न रेजिमेंट; न सीएसडी डिपो, सियासत में सिसक रहा पहाड़ी बलिदान
ऊना— देश की एकता व अखंडता के लिए कुर्बानी देने में सबसे आगे रहने वाले हिमाचलवासी रक्षा क्षेत्र में की जा रही अनदेखी से आहत हैं। राजनेता सैन्य क्षेत्र से जुड़े अलग-अलग मसलों पर प्रदेश के लोगों की भावनाओं से लुभावने वादे कर खेलते रहे हैं। केंद्र ने तो प्रदेश की मांगों को अनसुना किया ही, लेकिन हिमाचली हितों की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने में प्रदेश का राजनीतिक नेतृत्व भी हर बार चूक गया। प्रदेश में कभी आदर्श सैनिक छावनी की स्थापना के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती रहीं तो कभी डोगरा रेजिमेंट के मुख्यालय को ऊना में स्थापित करने के मसले पर लोगों को लुभाया गया। ऊना में सीएसडी डिपो की स्थापना का मसला हो या फिर शाहपुर में बीएसएफ के ट्रेनिंग सेंटर की बात, हर बार प्रदेश के हितों की अनदेखी की गई। वर्तमान में भी प्रदेश के लिए कैंट एरिया व आर्डिनेंस फैक्टरी का कोई प्रोपोजल नहीं है। यदि ऊना में कैंट एरिया की स्थापना का प्रस्ताव सिरे चढ़ जाता तो पूरे क्षेत्र में क्रांतिकारी सामाजिक व आर्थिक बदलाव आने थे, जिससे यह क्षेत्र अब वंचित होकर रह गया है। ऊना जिला में सीएसडी डिपो स्थापित करने के लिए कवायद शुरू की गई, लेकिन अभी तक इसके भी कोई सार्थक नतीजे सामने नही आए हैं। प्रदेश के युवाओं के लिए सेना में नौकरी एक ‘पैशन’ बन चुका है, लेकिन सैन्य भर्ती में जनसंख्या के अनुपात में भर्ती प्रक्रिया के नियम ने हिमाचली कोटे में कटौती कर तो प्रदेश को घायल ही कर दिया। इससे सेना में भर्ती होकर देश सेवा करने का जज्बा पाले असंख्य युवाओं की भावनाओं पर तो कुठाराघात हुआ ही, सीमित संसाधनों वाले पहाड़ी राज्य में युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों पर भी कैंची चली। प्रदेश के लिए अलग हिमाचल रेजिमेंट की मांग को केंद्र ने दरकिनार कर हिमाचल को सीधे-सीधे अंगूठा दिखा दिया। देश पर जब भी विपत्ति आई तो हिमाचली सबसे आगे रहकर बलिदान से नहीं चूके। वर्ष 1948 के युद्ध से लेकर कारगिल जंग तक हर बार हिमाचली युवाओं ने अपने रक्त से बलिदान की नई-नई शौर्य गाथाएं लिखीं, लेकिन हकों की बात करने पर प्रदेशवासियों को ठेंगा दिखा दिया जाता है। लगातार मिल रही इस उपेक्षा से प्रदेशवासी स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। पिछले कई सालों से यह सब मसले केवल राजनीतिक फिजाओं में छाए हुए हैं, जबकि धरातल पर अभी तक भी कुछ भी नहीं हुआ है। प्रदेश के लोग राजनेताओं को इस दफा इस मसले पर विधानसभा चुनावों में घेरने का मन बना चुके हैं।
हिमालयन रेजिमेंट की मांग खारिज
देश में अनेक राज्यों व वर्गों के नाम पर सेना की अलग रेजिमेंट्स मौजूद हैं, लेकिन हिमाचली युवाओं को सेना में अलग पहचान व रोजगार के अवसर की मांग को दरकिनार कर दिया गया। इतना ही नहीं, हिमालयन रेजिमेंट का सुझाव भी दो टूक खारिज कर दिया गया।
अढ़ाई लाख सैन्य परिवारों को होना था लाभ
प्रदेश में सीएसडी डिपो के स्थापित होने से राज्य के अढ़ाई लाख के करीब सैनिक परिवारों को लाभ मिलना था। साथ ही प्रदेश में सेवारत व सेवानिवृत सैनिकों को सुविधा प्राप्त होनी थी, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों के चलते ऐसा हो नहीं पाया।
कारगिल में दो परमवीर चक्र
कारगिल जंग मे अदम्य साहस व शौर्य का परिचय देने पर पूरे देश में चार सैनिकों को परमवीर चक्र मिला तो उसमें दो परमवीर चक्र हिमाचल के खाते में आए, लेकिन जब विकास में हिस्सेदारी की बात आती है तो हिमाचल को ठेंगा दिखा दिया जाता है।
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