प्रदूषण का पोलिथीन

By: Oct 22nd, 2017 12:10 am

आज देश-दुनिया के हर हिस्से में पोलिथीन से निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग हो रहा है। पोलिथीन सस्ता पड़ता है, इसलिए इसका उपयोग भी धड़ल्ले से किया जाता है। सामग्री को रखकर ले जाने में सुविधाजनक ये प्लास्टिक थैलियां प्रदूषण को बढ़ाने का बहुत बड़ा कारण बन रही हैं। हैरानी यह कि हम सभी इसके दुष्प्रभावों को जानते हुए भी अनभिज्ञ बनकर इसके उपयोग में योगदान कर रहे हैं…

दीपावली के अवसर पर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों पर प्रतिबंध के बाद पर्यावरण प्रदूषण का मसला एक बार फिर से विमर्श की सतह पर आ चुका है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर हो रहे चिंतन-मनन के बीच एक महत्त्वपूर्ण बिंदु छूटता हुआ नजर आ रहा है और वह है-पोलिथीन। अब तक पोलिथीन के प्रभाव पर न जाने कितना ही शोध कार्य हो चुका है और समग्र रूप से एक ही निष्कर्ष सामने आता है कि पोलिथीन का जिस तरह अंधाधुंध प्रयोग किया जा रहा है, उससे संपूर्ण वातावरण पूरी तरह आहत हो चुका है। आज देश-दुनिया के हर हिस्से में पोलिथीन से निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग हो रहा है। पोलिथीन सस्ता पड़ता है, इसलिए इसका उपयोग भी धड़ल्ले से किया जाता है। सामग्री को रखकर ले जाने में सुविधाजनक ये प्लास्टिक थैलियां प्रदूषण को बढ़ाने का बहुत बड़ा कारण बन रही हैं। हैरानी यह कि हम सभी इसके दुष्प्रभावों को जानते हुए भी अनभिज्ञ बनकर इसके उपयोग में योगदान कर रहे हैं। पोलिथीन एक प्रकार का जहर है, जो पूरे पर्यावरण को नष्ट कर देगा और भविष्य में हम यदि इससे छुटकारा पाना चाहेंगे, तो हम अपने को काफी पीछे पाएंगे। तब तक संपूर्ण पर्यावरण इससे दूषित हो चुका होगा। एक आकलन है कि भारत में लगभग दस से पंद्रह हजार इकाइयां पोलिथीन का निर्माण कर रही हैं। सन् 1990 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में इसकी खपत 20 हजार टन थी, जो अब बढ़कर तीन से चार लाख टन तक पहुंचने की सूचना है। यह भविष्य के लिए खतरे का सूचक है। यह दीगर है कि पोलिथीन या प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं का एक बार प्रयोग करने के बाद दोबारा उन्हें इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। लिहाजा इनका उपयोग करके इन्हें फेंकना ही पड़ता है। आज तो जहां देख लीजिए, पोलिथीन देखने को मिल ही जाएगा, जो कि संपूर्ण पर्यावरण को दूषित कर रहा है। यह भी कि पोलिथीन निर्मित वस्तुओं का प्रकृति में विलय नहीं हो पाता यानी ये बायोडिग्रेडेबल पदार्थ नहीं हैं। खेत- खलिहान जहां भी यह होगा, वहां की उर्वरा शक्ति कम हो जाएगी और इसके नीचे दबे बीज भी अंकुरित नहीं हो पाएंगे। अतः भूमि बंजर हो जाती है। इससे बड़ी समस्या नालियां अवरुद्ध होने की आती है। पोलिथीन का कचरा जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड एवं डाईऑक्सींस जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं। इनसे सांस, त्वचा आदि की बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है। हिमाचल ने पोलिथीन उपयोग की संवेदनशीलता को समझते हुए काफी पहले ही इससे बनी थैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रतिबंध का प्रदेश पर सकारात्मक असर देखा जा सकता है, लेकिन पूरे देश में पोलिथीन पर प्रतिबंध को लेकर किसी राष्ट्रीय सहमति का अभाव ही नजर आता है। पर्यावरण पर पोलिथीन के प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए यह कहना गलत न होगा कि इस पर नियंत्रण को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर किसी व्यापक व राष्ट्रीय नीति के अभाव में पर्यावरण संरक्षण के मकसद पूरे नहीं हो सकते।


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