देश के लिए लड़ने वालों की सत्ता के संग्राम में अनदेखी

By: Oct 30th, 2017 12:25 am

प्रदेश विधानसभा चुनावों में उचित प्रतिनिधित्व न मिलने पर पूर्व सैनिकों ने जताई नाराजगी

पालमपुर – देवभूमि में चुनावी बिगुल बज गया है। ऐसे में देश की सीमाओं पर विपरीत  परिस्थितियों में ड्यूटी कर चुके फौजी देश के दोनों प्रमुख दलों भाजपा व कांग्रेस से खफा हैं। पूर्व सैनिक लीग ने सैनिक बहुल क्षेत्रों जिला कांगड़ा, चंबा, हमीरपुर, ऊना, कुल्लू, बिलासपुर व लाहुल स्पीति  से फौजियों को पार्टी टिकट न दिए जाने पर आक्रोश जताया है। इस संबंध में पालमपुर सैनिक लीग ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व विपक्ष की नेता एवं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा है। इस प्रस्ताव में यह कहा गया है कि जिला कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना, कुल्लू, लाहुल-स्पीति के साथ-साथ बिलासपुर जिला से सैनिक, अर्द्धसैनिक एवं पूर्व सैनिकों की आबादी 50 प्रतिशत है, लेकिन दोनों दलों ने सैन्य समाज की राजनीतिक हत्या करने की कुचेष्टा की है। कांगड़ा जिला का इतिहास गौरवशाली रहा है। सबसे अधिक परमवीर चक्र विजेता जिला कांगड़ा के पालमपुर ने दिए हैं। लिहाजा बिलासपुर जिला से भी एक परमवीर चक्र विजेता है। साथ ही असंख्य अशोक चक्र, महावीर चक्र व वीर चक्र धारक इस धरती में पैदा हुए हैं, लेकिन मुख्य राजनीतिक दलों ने सेवानिवृत्त सैनिकों को पार्टी का प्रत्याशी न बनाकर सेना के बहादुर सिपाहियों का अपमान किया है। प्रस्ताव में यह भी आरोप लगाया कि सैनिक व उनके परिवारों को राजनीति से दूर रखने का की एक चाल है। हालांकि सैनिकों को अपना वोट देने तक का मौका नहीं मिलता है और सेवानिवृत्त होने के बाद भी  सैनिकों को जनता की नुमाइंदगी से  वंचित रखा जा रहा है। यह अब सहन नहीं होगा। इस कारण कुछ पूर्व सैनिक पोटा का बटन दबा सकते हैं।  पूर्व सैनिकों के अनुसार फौजियों को इस चुनावी बेला में प्राथमिकता न देना लोकतंत्र की हत्या है। लीग के अध्यक्ष सीडी सिंह गुलेरिया ने कहा कि सैन्य परिवार समझते हैं कि उन्होंने पिछले 30 वर्षों में मेजर विजय सिंह मनकोटिया के साथ मिलकर फौजियों  के  हकों के लिए आवाज उठाई है। संसद व विधानसभा ही ऐसे स्थान हैं, जहां सैनिकों के हितों के लिए आवाज उठाई जा सकती है, लेकिन सैन्य बहुल क्षेत्रों में फौजियों को टिकट न देना उनका अपमान है। इस रोष प्रस्ताव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व सोनिया गांधी से आग्रह किया गया है कि सैनिक विरोधी सोच को लेकर प्रदेश की राजनीतिक इकाइयों से स्पस्टीकरण मांगा जाए।

फौजियों की अनदेखी

सैनिक लीग के अध्यक्ष सीडी सिंह गुलेरिया के अनुसार संसद व विधानसभा ऐसे स्थान हैं, जहां पर सैनिकों के हितों के लिए आवाज उठाई जा सकती है, लेकिन सैन्य बहुत जिलों से फौजियों को टिकट ही नहीं दिया गया है।


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