दवा कीमतों का पोस्टमार्टम

By: Oct 23rd, 2017 12:15 am

नियंत्रण आदेश 2013 की समीक्षा में जुटी सरकार, कीमतें कम करने के लिए प्राइस कंट्रोल के तहत आएंगे नॉन शेड्यूल्ड ड्रग्स

बीबीएन – सरकार गरीबों और जरूरतमंद लोगों तक आवश्यक दवाइयों की पहुंच और उपलब्धता बढ़ाने के साथ-साथ दवा उद्योग के विकास के लिए नवाचार और स्पर्धा के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से दवा मूल्य नियंत्रण आदेश 2013 की समीक्षा कर रही है। सरकार इन विषयों पर दवा उद्योग तथा अन्य हितधारकों के साथ सक्त्रिय संवाद कर रही है। चर्चा है कि दवाओं की कीमतों को काबू करने के लिए चार साल पुराने ड्रग प्राइस कंट्रोल आर्डर में प्रस्तावित बदलाव के जरिए नॉन शेड्यूल्ड ड्रग्स को प्राइस कंट्रोल के तहत लाया जा सकता है। कीमत तय करने के तरीके में बदलाव के जरिए ऐसा किया जा सकता है। दवा कंपनियों का कहना है कि अगर ऐसा कर दिया गया तो इंडस्ट्री की ग्रोथ को चोट पहुंचेगी और बाजार में प्रतिस्पर्द्धा के माहौल को नुकसान होगा। जो दवाएं कीमत नियंत्रण प्रणाली के दायरे से बाहर होती हैं, उन्हें नॉन शेड्यूल्ड ड्रग्स कहा जाता है। डीपीसीओ के प्रावधानों के तहत केवल उन दवाओं की कीमतें तय हैं, जो आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल हैं। इन दवाओं की संख्या लगभग 850 है। ये दवाएं विभिन्न खुराकों और शक्ति के संबंध में बाजार में उपलब्ध हजार से अधिक दवाओं के संदर्भ में हैं। मूल्य आधार पर इनकी संख्या कुल दवा बाजार का लगभग 17 प्रतिशत है। एक विशेषज्ञ समिति आवश्यक दवाओं की सूची का लगातार आकलन करती है। निर्माताओं का कहना है कि स्टेंट और नी इंप्लांट्स के बाद केंद्र सरकार की योजना नॉन एसेंशियल ड्रग्स की कीमतों पर नियंत्रण करने की है। इसके जरिए सरकार महंगी दवां सस्ता करना चाहती है, ताकि हर व्यक्ति को आसानी से दवाएं मिल सकें। इसी कड़ी में अंदरखाते चार साल पुराने ड्रग प्राइस कंट्रोल आर्डर डीपीसीओ के प्रस्तावित संशोधन करना चाहती है, ताकि मूल्य निर्धारण पद्धति को बदलकर गैर अनुसूचित दवाओं को प्राइस कंट्रोल के दायरे में लाया जा सके। हालांकि दवा कंपनियों का कहना है कि सरकार का यह कदम उद्योग के विकास के लिए हानिकारक होगा और प्रतिस्पर्धा को खत्म कर देगा। गैर अनुसूचित दवाएं ऐसी दावाएं हैं, जो मूल्य नियंत्रण व्यवस्था के बाहर हैं। वर्तमान में करीब 370 दवाएं ही कीमत नियंत्रण के दायरे में आती हैं। नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग अथारिटी और डिपार्टमेंट की ओर से दिए गए प्रस्ताव में इस बारे में सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि नेशनल लिस्ट ऑफ एसेंशियल मेडिसिंस में शामिल दवाओं के दाम तय करने के लिए मौजूदा तरीके खत्म कर दिए जाएं। इसकी जगह बाजार में मौजूद सभी ब्रांड्स की दवाओं और जेनेरिक मेडिसिन का साधारण औसत लिया जाए। विभाग के विचाराधीन महत्त्वपूर्ण मुद्दों में गैर अनुसूचित घोषित दवाइयों को आगे के वर्ष के लिए उनके अधिकतम मूल्य तय किए बिना गैर अनुसूचित दवा समझना, आवश्यक दवाइयों की राष्ट्रीय सूची के संशोधन के आधार पर सूची में जोड़-घटाव शामिल करते हुए अनुसूचित दवाओं की सूची संशोधित करना, ताकि आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल नई दवाओं के मूल्य एमपीपीए द्वारा निर्धारित होगी।

परिवर्तन का अधिकार एनपीपीए को

अधिकतम मूल्य से अधिक मूल्य पर बेची जाने वाली दवाओं को सीमित करना, नकारात्मक थोक मूल्य सूचकांक के मामले में अनुसूचित दवाइयों की मूल्य सीमा में परिवर्तन का अधिकार एनपीपीए को देना शामिल हैं। अन्य विषयों में स्वास्थ्य संस्थानों को सीधे सप्लाई की जा रही अनुसूचित दवाओं के मूल्य निर्धारण के लिए संस्थागत मूल्य डाटा संबंधी प्रावधान शामिल हैं। अनुसूचित दवाओं के लिए अधिकतम सीमा तय करने संबंधी तौर-तरीके इस समय विचाराधीन नहीं हैं। डीपीसीओ 2013 में परिभाषित नई दवा के संबंध में सरकार इनके मूल्य निर्धारण के तरीके में बदलाव पर विचार कर रही है।

सभी वर्गों से करेंगे सलाह

सरकार मौजूदा मूल्य निर्धारण के तरीके समाप्त करने के लिए उद्योग के साथ मिलकर उसका रास्ता निकाल रही है। इसके तहत नई दवा की नई कीमत तय करना शामिल है। इसके कारण नई दवा को बाजार में उतारने में काफी विलंब होता है। विभाग हितधारकों के साथ लगातार बातचीत करती रही है और इन प्रस्तावों को अंतिम रूप देने से पहले सभी संबंधित वर्गों के साथ आगे सलाह की जाएगी।

लांचिंग में न हो जाए देरी

मिनिस्ट्री ऑफ केमिकल एंड फर्टिलाइजर की ओर से कहा गया है कि जरूरी दवाओं की कीमतें तय करने के लिए किसी तरह के नए फार्मूले पर सरकार काम नहीं कर रही। जो दवाएं नॉन शेड्यूल्ड कैटेगिरी में हैं, उनकी कीमतों में मैन्युफेक्चरर्स एक साल में दस फीसदी तक बढ़ोतरी कर सकते हैं। सरकार नई दवा की कैटेगिरी में आने वाले प्रोडक्ट्स की कीमत तय करने के नए तरीके पर विचार जरूर कर रही है, जिससे मार्केट में उनकी लांचिंग में देरी न हो सके।


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