस कदर धूम मचा रहा है कि स्टीवर्ट थामस नामक एक डिजाइनर ने इसके लिए अपनी एक वेबसाइट ही बनवा ली है। कपड़ों और गहनों में शब्दों का प्रयोग भाषा के महत्त्व को पूरी तरह से भले ही न रेखांकित करता हो, लेकिन संस्कृत में निहित दर्शन, रहस्य और संपूर्णता के प्रति बढ़ते आकर्षण का संकेत तो युवाओं की दीवानगी दे ही रही है। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि सिर्फ अमरीका में दस से ज्यादा ऐसे संस्थान हैं जहां उच्च स्तर पर संस्कृत पढ़ाई जाती है। इंटरनेट संस्कृत के प्रसार में सहयोगी की भूमिका निभा रहा है। पूरे विश्व में हजारों  लोग इंटरनेट के माध्यम से संस्कृत सीख रहे हैं। हिंदी और अंग्रेजी माध्यम से संस्कृत सिखाने के लिए बीस से भी ज्यादा वेबसाइट्स हैं, जिन्हें संस्कृत की संस्थाएं अथवा विद्वान संचालित कर रहे हैं। यूरोप और आस्ट्रेलिया में संस्कृत के लिए समर्पित अमरीकन संस्कृत इंस्टीट्यूट अपनी साइट के माध्यम से संस्कृत की आनलाइन क्लासेज लगा रहा है और संस्कृत सिखाने के लिए बनाई गई मल्टीमीडिया सीडीज का प्रचार भी कर रहा है। उनकी साइट पर आने वाले संस्कृत प्रेमियों की संख्या बढ़ रही है। अब इस बात की पूरी संभावना दिख रही है कि जल्द ही योग की तरह संस्कृत भाषा भी ब्रांड भारत का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन जाएगी। तकनीकी विकास और भौतिक सुख-सुविधाओं के बढ़ने के साथ ही पूरी दुनिया में योग और अध्यात्म के प्रति ललक भी बढ़ रही है। यह ललक लोगों को संस्कृत भाषा की तरफ आकर्षित कर रही है। कारण बिल्कुल स्पष्ट है, योग और अध्यात्म का प्राचीनतम और प्रामाणिक चिंतन संस्कृत ग्रंथों में ही उपलब्ध होता है, संस्कृत भाषा से परिचित हुए बगैर शास्त्रों में समाहित ज्ञान से परिचित नहीं हुआ जा सकता। टैटूज के जरिए संस्कृत के प्रति जो लगाव दिख रहा है, उसे प्रारंभिक ही माना जाना चाहिए। इस भाषा के प्रति बढ़ती ललक जल्द ही अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई देने लगे तो आश्चर्य नहीं मानना चाहिए।