पांच साल से टास्क फोर्स कागजों में

निगम-बोर्ड से सरकार ने किया था वादा, नहीं बनी कोई रणनीति

शिमला – सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार ने घाटे में चल रहे निगमों और बोर्ड के बेहतर प्रबंधन का वादा किया था, जिसके लिए बाकायदा मंत्रियों व अधिकारियों की टास्क फोर्स का गठन किया गया। हैरानी इस बात की है कि ये टास्क फोर्स कागजों में ही दफन होकर रह गईं, क्योंकि इसकी तरफ से कोई ऐसी सिफारिशें सरकार को नहीं मिलीं, जिस पर कार्रवाई की जाती। सूत्रों के अनुसार इस मामले में अधिकारियों के स्तर पर अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। नतीजतन जो निगम व बोर्ड घाटे में थे, उनका घाटा बढ़ता ही गया और अब स्थिति यह है कि उनके पास वेतन व भत्ते देने को पैसा नहीं है। अपनी संपत्तियां बेच-बेचकर ये निगम व बोर्ड जैसे-तैसे काम चला रहे हैं। हर साल विधानसभा में ऐसे निगमों व बोर्ड के घाटे की जानकारी रखी जाती है, परंतु सरकार की तरफ से ये नहीं बताया जाता कि इनमें सुधार के लिए क्या किया जा रहा है। सरकार ने एक टास्क फोर्स का गठन किया, जिसमें मंत्रियों की समिति शामिल थी, वहीं आलाधिकारी रखे गए थे। टास्क फोर्स ने शुरुआत में एक-दो बैठकें जरूर कीं, लेकिन इसके बाद कोई नतीजा सामने नहीं आ सका। ऐसे में बेहतर प्रबंधन का सरकार का वादा इस पांच साल में पूरा नहीं हो सका है। हाल ही में एग्रो इंडस्ट्रीज को एचपीएमसी में समायोजित करने की योजना सामने आई, लेकिन यह सिफारिश भी उसके निदेशक मंडल की थी, जिसने प्रस्ताव रखा और कई मुश्किलों के बाद इसे पारित कर दिया गया। अब अगले साल अप्रैल महीने में यह समायोजन पूरा हो जाएगा। टास्क फोर्स सिर्फ नाम की ही चज रही है। राज्य सरकार के ऐसे दो दर्जन से अधिक उपक्रम हैं, जो सरकारी क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इनमें से कुछ गिने-चुने निगमों व बोर्ड को छोड़ दें, तो शेष सभी घाटे में चल रहे हैं।

घाटे में चल रहे 11 निगम

परिवहन निगम, वन निगम, बिजली बोर्ड, वित्त निगम, अनुसूचित जाति एवं जनजाति विकास निगम, एग्रो इंडस्ट्रीज निगम, उद्यान उपज विपणन एवं विधायन निगम, हैंडलूम, हैंडिक्राफ्ट निगम, एचपीटीडीसी, मिल्कफेड, अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम के नाम हैं। इस तरह चल रहे 22 निगमों की फेहरिस्त में से 11 घाटे में चल रहे हैं।