बढ़ती गाजर घास की पैदावार… खतरनाक

सुंदरनगर —  गाजर घास की पैदावार में हो रही वृद्धि मानव समेत जानवरों के लिए घातक होती जा रही है। क्योंकि अगर आप बार-बार चमड़ी रोग से ग्रस्त हो रहे हैं और आपके पालतू पशुओं का वजन कम होने के साथ-साथ दूध उत्पादन भी कम हो रही है, तो सतर्क हो जाएं। क्योंकि गाजर घास की चपेट में आने से आप बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। गाजर घास से वर्ष 1955-1960 0.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित था, जो कि 2000-2009 तक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार 35 लाख हेक्टेयर बढ़ गया है। गाजर घास के लगातार संपर्क में आने से मनुष्यों में खुजली, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि रोग हो जाते हैं। पशुओं के लिए यह अत्याधिक विषैला होता है। इसके सेवन से दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट आ जाती है व उत्पादन कम हो जाता है। इसके प्रकोप से खाद्यान्न फसलों की पैदावार में भी कमी आ जाती है। यह बच्चों व बुजुर्गों को अधिक प्रभावित करता है। एलर्जी, ट्राइनीटीज साइनसाइट के करीब 10 फीसद रोगी वे होते हैं, जो गाजर घास से प्रभावित क्षेत्र में रहते हैं। देश के आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडू, मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में गाजर घास खरपतवार के फैलाव और प्रकोप सबसे ज्यादा है। हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तरांचल, असम, छतीसगढ़, चंडीगढ़, ओडिशा, पुड्डुचेरी, झारखंड व राजस्थान में मध्यम स्तर पर इसका प्रकोप है। इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश, अंडेमान-निकोबार, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, गोवा, सिक्किम, गुजरात और केरल राज्य भूमि गाजर घास की चपेट में सबसे कम है।

देश में 1955 में देखी गई थी घास

गाजर घास को भारत में सर्वप्रथम इसे सन 1955 में पूना महाराष्ट्र में देखा गया था। ऐसा माना जाता है कि इसका प्रवेश अमेरिका से आयात किए गए गेहूं के साथ हुआ था, लेकिन अब इसका प्रकोप देश के लगभग सभी राज्यों में फैल गया और इससे हिमाचल प्रदेश भी अछूता नहीं रहा है।